कुछ समय से एक भी ब्लॉग पोस्ट नहीं लिख पा रहे हैं हम। सच तो यह है कि कोई आइडिया ही नहीं आ रहा। लगता है जैसे थॉट ब्लॉक हो गया है। पहले जहाँ नित नए आइडिया दिमाग में घूमते रहते थे, अभिव्यक्त होने के लिए मचलते रहते थे , वहीँ अब जैसे कहीं अटक से गए हैं। जोर लगाने पर भी कोई आइडिया नहीं आ रहा जिस पर कुछ लिखा जाये। ठीक वैसा हाल है जैसा किसी प्रोस्टेट के मरीज़ का होता है कि पेशाब करने के लिए जितना जोर लगाओ उतना ही अवरुद्ध होता है।
इसके कई कारण हो सकते हैं। जैसे काम में अत्यधिक व्यस्तता , ब्लॉगिंग में ब्लॉगर्स की रूचि कम होना या फिर फेसबुक की ओर सभी का झुकाव होना। बेशक काम बढ़ने से ज्यादा ध्यान उधर ही रहता है , इसलिए इधर कम हुआ है। ऐसा सभी के साथ हुआ लगता है। लेकिन यह ही सच है कि वे सब ब्लॉगर्स जो पहले ब्लॉग्स पर नज़र आते थे , अब फेसबुक पर वक्त गुज़ारा करते हैं।
यह भी मानवीय प्रवृति ही है कि वह एक जगह ज्यादा देर तक नहीं टिक पाता। उसकी यही बेचैनी आखिर विकास में भी सहायक सिद्ध हुई है। निरंतर आगे बढ़ते रहने का नाम ही विकास है। जहाँ थम गए , समझो वहीँ जम गए। और जमने के बाद तो बस फॉसिल ही बनता है। फिर फॉसिल बनने की क्या जल्दी है !
आजकल एक ऐड fm पर सुनता हूँ ; फोन बदलिए, वाट एन आइडिया सर जी :)
ReplyDeleteफेस बुक के कारण ही लोगो का झुकाव ब्लोगिंग तरफ कम हो गया है ,,,
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनायें!
Recent post: रंगों के दोहे ,
फासिलों की नईं पनपती फसलें :-)
ReplyDeleteफॉसिल बनने की जल्दी?????
ReplyDeleteफॉसिल भी कभी जल्दी बना करते हैं?????
वैसे ये थॉट ब्लॉक सभी को होता है....देखिएगा आपकी अगली पोस्ट कुछ ख़ास होगी.
और ब्लॉग से बेरुखी अच्छी नहीं.
सादर
अनु
Deleteजी बेरुखी नहीं है। पर समय न दे पाने का कष्ट है।
फेस बुक ध्यान बंटा रहा है,ब्लॉग में लौट आयेंगे तो विचार भी लौट आयेंगे -फासिल नहीं बनेंगे
ReplyDeletelatest post भक्तों की अभिलाषा
latest postअनुभूति : सद्वुद्धि और सद्भावना का प्रसार
अपनी ब्लोगिंग ही सही ...
ReplyDeleteहम तो ब्लॉग पर ही धरना दिए बैठे हैं, फ़ेसबुक की मौज भी ले लेते हैं।
ReplyDeleteऐसा है नही जैसा आप सोच रहे हैं, थाट ब्लाक जैसा महसूस हो रहा है इसका मतलब थाट बहुत ज्यादा हैं, जल्दी ही फ़ूट पडेंगे....चिंता ना किजिये.
ReplyDeleteयदि थाट फ़ूटने का नाम ना ले तो ताऊमाईसिन की दो दो गोलियां सुबह शाम खायें.:) एकदम सोता सा फ़ूट पडेगा.:)
रामराम
बेशक विचार तो बहुत हैं , लेकिन कुछ और ही। :)
Deleteआज आपकी यह पोस्ट पढ़कर किशोर कुमार का गया हुआ एक गीत याद आ गया आपने भी सुना होगा ज़रूर मेरे पसंदीदा गीतों में से एक गीत है वो
ReplyDelete"एक रास्त है ज़िंदगी जो थम गए तो कुछ नहीं,
यह कदम किसी मुकाम पे जम गए तो कुछ नहीं"
आज की ब्लॉग बुलेटिन चटगांव विद्रोह के नायक - "मास्टर दा" - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteब्लॉगर और डॉयनासोर...कुछ कुछ मिलता ही मामला है...जब डॉयनासोर्स ने बढ़ते बढ़ते दुनिया में अति कर दी थी तो दुनिया से विलुप्त हो गये...बस उनके जीवाश्म (फॉसिल) ही रह गए...कहीं ब्लॉगर्स के साथ भी तो ये नहीं हुआ...
