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Wednesday, September 4, 2013

विवाहित पुरुष को पत्निव्रत होना और सन्यासी को पूर्ण रूप से स्त्री से दूर रहने को ब्रह्मचर्य कहा जाता है ----


मनुष्य समेत सभी जीवों के जीवन में दो ही ऐसी मूल आवश्यकताएं हैं जिन पर जीवन पूर्णतया आश्रित रहता है. एक भोजन और दूसरा यौन क्रिया ( सेक्स । जहाँ भोजन मनुष्य को जीवित रखता है और उसे जीवित रहने के लिए समर्थ बनाता है , वहीँ यौन क्रिया जीवन का स्रोत है और पृथ्वी पर विभिन्न प्रजातियों की नस्ल को बनाये रखता है. लेकिन यौन क्रिया एक ऐसा विषय है जिस पर हमारे समाज में खुल कर बात करने में अभी भी संकोच होता है. इसका एक कारण तो यह है कि यह विषय एक पूर्ण रूप से व्यक्तिगत मामला समझा जाता है. हालाँकि जब इसका दुरूपयोग होता है तब यह व्यक्तिगत मामला एक सार्वजानिक विषय बन जाता है जिसके परिणाम भी भयंकर होते हैं. इसलिए आज इस बात की अत्यंत आवश्यकता है कि आज की युवा पीढ़ी को यौन शिक्षा प्रदान की जाये।

बच्चों के शारीरिक विकास में यौन विकास सबसे महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील दौर होता है. इस आयु अवस्था में न सिर्फ बच्चे के शरीर में परिवर्तन दिखाई देते हैं बल्कि उसकी सोच और आचरण में भी बदलाव नज़र आता है. इसका कारण है शरीर में सेक्स हॉर्मोन्स का बढ़ना। लड़कों में टेस्टोस्टिरोंन और लड़कियों में इस्ट्रोजन हॉर्मोन्स को सेक्स हॉर्मोन कहा जाता है.

टेस्टोस्टिरोंन : यह मेल सेक्स हॉर्मोन है जिससे शरीर में यौन अंगों का विकास होता है जिन्हें सेकंडरी सेक्स केरेक्टर्स कहते हैं. यही ज़वानी के लक्षण भी कहे जा सकते हैं. यही वह हॉर्मोन है जिससे यौन इच्छा ( लिबिडो ) बनी रहती है और यौन क्षमता ( पोटेंसी ) भी. हालाँकि रक्त में इसका स्तर एक आयु के बाद कम होने लगता है , लेकिन अक्सर लम्बी आयु के बाद भी शरीर में टेस्टोस्टिरोंन पर्याप्त मात्रा में रहता है जिससे वृधावस्था में भी पोटेंसी बनी रहती है.

स्वप्नदोष : युवावस्था में इस हॉर्मोन की मात्रा अधिक होने से लिबिडो और पोटेंसी दोनों चरम सीमा पर होते हैं. यह सत्य युवाओं के लिए समस्या भी बन जाता है. युवावस्था आने पर वीर्य का निर्माण भी होने लगता है जो एक निरंतर प्रक्रिया है. शरीर के यौन अंगों में वीर्य को संग्रह करने की क्षमता सीमित होती है. इसलिए समय समय पर वीर्य स्खलन आवश्यक होता है. विवाह पूर्व ऐसा संभव नहीं हो पाता। इसलिए एक अवधि के बाद वीर्य स्खलन स्वत: ही सोते समय हो जाता है , जिसे स्वप्नदोष कहते हैं. अक्सर यह युवाओं के लिए बड़ा चिंता और शर्म का विषय बन सकता है. इसलिए यह जानना आवश्यक है कि स्वप्नदोष कोई रोग नहीं होता बल्कि एक स्वाभाविक और प्राकृतिक प्रक्रिया है जिससे कोई हानि नहीं होती और जो विवाहोपरांत स्वयं समाप्त हो जाती हैं।

