दिल्ली में एक पांच वर्षीय बच्ची के साथ हुए अमानवीय कुकृत्य से सारा देश शोकाकुल है और शर्मशार भी। क्रोधित भी है क्योंकि व्यवस्था से जैसे विश्वास सा उठ गया है। ऐसे में आम आदमी का गुस्सा उबल पड़ा है। प्रस्तुत हैं इसी विषय पर कुछ मन के उद्गार , एक कवि की दृष्टि से :
१)
दिल खुश हुआ कि, दिल्ली दमदार हुई ,
फिर एक बार पर, दिल्ली शर्मसार हुई।
कुछ जंगली भेड़ियों की कारिस्तानी से,
फिर दिल्ली में इंसानियत की हार हुई।
२)
निर्मल कोमल से, कच्ची धूप होते हैं,
बच्चे भगवान् का ही स्वरुप होते हैं।
जो मासूमों को कुचलते हैं बेरहमी से ,
उनके उजले चेहरे कितने कुरूप होते हैं।
३)
सीने में जलन है, पर रो नहीं सकती,
आँखों में नींद है, पर सो नहीं सकती।
इतने ज़ख्म दिए हैं बेदर्द ज़ालिमों ने,
इस दर्द की कोई दवा, हो नहीं सकती।
४)
खुदा का हर बंदा भगवान नहीं होता
देवता बनना भी आसान नहीं होता।
दूषित है मानवता बस एक हैवान से,
दुनिया में हर पुरुष शैतान नहीं होता।
नोट : व्यवस्था को सुधारने के साथ साथ हमें आत्मनिरीक्षण भी करना होगा। साथ ही सतर्क रहना भी आवश्यक है क्योंकि इंसानी भेड़िये कहीं बाहर से नहीं आते बल्कि इंसानों की भीड़ में ही घुले मिले रहते हैं।
सीने में जलन है, पर रो नहीं सकती,
ReplyDeleteआँखों में नींद है, पर सो नहीं सकती।
इतने ज़ख्म दिए हैं बेदर्द ज़ालिमों ने,
इस दर्द की कोई दवा, हो नहीं सकती ...
मार्मिक ... दिल में दर्द उठता है इस अत्याचार को सोच के .. पता नहीं समाज कब जागने वाला है ... इन दरिंदों का खात्मा कब होगा ...
जो कुछ हुआ वो निसंदेह निंदनीय है पर नकारत्मक चिंतन को भी प्रशंसनीय क्यों कहा जाए ? दूसरी बात, इसे व्यवस्था का दोष मानना भी कहा तक उचित है? कुकृत्य एक कुंठित सोच का नतीजा होती है, जो की व्यक्तिगत है, इसमें व्यवस्था क्या कर सकती है, यह हम समझ नहीं पा रहे है।
ReplyDeleteकुछ आपराधों की सजा मौत का प्रावधान भी है, पर इससे क्या उनमे कोई ख़ास फर्क पढ़ा है? अभी तक हमने इस विषय पर जितने लेख पढ़े है,उनमे चिंतन की जगह हमें चिंता ही नज़र आई। बड़ी अजीब बात है,की ब्लॉग जगत के बंधु लोग कागज़ी कल्पनाओं में भी आशावादी नहीं सोच सकते! हमारी नज़र में तो निराशावाद चिंतन भी अपराध ही है… इससे जहाँ तक बचा जाए उतना बेहतर…
दुआ करें की बच्ची जल्दी अच्छी हो जाए, और उसका भविष्य उज्जवल हो…
नकारात्मक चिंतन नहीं , शायद यह जनता का रोष है जो कहीं न कहीं व्यवस्था में दोष के कारण है।
Deleteबहुत पहले एक एड आता था --
प्रश्न : बच्चे को पोलिओ की दवा क्यों पिलाते हो , बच्चा तो ठीक है।
उत्तर : ताकि आगे भी ठीक रहे।
दुआ तो देश कर ही रहा है और डॉक्टर्स दवा दारू। आशावादी होना चाहिए, लेकिन यथार्थवादी होकर समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है।
:( इस दर्द की कोई दवा हो नहीं सकती।
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिकता से अपनी तडप को आपने जाहिर किया है, दिल्ली ही क्या पूरे देश के यही हाल हैं.