ReplyDeleteजय हिंद...
खुशदीप भाई , फर्क यह है कि डायनासौर सारे लुप्त हो गए जबकि ब्लॉगर्स नित नए तो आ रहे हैं। लेकिन पुराने लुप्त हो जाते हैं।
Deleteब्लाग पर लिखने के लिये पूरा प्लाट सोचना और कम से कम पूरा पेज लिखना अनिवार्य लगता है जैसे 3 घंटे का भारतीय सिनेमा, जबकि फेसबुक पर लिखने वालों का काम चंद शब्दों या कुछ ही लाईनों में पूरा हो जाता है जैसे 20 मिनीट का टी. वी. सीरियल.
ReplyDeleteशायद इसीलिये आपके शब्द फासिलों की संख्या कुछ तेजी से बढ रही लगती है.
सही कहा।
Deleteमुझे भी लगता है फॉसिल बनाने की प्रक्रिया शुरूहो चुकी है ...
ReplyDeleteपढना लिखना सतत बना रहे तो ही विचार भी आते हैं.... नहीं तो सच में थॉट ब्लॉक की स्थिति आ ही जाती है
ReplyDeleteमोनिका जी , पढना लिखना तो हो रहा है लेकिन ब्लॉग्स पर नहीं। मजबूरी है।
Deleteथॉट प्रोसेस का ब्लोक हटाकर प्रोस्टेट जैसी तमाम बीमारियों का इलाज़ ढूँढने का कार्य आप जितना जल्दी हो सके समाप्त कर ब्लॉग सक्रियता का ग्राफ सुधारिये. यही अनुरोध है. वर्ना ब्लॉग में जितने लोग बचे हैं वह भी भाग जायेंगे.
ReplyDeleteजी , इसी बात की चिंता है। :)
Deleteचिट्ठाजगत और ब्लॉग वाणी के बंद होने के आड़ ब्लोगिंग के बारे में सही डाटा नहीं मिल पा रहे है बस , बाकि ब्लोगिंग तो अपनी रफ़्तार से चल ही रही है कुछ पुराने ब्लॉगर निष्क्रिय हुए है तो उनसे ज्यादा नए भी आ रहें है |
ReplyDeleteफेसबुक की वजह से ब्लोगिंग में आने वाले लेखों की कमी तो हुई है पर फेसबुक के माध्यम से ब्लॉगस पर पाठकों की संख्या में भी इजाफा हुआ है|
जब गीदड़ का लाइसेंस अनपढ़ कुत्तों के आगे काम ना आया
शेखावत जी , नए तो आ रहे हैं लेकिन उन्हें पैर ज़माने में समय लगेगा।
Delete.
ReplyDelete.
.
@ यह भी मानवीय प्रवृति ही है कि वह एक जगह ज्यादा देर तक नहीं टिक पाता। उसकी यही बेचैनी आखिर विकास में भी सहायक सिद्ध हुई है। निरंतर आगे बढ़ते रहने का नाम ही विकास है। जहाँ थम गए , समझो वहीँ जम गए। और जमने के बाद तो बस फॉसिल ही बनता है। फिर फॉसिल बनने की क्या जल्दी है !
मतलब अब आप भी फेसबुक की राह पर हैं, सर जी... :(
...
