रविवार का दिन था। सुहानी धूप खिली थी। सोच ही रहे थे कि कई दिनों बाद खिली धूप का आनंद कैसे लिया जाये कि तभी साले साहब का फोन आया कि एक कार्यक्रम में जा रहे हैं। शायद हमें भी पसंद आये। कार्यक्रम क्योंकि घर के पास ही था , इसलिए बिना सोचे कि क्या है , हम निकल पड़े। कार्यक्रम स्थल पर गाड़ियों की लाइन लगी थी। लोग तेजी से आ रहे थे। जगह जगह कुछ लोग आदर सहित सबका हाथ जोड़ कर स्वागत कर रहे थे। हमें भी कई बार लगा जैसे ये हमें जानते हैं , तभी इतना मुस्करा कर स्वागत कर रहे हैं। एक सज्जन तो डॉक्टर ही थे, सोचा ये तो अवश्य जानते होंगे। पंडाल में पहुँच कर हमें बड़े प्यार से रास्ता दिखाया गया। हमने साले साहब से पूछा कि यह सब क्या है। उन्होंने कहा , कुछ नहीं , बस चलिए मंच पर सजदा करना है। एक असमंजस्य की स्थिति में हम यंत्रवत से मंच से होकर आगे बढ़ गए। लोग लेटकर एक फोटो को दंडवत प्रणाम कर रहे थे। पता चला वो कोई गुरूजी थे , जिनके ये सब अनुयायी थे।
पंडाल में हजारों की संख्या में भक्तजन इकट्ठे हुए थे जो बड़ी श्रद्धा से हाथ जोड़कर बैठे सुन रहे थे , लेकिन प्रवचन देने वाला कोई नहीं था बल्कि एक सज्जन अपनी आप बीती सुनाते हुए बता रहे थे कि किस तरह गुरूजी ने उन्हें जीवन दान दिया और उनकी कृपा से उनके सारे कष्ट दूर हो गए।
उसके बाद वही डॉक्टर जो हमें प्यार से मिला था, माइक पकड़ कर रोने लगा। पता चला , वह सारा कार्यक्रम उसी ने आयोजित किया था जो उन गुरूजी का परम भक्त था। पता नहीं वह कैसा डॉक्टर था लेकिन एक बात निश्चित थी कि वह तथाकथित गुरूजी पर बहुत विश्वास रखता था। बल्कि यूँ कहिये वहां जितने भी लोग थे , वे सभी गुरूजी पर पूर्ण विश्वास रखने वाले प्रतीत हो रहे थे।
लेकिन सच पूछिए तो हमें तो उनकी कहानियां सुनकर बड़ा अटपटा लग रहा था। यह भी समझ में आ रहा था कि मनुष्य की सायकोलोजी उसकी सोच को कितना प्रभावित करती है। यह साफ़ ज़ाहिर हो रहा था कि कैसे लोग सुनी सुनाई बातों पर विश्वास करने लगते हैं और पक्की धारणा बना लेते हैं।
हमने भी बैठकर ध्यान से लोगों को जांचा परखा। मंच पर मस्तक टेक कर जो भी सामने से गुजर रहे थे , सबके चेहरे अत्यंत गंभीर और चिंतित नज़र आ रहे थे। भृकुटियाँ तनी हुई, चेहरे पे हवाइयां उडी हुई , मानो मृत्यु को साक्षात् देख कर आ रहे हों। भगवान ( गुरूजी ) के दर्शन कर इतना परेशां लोगों को पहली बार देखा।
वहां का दृश्य देखकर टी वी वाले कृपालु महाराज याद आ गए। लेकिन हैरानी की बात यह थी कि जाने संसार में कितने कृपालु महाराज भरे पड़े हैं जो अपनी कुशाग्र बुद्धि के बल पर हजारों लाखों लोगों को वशीभूत कर लेते हैं। वर्ना एक हार्ट अटैक के रोगी का इलाज़ डॉक्टर कर सकता है या गुरूजी, यह सोचने की बात है ! हालाँकि वहां मौजूद हजारों पढ़े लिखे धनाढ्य लोगो की श्रद्धा को देखकर हम तो अल्पसंख्यक ही महसूस कर रहे थे।
प्रवचन सुनने के बाद सभी शराफत से पंक्तिबद्ध खड़े थे। खाने के मामले में अनुशासन बहुत बढ़िया था। गुरूजी का प्रसाद समझ कर सबने इत्मिनान से कार्पेट पर बैठकर भोजन किया।
