बचपन में शेर की कहानी सुनने में बड़ा मज़ा आता था। आज भी डिस्कवरी चैनल पर अफ्रीका के जंगलों की सैर करते हुए जंगली जानवरों के बारे में फिल्म देख कर बड़ा रोमांच महसूस होता है। शायद इसी वज़ह से हर साल १३ अप्रैल को जो हमारी वैवाहिक वर्षगांठ होती है, हमें जंगलों की याद प्रबल हो आती है। यूँ तो भारत में भी अनेक शेर और बाघ संरक्षित क्षेत्र हैं लेकिन इनमे जंगली जानवरों से सामना उतना ही असंभव लगता है जितना जितना मनुष्यों में इन्सान का ढूंढना। फिर भी यही चाह हमें खींच ले जाती है जंगलों की ओर।
इस वर्ष हमारा जाना हुआ - जिम कॉर्बेट पार्क।
दिल्ली से २५० किलोमीटर रामनगर से करीब १० किलोमीटर पर बसा है ढिकुली गाँव जहाँ अनेकों आरामदायक रिजॉर्ट्स बने हैं। दिल्ली से मुरादाबाद तक का १५० किलोमीटर का सफ़र राष्ट्रीय राजमार्ग २४ द्वारा बहुत सुहाना लगता है जहाँ आप फर्राटे से गाड़ी चलाते हुए हाइवे ड्राइविंग का आनंद उठा सकते हैं। लेकिन उसके बाद काशीपुर से होता हुआ रामनगर तक का करीब १०० किलोमीटर का रास्ता आपको रुला सकता है। कहीं बढ़िया , कहीं टूटी फूटी सड़क को देखकर पता चल जाता है कि कहाँ कैसे ठेकेदार ने काम किया होगा।
लेकिन रामनगर पहुँचने के बाद पहाड़ शुरू होने पर राहत सी मिलती है। फिर एक के बाद एक रिजॉर्ट्स आपका स्वागत करने को तैयार मिलते हैं।
एक ओर पहाड़ और दूसरी ओर कोसी नदी के बीच २०० मीटर का क्षेत्र। रिजॉर्ट में घुसते ही ड्राइव वे के दोनों ओर घने पेड़ जिनमे बांस के पेड़ बेहद खूबसूरत लग रहे थे।
घनी हरियाली के बीच बनी कॉटेज अपने आप में एक स्वर्गिक अहसास की अनुभूति कराती हैं।
कॉटेज के बाद नदी किनारे रेस्तराँ, स्विमिंग पूल और हरे भरे लॉन -- कुल मिलाकर एक परफेक्ट सेटिंग।
ढिकुली से आगे राजमार्ग संख्या १२१ सीधे रानीखेत को जाता है। करीब ४ किलोमीटर आगे यह गर्जिया देवी का मंदिर नदी के बीचों बीच बना है।
कोसी नदी का एक दृश्य -- मंदिर से थोड़ा पहले एक पुराना ब्रिज बना है जहाँ कई तरह के एडवेंचर स्पोर्ट्स का मज़ा लिया जा सकता है। बेशक इसके लिए मन में साहस और उत्साह की आवश्यकता है।
रिवर क्रॉसिंग करते हुए। यहाँ एक बार धम्म की आवाज़ आने पर हमने पूछा कि क्या हुआ तो पता चला कि ब्रिज फाल हो रहा है। समझने में समय लगा कि यह पुल से पानी में कूदने का खेल था।