हस्त मैथुन : यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे इच्छानुसार वीर्य स्खलन कर कामोत्तेजना से क्षणिक राहत पाई जा सकती है. यह विशेषकर विवाह पूर्व या किसी भी कारणवश अकेले रहने पर विवश व्यस्क व्यक्ति के लिए एक आसान और हानिरहित तरीका है. युवावस्था में लगभग सभी लोग हस्त मैथुन करते हैं , यह एक सत्य है. लेकिन युवावस्था में अक्सर आत्मग्लानि होती है जिससे कई मानसिक विकार पैदा हो सकते हैं जिनका नाज़ायज़ फायदा तथाकथित सेक्सोलॉजिस्ट उठाते हैं और जो युवाओं को गुमराह कर पैसा बनाते हैं. सच तो यह है कि यह भी एक स्वाभाविक और हानिरहित प्रक्रिया है. हालाँकि कभी कभी यह एक लत का रूप धारण कर सकती है जिससे पढाई या काम में ध्यान भंग हो सकता है. आखिर , अति हर बात की ख़राब होती है.

लिबिडो ( यौन इच्छा ) और यौन क्षमता ( पोटेंसी ) :  

जब तक हॉर्मोन की कमी नहीं होती , जो कि बहुत कम ही होती है , तब तक ये दोनों गुण विद्धमान रहते हैं. हालाँकि , लिबिडो और / या पोटेंसी कम होने के कारण विभिन्न और भिन्न हो सकते हैं. ऐसा भी हो सकता है कि इच्छा है पर क्षमता नहीं और यह भी संभव है कि क्षमता तो है पर इच्छा नहीं। यह बहुत सी स्थितियों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है. कुल मिलाकर यही कह सकते हैं कि सेक्स एक पूर्ण रूप से व्यक्तिगत विषय है और प्रत्येक मनुष्य की यौन इच्छा और यौन क्षमता भिन्न होती है. इसका सामान्यीकरण करना सही नहीं कहा जा सकता।

ब्रह्मचर्य : पहले कहा जाता था कि २५ वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। यहाँ यह समझा जाता था कि ब्रह्मचर्य का अर्थ है , वीर्य स्खलन न होने देना। वीर्य को एक दुर्लभ स्वास्थ्य खज़ाना माना जाता था. लेकिन यह न सच है , न संभव। इस भ्रांति को दूर करते हुए यह मानना चाहिए कि प्रत्येक काम का एक समय होता है और उचित समय पर ही किया गया काम लाभदायक होता है. ब्रह्मचर्य की वास्तविक परिभाषा गीता में दी गई है जिसके अनुसार -- विवाहित पुरुष को पत्निव्रत होना और सन्यासी को पूर्ण रूप से स्त्री से दूर रहने को ब्रह्मचर्य कहा गया है. हालाँकि पहली स्थिति में तो यह संभव है लेकिन दूसरी स्थिति में ब्रह्मचर्य का पालन करना इस मृत्यु लोक में संभव नहीं लगता। यह वर्तमान में हो रही साधु बाबाओं द्वारा बलात्कार की घटनाओं को देखकर साफ ज़ाहिर होता है.

यौन इच्छा एक ऐसी प्रक्रिया है जिस पर  काबू पाना न सिर्फ आसान नहीं होता बल्कि इसे अनुचित रूप से दबाने से मानसिक विकार पैदा होते हैं. इसीलिए ओशो रजनीश द्वारा सुनाये गए प्रवचन तर्क संगत लगते हैं. यौन इच्छा की आपूर्ति स्वाभाविक रूप से होती रहनी चाहिए। लेकिन विपरीत परिस्थितियों में इच्छाओं पर काबु पाना भी आवश्यक है वर्ना इन्सान और हैवान में कोई अंतर नहीं रह जायेगा।   
   

45 comments:

  1. सेक्स एजुकेशन आज के सन्दर्भ में बहुत उपयुक्त है ..संकुचित विचार धारा वालों को भी स्वीकार कर लेंना चहिये
    latest post देश किधर जा रहा है ?