ReplyDeleteरामराम.
सीने में जलन है, पर रो नहीं सकती,
ReplyDeleteआँखों में नींद है, पर सो नहीं सकती।
इतने ज़ख्म दिए हैं बेदर्द ज़ालिमों ने,
इस दर्द की कोई दवा, हो नहीं सकती =बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post बे-शरम दरिंदें !
latest post सजा कैसा हो ?
आपका दर्द आज हर माँ-बाप .भाई-बहन और अच्छे-सच्चे इंसान का दर्द है ...
ReplyDeleteयह मानवता का दर्द है !
बहुत कुछ कह दिया डॉ साब ।
ReplyDelete.
.अब तो लगता है भेड़िये भी शरमा जायेंगे ऐसी हरकतें देखकर !
.
.फिर भी हम इन्सान हैं ?
कितना भी समेटा जाये परिस्थितियों को, मवाद फूट आता है।
ReplyDelete"इस दर्द की कोई दवा, हो नहीं सकती। "
ReplyDeleteजब एक कुशल चिकित्सक ऐसा कह दे तो मान लेना चाहिए कि बीमारी लाईलाज हो गयी है :-(
अरविन्द जी , बच्ची को श्रीमती जी के अस्पताल में भर्ती कराया गया था। आँखों देखा हाल सुनकर सोचिये कैसा लगा होगा।
Delete:(:(...
ReplyDeleteआभार.
ReplyDeleteकष्टदायक ..
ReplyDeleteकष्टदायक ..
ReplyDeleteजब बच्चियां अपने ही घर में असुरक्षित हैं तो क्या दिल्ली क्या भारत.....
ReplyDelete:-(
मार्मिक अभिव्यक्ति...
सादर
अनु
सरकार की व्यवस्था का दोष मानना कहा तक उचित है?कुकृत्य एक कुंठित सोच का नतीजा होती है,जो की व्यक्तिगत है,
ReplyDeleteRECENT POST: गर्मी की छुट्टी जब आये,
कुंठित और मानसिक विकृति के दो पिशाचों की वजह से एक फूल जैसी बच्ची को घोर यातना सहनी पड़ी...इन पिशाचों के बड़ी से बड़ी सज़ा भी कम है...लेकिन इसके आगे क्या...
ReplyDeleteइन्हें सरेआम गोली से उड़ा भी दिया जाए तो क्या गरंटी के साथ कहा जा सकता है कि इस तरह के अपराध समाज में फिर नहीं होंगे...
क्या दरिंदों की दिल्ली कह देने से ही हमारी ज़िम्मेदारी खत्म हो जाती है...
समस्या इससे कहीं बड़ी है...हमें सोचना होगा कि हमारे समाज में इस तरह के विकार क्यों पनप रहे हैं...हमें उसी जड़ पर चोट करनी चाहिए...
दिल्ली यूनिवर्सिटी में हर साल हज़ारों छात्र (लड़कियां भी) अपना भविष्य संवारने के लिए एडमिशन लेने आते हैं...क्या वो सभी असुरक्षित हैं...
बार बार पूरी दिल्ली को दरिंदों या हैवानों की बस्ती बताने से बाहर से पढ़ने आई इन छात्राओं के घरवालों के दिलों पर क्या बीतती होगी...
जिस तरह पांचों उंगलियां बराबर नहीं होती उसी तरह सारे पुलिस वाले भी शैतान नहीं होते...ऐसा नहीं होता तो वारदात के दो दिन में ही अपराधी नहीं पकड़े जाते...
आज चिंता से ज़्यादा सतर्क रहने की ज़रूरत है...सभी नागरिक अपनी ज़िम्मेदारी को निभाए...आसपास कोई असामान्य प्रवृत्ति का कुछ होता दिखे या कोई संदिग्ध व्यक्ति दिखे तो हरकत में आ जाए...खुद विरोध करने की स्थिति में हो तो करें...अन्यथा पुलिस को रिपोर्ट करें...सामूहिक रूप से पुलिस पर दबाव बनाएं...