जिम कॉर्बेट पार्क में मुख्य रूप से जीप सफारी द्वारा जंगल की सैर की जाती है। पार्क के ४ अलग अलग जोन्स हैं जहाँ एक बार में एक जोन में जाया जा सकता है। लेकिन वीकेंड पर अक्सर बुकिंग पहले ही फुल हो जाती है। हमें भी जो बुकिंग मिली वो ऐसे क्षेत्र की थी जहाँ बस पहाड़ ही पहाड़ थे। लेकिन बहुत घना जंगल था। पेड़ पौधों की अनेकों किस्म थी जिनमे सबसे प्रमुख साल के पेड़ थे।
कुछ नहीं थे तो शेर और बाघ। हालाँकि यहाँ बाघों की काफी संख्या बताई जाती है लेकिन दिखने की सम्भावना न के बराबर ही होती है। फिर भी ऐसा नहीं सोचा था कि इतने घने जंगल में भी एक भी जंगली जानवर दिखाई नहीं देगा।
लेकिन पेड़ तरह तरह के दिखे। यह तना दो पेड़ों का है। बाहर वाला अन्दर वाले पर पेरासाईट है जो जल्दी ही इसकी जान निकाल देगा। शायद कलयुगी मनुष्यों की लालची प्रवृति का प्रभाव पेड़ों पर भी आ गया है।
पूरे जंगल में आखिर यह एक लंगूर ही नज़र आया जो हमें देखते ही उछलकर पेड़ पर चढ़ गया।
घने जंगल से होकर अंत में हम पहुँच गए ऐसे स्थान पर जहाँ इस क्षेत्र की दूसरी नदी -- रामगंगा नज़र आ रही थी। यह यहाँ की मुख्य नदी है जिस पर रामगंगा रिजर्वायर बना है।
जंगल सफ़ारी तो निराशाजनक रहा, हालाँकि घने जंगल में ५० - ६० किलोमीटर की सैर कमाल की थी। रिजॉर्ट में आकर यहाँ की खूबसूरती का अवलोकन अपने आप में एक अनुपम अनुभव था।
यहाँ लॉन में शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ भोजन का आयोजन किया जाता है।
पहाड़ों में लाल रंग बहुत ही सुन्दर लगता है। इसलिए सभी कॉटेज की छत इसी रंग में रंगी थी। लेकिन फूलों का भला क्या मुकाबला !
कोसी नदी में महाशीर नाम की मछलियाँ पाई जाती हैं जिनका शिकार एंगलर्स को बहुत भाता है।
अगले दिन सुबह आसमान में बदल छा गए थे। बादलों की खूबसूरती नदी और पहाड़ के साथ मिलकर दोगुनी हो जाती है। लेकिन अब वापस चलने का समय हो गया था। इसलिए हमने भी अपना बोरिया बिस्तर समेटा और लौट आए फिर से उसी जंगल में जहाँ एक ढूंढो तो हज़ार मिलते हैं, इंसानी जानवर।
वापसी में एक सवाल बार बार तंग करता रहा -- क्या वास्तव में हमारे जंगलों में जंगली जानवर बचे हैं ? या इन्सान ने उन्हें अपने लालच का शिकार बना कर ख़त्म कर डाला है। और हम स्वयं को धोखा दिए जा रहे हैं वन विभाग की बातों में आकर।
लेकिन भले ही वनों में वन्य जीवन का अस्तित्त्व मिटता जा रहा हो , अभी भी समय है वन्य जीवन की रक्षा करने का ताकि हमारी आने वाली पीढियां उन्हें सिर्फ किताबों में ही न देखें। शहरी जिंदगी की भाग दौड़ से अलग ये क्षेत्र हमेशा इन्सान को सकूं पहुंचाते रहे हैं। पर्यावरण की रक्षा करना हमारा धर्म है। यह बात सबको सीखनी चाहिए .