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  2. दमित इच्छाएं मानोविकार को बढ़ाती हैं ..... स्वाभाविक इच्छाएं स्वाभाविक रूप से पूर्ण हों ..... कभी कभी वैवाहिक संबंध भी यौन इच्छा पूर्ण करने में सक्षम नहीं होते इसे आपसी व्यवहार का कारण भी माना जा सकता है .....पति - पत्नी का एक दूसरे के प्रति समर्पण ही इसका समाधान है ।

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  3. ये संसार भी तभी तक रंगीन लगता है जब तक इच्छाएं रहती हैं मन में ... इनका स्वाभाविक दमन कोई उपाय नहीं है बल्कि इनको चेनल करना ज्यादा ठीक है ... इनपे संयम रखना ज्यादा ठीक है ...

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  4. एक अर्थपूर्ण आलेख, वक्त की जरूरत के अनुसार, आपने संसार की धुरी के बारे मे बताया जो नितांत आवस्यक है और जिसकी संदर्भित शिक्षा बेहद आवस्यक है

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  5. महतवपूर्ण जानकारी ...

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  6. बढ़िया एवं आवश्यक जानकारी..

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  7. डाक्टर साहब, जीवन उर्जा संबंधी ओशो के प्रवचन तर्कसंगत ही नहीं मनोवैज्ञानिक है अगर हर माँ उनकी पुस्तके खुद पढ़कर अपनी युवा बेटी को भी पढ़ने दे, हर पिता खुद पढ़कर अपने बेटे को भी पढ़ने दे तो, इस बारे में जो भी भ्रांतियां है विकृतियाँ है जैसा की आजकल हम समाज में देख रहे है, बहुत हद तक कम होंगी ! मै तो कहूँगी ओशो इस युग की बहुत बड़ी प्राप्ति है !

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    1. सुमन जी , हालाँकि मैं ओशोभक्त नहीं हूँ. लेकिन उनकी काई बातें बेमिसाल हैं। जिनका मैं आदर करता हूँ.

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    2. ओशो खुद यही चाहते है कोई उनके भक्त न बने बस प्रयोग करे, नतीजा आपके सामने होगा,वैसे देश विदेश में
      करोडो करोडो उनके चाहने वाले है वे या तो साधक है या तो उनके प्रेमी है भक्त नहीं, भक्त तो वे है जो आजकल अपने गुरु को बेगुनाह साबित करने के लिए प्रदर्शन कर रहे है ! आप जैसे न जाने कितने ही डाक्टरों के लिए ओशो शोध का विषय है :)

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  8. बढ़िया पोस्ट। यह देखना रोचक है कि बढ़िया और आवश्यक जानकारी इस उम्र में भी मिल रही है। :)

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  9. सेक्स के नाम पर फैली हुई भ्रांतियों ने युवाओं को काफी भ्रमित किया है. कामेच्छा का मानसिक दमन सेक्स अपराधों को जन्म देता है. जानकारी परक सार्थक पोस्ट।

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  10. सच कहा...सही तथ्य यही है---"प्रत्येक काम का एक समय होता है और उचित समय पर ही किया गया काम लाभदायक होता है"
    ---"विवाहित पुरुष को पत्निव्रत होना और सन्यासी को पूर्ण रूप से स्त्री से दूर रहने को ब्रह्मचर्य कहा गया है." ..क्या वास्तव में गीता में ऐसा कहा गया है ? श्लोक उदृत करना चाहिए...
    -----ब्रह्मचर्य का अर्थ वीर्य-संरक्षण से नहीं है न स्त्री से दूर रहना .... इसका अर्थ है ब्रह्म के अनुसार चर्या ..अर्थात आपका प्रत्येक कार्यकलाप इश्वरीय भाव के अनुसार हो अर्थात परमार्थ व समाज के हितार्थ हो... बिना किसी फल की इच्छा के निष्काम... ..जैसा कि एशोपनिषद का मन्त्र है....
    ईशावास्यं इदं सर्वं यात्किंच्त जगत्यां जगत
    तेन त्यक्तेन भुंजीथा, मा गृध कस्विद्धनं ||

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    1. डॉ गुप्ता , हमने गीता को हिंदी में ही पढ़ा है जिसमे श्लोक नहीं हैं . वैसे ब्रह्मचर्य का वर्णन १७ वें अध्याय में आता है. ब्रह्मचर्य को वीर्य संरक्षण से जोड़ना एक आम धारणा है, जो ज़ाहिर है , गलत है.

