टी वी पर बाबाओं की धूम देख कर समझ नहीं आता कि हालात पर हसें या रोयें ! फिर सोचा चलो कविता ही रची जाये :
ज़वानों की जुबानी सुनी, लाख तरकीबें अपनाई,
पर ज़वानी जो गई एक बार, फिर लौट कर ना आई !
दिल में थी आरजू कि लहराएँ अपनी भी जुल्फें,
हेयर कटिंग भी हमने तो हबीब के सैलून से कराई !
पर अब तो सर पर बाल ही कितने बचे हैं भाई !
गालों पर कराया फेसियल शहनाज़ का ,
लेकिन झुर्रियों में ज़रा सी कमी तक ना आई !
चेहरे पर लगाया वैदिक एंटी सन लोशन ,
काम बाबा रामदेव की ज़वानी क्रीम भी ना आई !
हसीनों संग करते थे कनअंखियों से आँख मिचोली ,
अब मोतिया बिंद से ही बंद है इन आँखों की बिनाई !
आसां नहीं है दुनिया में आसाराम बन जाना ,
हाथ मलते रह जाओगे ग़र गुरु कृपा ही ना आई !
खामख्वाह दम भरते हैं ज़वानी का ' तारीफ ' ,
साँस रुक जाती है जब लट्ठ लेकर सामने आती है ताई !
नोट : कृपया इसे शुद्ध हास्य के रूप में ही पढ़ें। अर्थ का अनर्थ निकालकर आत्मविश्वास न खोएं।
आसां नहीं है दुनिया में आसाराम बन जाना ,
ReplyDeleteहाथ मलते रह जाओगे ग़र गुरु कृपा ही ना आई !
बहुत खूब !
latest post गुरु वन्दना (रुबाइयाँ)
वा वाह ...वा वाह ...
ReplyDeleteतालियाँ ही तालियाँ डाक साब क लिए !!!
जय हो..
ReplyDeleteआसां नहीं है दुनिया में आसाराम बन जाना ,
ReplyDeleteहाथ मलते रह जाओगे ग़र गुरु कृपा ही ना आई !
सुंदर हास्य व्यंग ! बेहतरीन रचना, !!
RECENT POST : बिखरे स्वर.
आसां नहीं है दुनिया में आसाराम बन जाना ,
ReplyDeleteहाथ मलते रह जाओगे ग़र गुरु कृपा ही ना आई !
....एक ही तीर से दो दो बाबाओं को निपटा दिया! कमाल करते हैं आप भी।
बाबाओं का ही अब ज़माना है ,
Deleteहम आप तो यूँ ही जीया करते हैं !
आप में आसाराम बन्ने के गुर नहीं हैं ..अच्छा है आप ब्लॉगर बाबा ही बने रहिये और हमें हास्य रंग की गोलिय्याँ देते रहिये ....
ReplyDeleteआजकल हर चीज़ की ट्रेनिंग मिलती है भाई ! :)
Deleteखामख्वाह दम भरते हैं ज़वानी का ' तारीफ ' ,
ReplyDeleteसाँस रुक जाती है जब लट्ठ लेकर सामने आती है ताई !
:):) आप भी ताऊ बनने की राह पर हैं क्या ?
जी हम तो पहले से ही ताऊ हैं ! :)
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (13-09-2013) महामंत्र क्रमांक तीन - इसे 'माइक्रो कविता' के नाम से जानाः चर्चा मंच 1368 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपने बहुत सही लिखा है खोई जवानी लौट कर नहीं आती बुढापे से जो दुर्गति होती है उसे बदला नहीं जा सकता चाहे कितने भी यत्न किये जाएं |
ReplyDeleteआशा
जी ,बुढ़ापे में सही रहने के लिए ज़वानी में सही रहना ज़रूरी है.
Deleteचेहरे पर लगाया वैदिक एंटी सन लोशन ,
ReplyDeleteकाम बाबा रामदेव की ज़वानी क्रीम भी ना आई !
आपने गलत प्रोडक्ट खरीदा, कभी बाबा ताऊश्री की क्रीम खरीद कर देखिये.:)
बहुत सशक्त व्यंग.
रामराम.
जय हो सर जी , आजकल मूड कवितयाना हो रहा है , जमाए रहिए सर :)
ReplyDeleteहास्य रस से सराबोर रचना बहुत पसंद आई ,सच में आज कल तो नेताओं और बाबाओं का ही ज़माना है क्या करेंगे पढ़ लिख कर
ReplyDeleteबहुत- बहुत बधाई इस मजेदार प्रस्तुति हेतु
जिन खोजाँ तीन पाइयाँ ... :)
ReplyDeleteबाबा रे बाबा
ReplyDelete:))behad Rochak anubhav kavita mei bataa diye!
ReplyDeleteआसाराम होकर भी बचना मुश्किल है .... बाबाजी को मामा जी मिल गए....खाकी वर्दी वाले...अइसे अइसे टेस्ट किए हैं कि आसाराम बापू के मुंह से निकल गया ही गया कि अति हो गई भाई जुल्म की अति हो गई...वइसे सुना है कि मच्छरों के पैर पकड़ लिए थे बाबाजी ने और कहा कि वो तो मच्छरों के बाप हैं..कृपया बाप को न काटें पर मच्छर तो मच्छर हैं...नहीं मान रहे हैं..ठीक वइसे ही जैसे बाबाजी ने कहा था कि निर्भया पैर पकड़ लेती औऱ कहती है कि भाई छोड़ दो...पर न तब वो दरिंदे माने ..न अब मच्छर मान रहे हैं...
ReplyDeleteआसां नहीं है दुनिया में आसाराम बन जाना ,
ReplyDeleteहाथ मलते रह जाओगे ग़र गुरु कृपा ही ना आई !
गुरु बनने के लिए भी गुरु कृपा चाहिए ... फिर गुरु कौन ओर चेला कौन रह जाएगा ...
नाजा आया डाक्टर साहब ...