बढ़िया चित्र और प्रस्तुति डाक्टर सहाब, हम लोग भी सोचते रह गए किन्तु अभी तक जा नहीं पाए इस जगह।वैसे पूरा ही देश जंगल बन गया है इसलिए जंगली प्राणी वहाँ से पलायन कर चुके :)
ReplyDeleteऐसे परिवेश में परिणय वार्षिकी का आनन्द स्वयं में एक रुमानी रोमांच है -चित्र सुन्दर हैं . तनिक विलंबित हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteशुक्रिया अरविन्द जी।
Deleteवाह! आनंददायक यात्रा का सजीव वर्णन किया है आपने। ब्लॉगिंग और फोटोग्राफी के शौक ने चित्र भी खिंचवाये और जानकारी भी दी। शादी हर वर्षगांठ के बाद तस्वीर देखकर लगता है कि आपकी उम्र एक वर्ष कम हो गई है। :) ..बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteक्या कह रियो हो पाण्डेय जी ! :)
Deleteचित्रमय प्रस्तुति मगर सोचने को विवश करती हुयी
ReplyDeleteबहुत प्यारी सार्थक जानकारी भरी पोस्ट. बहुत बहुत शुभकामनायें रिश्तों पर कलंक :पुरुष का पलड़ा यहाँ भी भारी .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MANजाने संविधान में कैसे है संपत्ति का अधिकार-1
ReplyDeleteयह सही रहा ... वैवाहिक वर्षगांठ की पार्टी और जंगल की सैर दोनों साथ साथ ... क्या बात है !
ReplyDeleteहमारी ओर से वैवाहिक वर्षगांठ की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें स्वीकार करें !
वैवाहिक वर्षगांठ के अवसर पर बधाई शुभकामनाएं ... बढ़िया फोटो बढ़िया विवरण लगा ...
ReplyDeleteवाह!रोचक आनंददायक यात्रा के साथ साथ वैवाहिक वर्षगांठ यह तो कमाल कर दिया दाराल साहब,,,
ReplyDeleteवैवाहिक वर्षगांठ की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें,,,,
Recent Post : अमन के लिए.
मैरेज एनिवर्सरी की वधाई सर. बढ़िया वृतान्त
ReplyDeleteशुक्रिया शिवम् , महेन्द्र मिश्र जी , भदोरिया जी , राय जी।
Deleteवैसे मै भी इसी साल फरवरी मे कार्बेट (ढिकाला ) गया था और सौभाग्य से दो बाघों के दर्शन हुए .
ReplyDeleteजी हाँ , ढिकाला में सबसे बढ़िया चांस रहता है। लेकिन हमें दुर्गा देवी गेट का परमिट मिला। वहां तो कुछ भी नहीं था। अगली बार ढिकाला का ही टिकेट कटवाना है।
Deleteशेर आपके ड़र कर छुप गये थे।
ReplyDeleteलेकिन गर्जना तो दूर , हमने तो चूं तक नहीं की थी ! :)
Deleteहार्दिक शुभकामनायें आपको ....सभी चित्र बहुत सुंदर हैं
ReplyDeleteवाह आपने तो बढ़िया घुमा दिया
ReplyDeleteशुक्रिया डॉ। साहब। प्राकृतिक दृश्यावली देखकर आनंद आ गया। अपनी तो जिंदगी रामनगर के पड़ोस में ही गुज़री लेकिन कभी जाना न हो सका। गरजिया माता के मंदिर की तस्वीर भी लड़ा देते तो और अच्छा होता।
ReplyDeleteवैवाहिक वर्षगांठ के अवसर पर बधाई शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteनवरात्रों की बधाई स्वीकार कीजिए।
अरे हाँ, वैवाहिक वर्षगाँठ की भी शुभकामनाएँ आपको और भाभी जी को..
वाह, यह स्थान तो मन को भा गया..
ReplyDeleteऔर वैवाहिक वर्षगाँठ की ढेरों शुभकामनायें भी।
ReplyDeleteआपको शेर न मिला , मगर हमें नयनाभिराम दृश्य मिले आपके सौजन्य से .
ReplyDeleteकुछ शे'र गुनगुनाकर शेर की कमी पूरी कर ली होगी .
वैवाहिक वर्षगाँठ की बहुत बधाई !
शेर मिल भी जाता तो क्या होता बन्दर कौन सा बुरा है:)
ReplyDeleteबढ़िया फोटोग्राफ खींचे हैं ..बधाई आपका !