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    2. लीजिये श्लोक भी मिल गया :

      देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम।
      ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते ।। १४ ।।

      ------ अध्याय १७

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    3. हां डा दराल...धन्यवाद... पर श्लोक का अर्थ सिर्फ इतना है... देव , द्विज( ब्राह्मण गण) गुरुगण, विद्वतजन का पूजन, आचरण शुचिता, अहिंसा व नम्रता ही शरीर के तप कहे जाते हैं|... ब्रह्मचर्य की परिभाषा नहीं है....पर आचरण-शुचिता में सब कुछ सम्मिलित होजाता है ..
      ----वैसे सही यही है कि ब्रह्मचर्य के बारे में आम धारणा गलत है |








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  11. एक कार्यशील चिकित्सक द्वारा यौन शिक्षा पर पोस्ट ..
    कृपया गीता में ब्रह्मचर्य के उद्धरण संबधी संदर्भ (श्लोक संख्या ) दे सकें तो आभारी होऊंगा .
    ब्रह्मचर्य एक भ्रामक अवधारणा है .इसका औचित्य या उल्लेख यहाँ जरुरी नहीं था !
    मूल पोस्ट में श्रोत को स्रोत कर लें ,काबु को काबू !
    तकनीकी विषय विशेषज्ञों से वर्तनी दोष स्वाभाविक है !

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    1. त्रुटि सुधार कर दिया है , आभार।
      यह पोस्ट बापू कांड सन्दर्भ में लिखी है , इसलिए ब्रह्मचर्य का जिक्र किया है.
      एक सन्यासी को देहिक सुख त्यागना चाहिए।

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    2. देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम।
      ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते ।। १४ ।।

      -- अध्याय १७

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    3. -----अरविंद जी तत्संबंधित आलेखों में ब्रह्मचर्य का उल्लेख अत्यावश्यक है ----ब्रह्मचर्य स्वयं एक भ्रामक धारणा नहीं(यह आपकी भ्रामक धारणा है) ...ब्रह्मचर्य को सिर्फ वीर्य-संरक्षण से जोड़ना भ्रामक धारणा है ....यूं तो वीर्य को भी सिर्फ शुक्राणु वाले वीर्य से जोड़ना भी भ्रान्ति है ..इस शब्द का अर्थ 'पुरुषत्व,व्यक्तित्व व ओज' से है

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  12. पोस्ट बहुत अच्छी और सामयिक ही नहीं सर्वकालिक है (यह लिखना ही भूल गया )

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  13. ईशावास्यं इदं सर्वं यात्किंच्त जगत्यां जगत
    तेन त्यक्तेन भुंजीथा, मा गृध कस्विद्धनं ||
    "बिना किसी फल की इच्छा के निष्काम."
    श्याम गुप्त जी श्लोक को यहाँ उद्धृत क्यों कर गए और अर्थ भी अलग सा है !

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    1. अरविंद जी यह मन्त्र है इसका यह अर्थ नहीं है जो आप कर रहे हैं ..(वह उसका आंशिक दूरस्थ भाव-अर्थ है जो श्रीकृष्ण ने गीता में प्रतिष्ठित किया है )....वैसे ब्रह्मचर्य के व्याख्यापूर्ण वर्णन हेतु ..मानव आचरण व्याख्या का मूल है यह मन्त्र ....