अंत में यही लगा कि श्रद्धा होना या न होना अलग बात है , लेकिन दुनिया में कोई मनुष्य भगवान कैसे हो सकता है। हकीकत यही है कि हम सभी बहुत असुरक्षित महसूस करते हैं। फिर भी न पाप कर्म करने से डरते हैं , न पाप को धोने में कोई कसर उठाते हैं। लेकिन यदि पाप कर्म किये ही न जाएँ तो धोने की ज़रुरत ही कहाँ रह जाती है।
शायद यही बात समझ नहीं आती आधुनिक मनुष्य को।
इंसान कभी भगवान् नही हो सकते,,,,आजकल ऐसे भगवान् सिर्फ पैसा कमाने या अपने बुरे कर्म छिपाने के लिए अवतरित होते है
ReplyDeleteRECENT POST... नवगीत,
बढ़िया आइडिया है। तस्वीर को गुरूजी बनाओ और उनके नाम पर मौज़ उड़ाओ। यह बहेलिये का फेका चारा भी हो सकता है। आपको तो नहीं ( आपको तो आज भी नहीं बुलाया गया था।) लेकिन प्रभावित दर्शकों को दुबारा फिर बुलाया जायेगा..पता लगाते रहियेगा।
ReplyDeleteयह ज़रा सी बात अगर लोगो को समझ आ जाये तो बड़े बड़े मसले हल न हो जाएँ ... पाप से डरते भी है पर पाप करते भी है ... ;)
ReplyDeleteबुलेटिन 'सलिल' रखिए, बिन 'सलिल' सब सून आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
भारत में ऐसे ही लोग जीवन गुजार देते हैं -सबसे स्थिति हम नान बिलीवर्स की ही है!ना ख़ुदा न मिला न विसाले सनम
ReplyDeletejantaa ko bewakuf banaane main in babao ne netaao ko bhi pichhe chhod diyaa hain.
ReplyDeleteye kaafi dukhad baat hain.
CHANDER KUMAR SONI
WWW.CHANDERKSONI.COM
हरियाणी में एक कहावत सुणी थी, नकटी देबी और पद्दू पुजारी।
ReplyDeleteश्रद्धा की मार्केटिंग...आज लाख-दो लाख खर्चों...फिर करोड़ों की फ़सल काटते चलो...
ReplyDeleteजय हिंद...
ओह तो उस एफ बी वाली तस्वीर का यह राज़ था ... श्रद्धा का यह रूप मेरी भी समझ से बाहर है.
ReplyDeleteइस कम से बढ़िया धंधा और कोई नहीं ...
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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दराल सर,
आप पूछते हैं... 'दुनिया में कोई मनुष्य भगवान कैसे हो सकता है-- एक सवाल !' ...
पर अपनी इसी दुनिया में सभी भगवान, अवतार, ईशदूत, ईशपुत्र व ईश-संदेशवाहक मनुष्य ही तो थे... फर्क सिर्फ इतना है कि वे सभी कुछ सौ या हजार साल पहले हुऐ थे...
मेरे ख्याल में सवाल यह होना चाहिये हमेशा से मनुष्य अपना भाग्यविधाता खुद रहा है और होगा भी, ऐसे में मनुष्य की दुनिया में क्या किसी मनुष्येतर विधाता का अस्तित्व होना चाहिये ?
इस तरह के गुरू-चेले और गुरूडम इसलिये पनपते हैं क्योंकि हमारी आज की दुनिया में हम में से अधिकाँश ऊपर के सवाल का जवाब हाँ में देते हैं, जो जैसा दिख रहा है उसे वैसा ही मान लेते हैं और मानव विकासक्रम की उन परिस्थितियों व कारकों पर विचार नहीं करते जिनके कारण ईश्वर, धर्म व आध्यात्म जैसी अवधारणायें अस्तित्व में आयीं, जिन्होंने मानवों में से ही एक ऐसे वर्ग को जन्म दिया जो बिना कुछ किये धरे केवल एक अनदेखे-अन्जाने का प्रभामंडल गढ़ कर ही अपने लिये सुखसुविधा के सारे साधन और ताकत जुटा लेता है... फोटो वाले गुरू इसी वर्ग में आते हैं...आज यह वर्ग नेटवर्किंग, डील-मेकिंग, मैच-मेकिंग व लॉबीइंग व मैच-मेकिंग भी जमकर कर रहा है... इनको मानने में फायदा ही फायदा दिखता है कईयों को... तो जहाँ मीठा होगा वहाँ मक्खियाँ दिखेंगी ही... और यह तादाद बढ़ती ही रहेगी अभी तो ... :(
...