ज़रूरत मीडिया जैसे मेलोड्रामे की नहीं, बल्कि चीज़ों को अलग नज़रिये से देखने की है...हम बदलेंगे तो समाज बदलेगा...समाज बदलेगा तो ये देश बदलेगा...
जय हिंद...
सही अवलोकन किया है। यहाँ बहुयामी कार्यवाई की आवश्यकता है।
Deleteआत्मनिरीक्षण के साथ -साथ हर नागरिक को अपनी सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी निभाने की भी आवश्यकता है.
ReplyDeleteवहीँ से व्यवस्था बदलनी शुरू होगी.
वर्तमान स्थिति चिंताजनक है यह तो सच है.
समाज की बेहतरी के लिये कोशिशें करते रहें हम।
ReplyDeleteसमाज को अपने लोगों पर नजर रखनी होगी। केवल होली मिलन और दीवाली मिलन या भण्डारा करने से कुछ नहीं होगा।
ReplyDeleteसिर्फ सतर्कता ही रोकथाम में आंशिक रुप से कारगर हो सकती है । माँ-बाप की भी और प्रत्यक्षदर्शियों की भी.
ReplyDeleteआखिर इस दर्द की दवा क्या है?
ReplyDeleteबढ़िया कविता और सही कहा आपने की व्यवस्था को सुधारने के साथ साथ हमें आत्मनिरीक्षण भी करना होगा|
ReplyDeleteबलात्कार की बढती घटनाओं का कारण समाज का पतन है... समाज में मूल्यों का ह्रास, रास-रंग से तनाव को दूर करने की कोशिश और लोगो को गिराने की कीमत पर भी आगे बढ़ने की आपा-धापी में लगता है इंसानियत कही पीछे ही छूट गयी है।
ReplyDeleteye blatkaar ese hi hoten rahenge kyonki hm logon ne apni snskriti ko thukrakr videshiyon ki snskriti ko apnaya he
ReplyDeleteChanakya काल ही मिर्त्यु प्रदान करता हे
http://www.bharatyogi.net/2013/04/chanakya-quotes.html
bhavuk kar dene vali rachana . sahamat hun vyavastha sudharane ke pahale khud ka atmamanthan jaruri hai ... abhaar
ReplyDeleteकविता आक्रोश और संवेदना को भलीभांति प्रस्तुत करती है .
ReplyDeleteहर नया दिन दुनिया में अविश्वास की नींव को पुख्ता करता जाता है :(.
सहमत हूँ आपकी बात से
ReplyDelete
ReplyDeleteसमाज में नारी की स्थिति हमारे नागर बोध हमारी civility का पैमाना है .हम साइकोपैथ समाज बन रहें हैं .
इसी बात का गम है दराल सर।
ReplyDelete............
एक विनम्र निवेदन: प्लीज़ वोट करें, सपोर्ट करें!
लीजिये , आपकी विनम्रता का आगे हमें झुकना ही पड़ा।
Deletesharmsaar..
ReplyDeleteदूषित है मानवता बस एक हैवान से,
ReplyDeleteदुनिया में हर पुरुष शैतान नहीं होता।
..........बहुत ही मार्मिकता से जाहिर किया है आपने
आज दिल्ली ही नही हम भी शर्मशार हैं..बहुत मार्मिक.. अभिव्यंजना में आप का स्वागत है..
ReplyDeleteखुदा का हर बंदा भगवान नहीं होता
ReplyDeleteदेवता बनना भी आसान नहीं होता।
दूषित है मानवता बस एक हैवान से,
दुनिया में हर पुरुष शैतान नहीं होता।
माना कि दुनिया का हर पुरुष शैतान नहीं होता मगर इंसान के रूप में छुपे हुए भेड़ियों को कोई पहचाने कैसे... :(