कई बार सोचा है इस जगह जाने को पर हर बार रह जाती है ....
ReplyDeleteपर आपके चित्रों ओर लेखन ने इतनी उत्सुकता जगा दी की अगली बार सपरिवार जाना ही पड़ेगा ...
आपको शादी की सालगिरह मुबारक ...
चित्र देख कर लग रहा है काफी कुछ बदल गया वह इलाका. बस एक बात जो नहीं बदली वह यह कि आज से २०- २५ साल पहले भी वहां जाने वाले हर व्यक्ति की शिकायत थी कि जो जानवर देखने गए थे वे तो मिले ही नहीं, और आज भी वही है.
ReplyDeleteपरन्तु सौन्दर्यकरण गज़ब का हुआ है इतने वर्षों में.आभार इतने सुन्दर चित्रों के लिए.
डॉ साहब आपने सच कहा शेर न मिल्या कोय मानुष इतना हिसक हो गया है कि वह पशुता में सबसे आगे निकल गया ...
ReplyDeleteखुबसूरत फोटो सहित शानदार वर्णन बधाई शेर न मिलने की .....
विवाह की वर्षगांठ मुबारक हो.
ReplyDeleteकोर्बेट पार्क तो टाइगर रिजर्व पार्क है तो शेर मिलने तो मुश्किल है यद्यपि वहाँ हमे टाइगर भी कभी नहीं दिखे. हाँ जंगल की सैर का अनुभव अपने आप में ही रोमांचक है. फिर वहाँ की अडवेंचर स्पोर्ट्स एक्टिविटीज मन को बहुत आनंदित करती है और नयी उर्जा का संचलन करती है.
जी सही कहा। बाघों के क्षेत्र में शेर ढूंढेंगे तो कैसे मिलेंगे !
Deleteलेकिन अफ़सोस , हमें तो गीदड़ भी नहीं दिखा। लगता है , अब पेपर पर ही रह गए हैं। लेकिन प्राकृतिक सौन्दर्य ग़ज़ब का है।
बहुत सुंदर चित्र, आपको ढेरों बधाईयां जी.
ReplyDeleteरामराम.
शेर दिखता तो शायद इन सब पर हावी हो जाता.
ReplyDeleteशेरनी तो साथ थी ना, फिर क्या देखना शेर का! आपको विवाह की वर्षगाँठ की बधाई।
ReplyDeleteदेर से आपको शादी की वर्षगांट की मुबारकबाद..भारत में शेरों की संख्या इतनी कम है कि दिखना मुहाल है..उसपर कहा जाता है कि शेर का दिखना भाग्य की बात होती है..पर हकीकत में हमने बाघों को संरक्षण देने के नाम पर पैसा तो बहाया है पर वो पैसा बाघों तक पहुंच नहीं पाया जिससे वो बेचारे पुनर्वास नहीं कर सके..न ही घर बना सके...जो जंगल थे वहां इंसान के डर से वो पलायन कर गए हैं..
ReplyDeleteअच्छा प्रयास है ....:))
ReplyDeleteवर्षगाँठ मनाने अकेले ही गए थे ....? तस्वीर तो अकेले की है .....??
बहुत खूबसूरत जगह है ...उससे खूबसूरत आपका वर्णन ....
यहाँ भी एक्कोलैंड करके एक पार्क है बहुत ही खूबसूरत .....दिल भरता ही नहीं सौन्दर्य को देखकर ....
अगली बार कुछ तसवीरें डालूंगी .....
जी , फेसबुक पर देखिये न। अब तो आप हमारी फ्रेंड भी हैं -- फेसबुक पर ! :)
Deleteबढ़िया टिपण्णी दार रोमांचक विवरण विवाह की जयंती और शेर की याद जगल की और सैर वाह !
ReplyDeleteबहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..!
ReplyDeleteवैवाहिक वर्षगांठ की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें,,