कुछ कुछ। लेकिन समय का अभाव इस वज़ह से नहीं है।
Deleteलक्षण देखकर सटीक सम्भावित निदान किया है डॉक्टर साहब आपने!! :)
ReplyDeleteऐसे स्थिर योग से जीवाश्म (फॉसिल) बनने की सम्भावनाएं प्रबल बनती जाती है। वस्तुतः ब्लॉगर मानसिक कसरत का अभिलाषी होता है, चर्चाएं और चर्चाओं के माध्यम से नए विचार पाना उसका लक्ष्य होता है। स्थिरता में बोरियत महसुस होती है, तरंगे चाहिए। हलचल और चहल-पहल चाहिए। शायद ज्वलंत मुद्दों की कमी है। अथवा फिर शॉक ट्रीटमेंट्…… कि शिथिल काया कुछ प्रतिक्रिया दर्शाए और रिएक्ट करे……… :)
कुछ पुराने लोग सक्रीय हो जाएँ तो रंग लौट आएगा। ताऊ रामपुरिया ने शुरुआत कर दी है।
Deleteसाथ ये छूटे ना
ReplyDeleteतू हमसे रूठे ना
ब्लॉग ये छूटे कभी ना...
इसी दुआ के साथ
प्रणाम
दाराल साहब ब्लॉग में जो लोग मात्र मौज मस्ती के लिए आये, जिन्होंने ब्लॉग को कभी सीरियस नहीं लिया , वो बहुत जल्दी ब्लॉग से ऊब गए और फेसबुक की तरफ मुड गए और फॉसिल बनने की ओर अग्रसर हो गए. जो लोग फेस बुक को मजे लिए देखने गए और अपनी जड़ों से जुड़े रहे वो फॉसिल कभी नहीं बनेंगे और विचारों से ब्लोक भी नहीं होंगे . मर्ज का जल्दी डायग्नोस के लिए बधाई डाक्टर साहब .
ReplyDeleteयही प्रयास रहेगा कुश्वंश जी।
Deleteकभी कभी विचार भी ट्रैफिक जाम की तरह जाम हो जाते है ऐसा हम सबके साथ होता है
ReplyDeleteचिंता मत कीजिये थोडा इंतजार कीजिये फिर से मनमाफिक लिख सकेंगे !
फेसबुक तो सुबह के ब्रेकफास्ट जैसा है लंच डिनर तो ब्लॉग पर ही होना है !
प्रवाह बनाये रखिये, यदि बाहर नहीं आ रहा है तो ग्रहण करना प्रारम्भ कर दीजिये, लिखना नहीं सूझ रहा है तो पढ़िये।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (24-03-2013) के चर्चा मंच 1193 पर भी होगी. सूचनार्थ
ReplyDeleteडॉ साहब आपने सही कहा शायद बदलाव चाहता है मन और इस आभासी दुनिया में ये सब हो जाना कोई बड़ी बात नहीं
ReplyDeleteफाग मुबारक फाग की रीत और प्रीत मुबारक .हजरते दाग जहां बैठ गए ,बैठ गए वैसे कुछ लोग दोनों जगह बने हुए हैं .
ReplyDeleteफाग मुबारक फाग की रीत और प्रीत मुबारक .हजरते दाग जहां बैठ गए ,बैठ गए वैसे कुछ लोग दोनों जगह बने हुए हैं .फेसबुक पर भी ब्लॉग पर भी ट्विटर पर भी .
Virendra Sharma @Veerubhai1947 21m
ReplyDeleteram ram bhai
मुखपृष्ठ
शनिवार, 23 मार्च 2013
आखिर सारा प्रबंध इटली का ही तो है यहाँ .