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  14. विवाहित पुरुष के लिए तो सलाह ठीक है,सन्यासी के लिए नहीं क्योंकि वह संन्यासी बनता ही तभी है जब पूर्ण इन्द्रियनिग्रह हो जाता है।
    आजकल के बाबा संन्यासी कहाँ हैं ?

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    1. पूर्ण इन्द्रिय-निग्रह का अर्थ स्त्री से दूर रहना नहीं है ..उसमें आसक्त न होना है ...कीचड में भी कमल की भाँति रहना ...दूर रहकर क्या ब्रह्मचर्य वह तो मजबूरी या बलात भाव हुआ....महान योगी शिव तो विवाहित हैं...योगीराज कृष्ण हैं, योगमाया के पति विष्णु हैं ..

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  15. सभी अपना अपना धर्म समझें

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  16. संस्‍कारित परिवार ही सभ्‍य मनुष्‍य को जन्‍म देते हैं।

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    1. क्या बात है ..सारी बात तो संस्कार की ही है ..

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  17. बहुत ही महत्वपूर्ण और समाज के लिए , खासकर भारतीय समाज के लिए तो अब तक वर्जित जैसा विषय । विस्तार से आपने जानकारी देकर बहुत अच्छा किया सर ।

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    1. किसने कहा .....कोकशास्त्र तो भारतीय समाज का ही है...

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  18. "कुल मिलाकर यही कह सकते हैं कि सेक्स एक पूर्ण रूप से व्यक्तिगत विषय है और प्रत्येक मनुष्य की यौन इच्छा और यौन क्षमता भिन्न होती है. इसका सामान्यीकरण करना सही नहीं कहा जा सकता।"
    post se hi ek pankti.

    kunwar ji,

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  19. संतोष त्रिवेदी जी से सहमत !

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  20. इंसान में इंसानियत बची रहने के लिए संयम का होना अत्यावश्यक है। शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य दोनों के ही सन्दर्भ में !!

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  21. वर्तमान हालातों को मद्देनज़र रखते हुए एक बहुत ही महत्वपूर्ण एवं गंभीर विषय पर सही तरीके से जानकारी दी है आपने.... आभार

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  22. यौन इच्छा एक ऐसी प्रक्रिया है जिस पर काबू पाना न सिर्फ आसान नहीं होता बल्कि इसे अनुचित रूप से दबाने से मानसिक विकार पैदा होते हैं.

    bahut vistar se aapne brahmchary par jaankaari di...........

    ek saarthak maalekh ke liye thanks

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  23. अनुचित रूप से दबाने से

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  24. ओशो एक तर्कशास्‍त्री थे और तर्क सही ही होता है

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  25. डॉकटर साब आप कभी ब्रह्माकुमारी बहेनो से मिले है? आप एक बार आबू जाकर आयें आप सब कि भ्रान्ति दूर हो जायेगी, कि येह कलयुग में भी ऐसा हो सकता है I

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  26. ब्रह्माकुमारी में केवल अकेले भाई या अकेली बहेन ही नहीं हजारो नहीं लाखो युगल जीवनभर ब्रह्मचर्य का पालन करते है और दबाकर नहीं समजकर I सभी से येह रिक्वेस्ट है एक बार माउंट आबू जाके आयें I

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    1. सन्दीप जी , मैं माउंट अबु स्थित ब्रह्माकुमारी संस्थन मे गया हूँ . मुझे वहा का वातावरण , प्रबन्धन और मेहमान नवाज़ी बहुत अच्छी लगी . लेकिन उनकी थ्योरी से मैं सहमत नहीं हो सकता . पति पत्नी को भाई बहन की तरह रहना ना सिर्फ प्राकृतिक रूप से बल्कि सामाजिक और कानूनी रूप से भी अनुचित है . उनके हिसाब से तो इस पृथ्वी पर जीवन समाप्त होने वाला है . जबकि ऐसा नहीं है . अभी भी यह पृथ्वी १.३ मिलियन बिलियन लोगों का बोझ सह सकती है .

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