जब विद्यालय परिसर में सफाई होने लगे, पानी का छिडकाव हो
और चूना लगाकर सजाया जाये तो समझो --- वी आई पी विजिट का तनाव आने वाला है।
जब शहर की सडकें जगमगाने लगें , तारकोल का ताज़ा भराव हो
और फुटपाथ को तोड़कर दोबारा बनाया जाये तो समझो --- शहर में चुनाव आने वाला है।
जब सब्जियां भी मुर्गियां सी बिकने लगें , टमाटर के ऊंचे भाव हो
और मंडी से प्याज़ नदारद पाया जाये तो समझो--- सत्ता में बदलाव आने वाला है।
जब आपको आप के एस एम एस आने लगें , टोपी का पहनाव हो
और हाथ में तिरंगे की तरह झाड़ू उठाया जाये तो समझो -- इंकलाब आने वाला है।
जब पत्नि बिना बात मुस्कराने लगे, बदले बदले से हाव भाव हो
और आपको सर आँखों पर बिठाया जाये तो समझो--- कोई महंगा प्रस्ताव आने वाला है।
जब माटी की सोंधी सोंधी सुगंध आने लगे, पीपल की शीतल छाँव हो
और बांसुरी पर गडरिया प्रेम धुन सुनाता जाये तो समझो--- प्रीतम का गाँव आने वाला है।
जब मन बेचैन हो और काम से कतराने लगे, सीने में दर्द का घाव हो
और रह रह के बदन में झुरझुरी सी आ जाये तो समझो-- इश्किया ताव आने वाला है।
जब उठते बैठते घुटने कड़ कड़ करने लगें , गोलियों से लगाव हो
और आपको मेट्रो में बुजुर्गों की सीट पर बिठाया जाये तो समझो , बुढ़ापे का पड़ाव आने वाला है !
जब लड़के हाथ में हाथ डाल कर चलने लगें , बदन में बालियों का फैलाव हो
और बालों को इन्दरधनुषी रंगों से रंगा जाये तो समझो ,संस्कृति में बिखराव आने वाला है।
कुछ अच्छा होने का संकेत भी संदेहों से परिपूर्ण लगता है. आज की सच्चाई पर सुंदर व्यंग.
ReplyDeleteगहन अनुभव से निकली बातें ! :-)
ReplyDeleteजब कोई आने वाला होता है तभी शुभ होता है, ईश्वर करे कोई न कोई आता रहे।
ReplyDelete...हमारे काम का आखिरी सूत्र है !
ReplyDeleteवाकई अनुभव तगड़ा है ...
ReplyDeleteबस मन बेचैन न हो जाए :)
शुभकामनायें !
वाह! हर एक लाइन माय्नेखेज़ है।
ReplyDeleteअच्छे काम के पीछे कोई न कोई तो कारण होगा ही :):)
ReplyDeleteरोजमर्रा की बातों से हटकर कुछ अलग दिखलाई पड़ता है तो जान लेना चाहिए की कुछ होने वाला है
ReplyDeleteRecent Post दिन हौले-हौले ढलता है,
बहुत ही गजब सोच से लिखा है. पर लगता है अब प्यारा गाँव कभी नही आयेगा. ना जाने सौंधी महक वाले प्यारे गाँव से कितनी दूर इस बदबूदार और भूलभुलैया वाले महानगरों में हम लोग आ निकले हैं.
ReplyDeleteरामराम.
Deleteइसीलिए प्यारा लगता है। एक फार्म हाउस हो तो कैसा हो ! :)
पढ़ के झुरझरी सी आण लाग री सै :)
ReplyDeleteफुरफुरी तो नहीं आई ना। :)
Deleteबहुत बढ़िया.....
ReplyDeleteआखरी दो मिसरे तो लाजवाब....
(राजनीति में रूचि कम है वरना पहले तीन भी बढ़िया...)
बीच का एक स्त्री होने के नाते खटक गया :-)
सादर
अनु
जी हाँ।
Deleteपुरुषों का दर्द तो पुरुष ही समझ सकते हैं। :)
एक वो स्त्री वाला छोड़ कर बाकी सब बढ़िया लगे :).
ReplyDeleteबिल्कुल डाक्टरी अंदाज की कविता है, बधाई।
ReplyDelete्डाक्टर साहब सब बीमारियों के क्या खूब लक्षण बताये हैं अब निदान भी बता दीजियेगा :)
ReplyDeleteवाह !भाव और व्यंग्य विनोद का कैप्स्यूल एक साथ क्या कोम्बो मेडिसन है .
ReplyDeleteजब तबीयत किसी पे आती है ,
मौत के दिन करीब होते हैं .
सामाजिक रोगों का भी काफी अनुभव है आपको . निदान भी बताइए .
ReplyDeletelatest postमेरे विचार मेरी अनुभूति: पिंजड़े की पंछी
अजित जी की बात से सहमत हूँ वाकई बिल्कुल डाक्टरी अंदाज की कविता है, बधाई।
ReplyDeletebahut khoob.
ReplyDeletethanks.
CHANDER KUMAR SONI
WWW.CHANDERKSONI.COM
चिकित्सकीय अनुभव कविताई के काम आता है , मगर स्त्री के मामले में कभी कभी फेल भी हो जाता है !
ReplyDeleteबिलकुल सटीक पंक्तियाँ कहीं.....
ReplyDeleteबहुत खूब ..... आपको धन्यवाद ............
ReplyDeleteआप भी पधारो आपका स्वागत है ....pankajkrsah.blogspot.com
जब पत्नि बिना बात मुस्कराने लगे, बदले बदले से हाव भाव हो
ReplyDeleteऔर आपको सर आँखों पर बिठाया जाये तो समझो--- कोई महंगा प्रस्ताव आने वाला है।-----हा हा हा सही समझा वैसे तो सभी पंक्तियाँ अच्छी हैं सच्ची हैं पर ये तो सबसे अव्वल है बधाई इस दिलचस्प प्रस्तुति हेतु.
Deleteधन्यवाद राजेश जी। .
हालाँकि इस पर तो काफी मतभेद नज़र आ रहा है। :)
बहुत खूब ... लगता है कुछ तो होने वाला है ...
ReplyDeleteसभी ख्याल सच ओर दिलचस्प .... मज़ा आ गया ...
जब माटी की सोंधी सोंधी सुगंध आने लगे, पीपल की शीतल छाँव हो
ReplyDeleteऔर बांसुरी पर गडरिया प्रेम धुन सुनाता जाये तो समझो--- प्यारा गाँव आने वाला है।
सभी लाइन अपने आप में खुबसूरत एहसास लिए . लेकिन इसमें मेरे गाँव की मति की सोंधी महक ने जगा दिया
सभी लाइन अपने आप में खुबसूरत एहसास लिए . लेकिन इसमें मेरे गाँव की माटी की सोंधी महक ने जगा दिया
ReplyDeleteबहुत बढ़िया बिम्ब और परिवेश बटोरा है रियलिटी बाइट्स का .शुक्रिया आपकी टिपण्णी और प्रेक्षण का शहरी ही ज्यादा लापरवाह और अनियमित होते हैं खाने पीने के समय को लेकर .
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