http://veerubhai1947.blogspot.in/
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Virendra Sharma @Veerubhai1947 26m
इटली के ही पास गिरवीं है भारत की नाक http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2013/03/blog-post_23.html …
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आइडियाज़ तो आते ही रहेंगे और ब्लोगिंग भी चलती रहेगी,
ReplyDeleteकुछ दिनों का अन्तराल भले ही हो जाए
फेसबुक से ब्लॉग का मार्ग बहुत बुरी तरह से अवरुद्ध हो चुका है :))
ReplyDeleteउधर डा.दराल को ब्लॉग लिखने के लिये आइडिया ही नहीं मिल रहा वे लिखते हैं:
ReplyDeleteजोर लगाने पर भी कोई आइडिया नहीं आ रहा जिस पर कुछ लिखा जाये। ठीक वैसा हाल है जैसा किसी प्रोस्टेट के मरीज़ का होता है कि पेशाब करने के लिए जितना जोर लगाओ उतना ही अवरुद्ध होता है।
हमारी शिकायत इससे एकदम उलट रहती है। हमारे पास इत्ते आइडिया रहते हैं कि उन पर अमल न होने पर वे भुनभुनाते रहते हैं और कहते हैं:
हम पर फ़ौरल अमल किया जाये। आप हमारे सेवक हैं। अगर हम पर अमल न हुआ तो हम फ़ौरन अनशन पर बैठ जायेंगे। आमरण अनशन कर देंगे।
वैसे ब्लॉग और फ़ेसबुक की रगड़-घसड़ पर कल ही हमारे फ़ेसबुक मित्र अजय त्यागी ने अपनी दीवाल पर लिखा:
ये ब्लाग वाले फेसबुक वालों की लाईक-कामेंट संपन्नता देख-देखकर इतना जलते क्यों हैं। जब देखो कोई ना कोई पीछे पडा रहता है.....:)
हा हा हा ! फेसबुक पर ये लाइक करने का खेल बहुत बढ़िया है। बस आँख बंद कर करते जाओ। खुद भी खुश , दूसरा भी खुश। और तो और , लोग तो किसी शोक सन्देश या अप्रिय घटना को भी बड़े चाव से लाइक कर निकल जाते हैं। इससे तो लाइक भी डिसलाइक सा लगने लगता है।
Deleteवैसे भैया , क्यों न आइडियाज की ट्रेडिंग शुरू कर दी जाये। एक के साथ एक फ्री ! :)
विचारों की त्वरित अभिव्यक्ति फेसबुक पर होती है , मगर ब्लॉगिंग विस्तार मांगता है . कई ब्लोगर्स अपनी पुरानी पोस्ट को धो पोंछ कर लगा देते हैं इस ब्लॉक से मुक्ति पाने के लिए , जब तक कि दुसरे विचार धावा नहीं बोलते !
ReplyDeleteबढ़िया आइडिया है वाणी जी। दरअसल मैं स्वयं भी यही सोच रहा था। जल्दी ही आता हूँ एक धमाकेदार पोस्ट के साथ , जैसा कि रचना जी ने भी कहा है।
Deleteहम सब को मिलकर फिर प्रयास करना होगा।
ReplyDeleteकहीं आप भी तो फेसबुक की तरफ नहीं जा रहे ... ब्लोगिंग छोड़ तो नहीं रहे ...
ReplyDeleteऐसा जुल्म न करें ...
होली है अभी तो कई हास्य रचनाएं बाकी हैं आपकी आनी ...
शुभकामनाएं होली की ...
बिलकुल सही कहा आपने कभी - कभी आईडिया नहीं आता दिमाग में ...और उसके सबके अलग - अलग कारण होते हैं ..
ReplyDeleteपधारें " चाँद से करती हूँ बातें "
ब्लागर्स अपना 'आत्मावलोकन'करें कि उनमे अहंकार क्यों है जो लोग उनमे दिलचस्पी कम ले रहे हैं। मुझे तो ब्लाग पोस्ट्स की रीडिंग संख्या बढ़ाने मे फेसबुक बेहद मददगार लगता है। रही बात टिप्पणी की तो हो या न हो उससे क्या फर्क ?क्या टिप्पणी के आधार पर कोई भी पोस्ट अमेंड करता है?यदि नहीं तो न आना चिंता का सबब क्यों?
ReplyDeleteहोली मुबारक
अभी 'प्रहलाद' नहीं हुआ है अर्थात प्रजा का आह्लाद नहीं हुआ है.आह्लाद -खुशी -प्रसन्नता जनता को नसीब नहीं है.करों के भार से ,अपहरण -बलात्कार से,चोरी-डकैती ,लूट-मार से,जनता त्राही-त्राही कर रही है.आज फिर आवश्यकता है -'वराह अवतार' की .वराह=वर+अह =वर यानि अच्छा और अह यानी दिन .इस प्रकार वराह अवतार का मतलब है अच्छा दिन -समय आना.जब जनता जागरूक हो जाती है तो अच्छा समय (दिन) आता है और तभी 'प्रहलाद' का जन्म होता है अर्थात प्रजा का आह्लाद होता है =प्रजा की खुशी होती है.ऐसा होने पर ही हिरण्याक्ष तथा हिरण्य कश्यप का अंत हो जाता है अर्थात शोषण और उत्पीडन समाप्त हो जाता है.
फ़ेसबुक पर जाना गोलगप्पे की दुकान पर हो आने जैसा है, स्वाद बदल जाता है...
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