Deleteसही कहा प्रवीण जी। ये लोग तीव्र बुद्धि तो रखते ही हैं। तभी दुनिया को अपने आगे झुकाने में कामयाब होते हैं। लेकिन शिक्षित लोगों को भी अपनी समझ शक्ति को ताक पर रखते देख कर बड़ा दुःख होता है।
एकदम सही बात कही है आपने . अफज़ल गुरु आतंकवादी था कश्मीरी या कोई और नहीं ..... आप भी जाने संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करें कैग
ReplyDeleteइस तरह की आस्थाएं मन की कमजोरी से पैदा होती हैं....
ReplyDeleteतकलीफ में इंसान अक्सर ऐसे निरर्थक भक्तिभाव पाल लेता है...
कभी हमने भी ऐसा किया...फिर भी अपना विवेक खोया हो ऐसा याद नहीं :-)
सादर
अनु
ps- भोजन कैसा था ये तो बताया नहीं :-)
अनु जी , मुफ्त का खाना तो सबको स्वादिष्ट ही लगता है। :)
Deleteफिर ऐसे में नाक भों सिकोड़ने वाले भी कद्दू/ पेठा / सीताफल की सब्जी चटकारे लेकर खाते नज़र आते हैं।
ओह ! आपको अभी तक याद है शिखा जी ! :)
ReplyDeleteबहुत से गुरुओं ने अपना गोरख धंधा चला रखा है ..... अच्छे खासे पढे लिखे लोग भी बेवकूफ़ बन जाते हैं ।
ReplyDeleteअंत में यही लगा कि श्रद्धा होना या न होना अलग बात है , लेकिन दुनिया में कोई मनुष्य भगवान कैसे हो सकता है। हकीकत यही है कि हम सभी बहुत असुरक्षित महसूस करते हैं। फिर भी न पाप कर्म करने से डरते हैं , न पाप को धोने में कोई कसर उठाते हैं। लेकिन यदि पाप कर्म किये ही न जाएँ तो धोने की ज़रुरत ही कहाँ रह जाती है।
ReplyDeleteशायद यही बात समझ नहीं आती आधुनिक मनुष्य को।
इस सत्य को समझाना और समझना आवश्यक
ऐसे स्थान पर दो बार जाना हुआ,एक गुरु बाबा थे दूसरा गुरु माता जी ..दोनों जगह मुझे यही लगा जैसे कि मैं अल्पसंख्यक हो गयी हूँ !लेकिन आजकल एक रिवाज़ सा चला है या कहें स्टेट्स सिम्बल की तरह... बस किसी ने किसी माता जी या बाबाजी के समूह में शामिल हो जाईये !दुबई में भी ऐसे ग्रुप हैं और फल फूल रहे हैं.
ReplyDeleteजी सही कहा। यह भी एक व्यापार बन गया है।
Deleteहम हमेशा कृपा की खोज में लगे रहते हैं, तनिक कर्म कर लें तो ईश्वर स्वयं ही कृपा बरसा देगा।
ReplyDeleteनिराशा राम डाकू जैसे भगवान् भी हमी लोगो ने अवतरित किये है !
ReplyDeleteआप भी धोखा खा गये? वहां स्वयं बाबाश्री ताऊनाथ ने आप पर कृपा कर दी. अब आपको क्लीनिक जाने की जरूरत नही, बाबा ताऊनाथ की कृपा से आपके मरीज अपने आप ठीक हो जायेंगे, आप तो बाबाश्री को दक्षिणा भेजते रहिये.:)
ReplyDeleteरामराम
सोचते हैं , खुद ही धूणी रमा के बैठ जाएँ . :)
Deleteएक दिन शाम को मुझे भी निमंत्रण मिला था ऐसे ही किसी समारोह का ..बात पुरानी है और गुरु थे श्री रवि शंकर जिनकी फोटू के सामने लोग इसी तरह से कर रहे थे मुझे लोगों के अपाहिज होने का शक हुआ ..वहां खाने का भी इंतजाम नहीं था ..मुझे आश्चर्य होता है की लोग एक गुरु पर ऐसे कैसे आसक्त हो सकते है ...जब वो रोते है और कहते है की यहीं हमारे भगवान् है ..जब मैने एक गुरु भक्त ( जो स्वयं सरदार था ) से पूछा की हमारे गुरु तो गुरु नानक और गुरु गोविन्द सिंह है तुम इन्हें कैसे पूज सकते हो ? तो मुझे जवाब मिला की --" वो तो हमारे पूर्वज थे वो उस समय के गुरु थे --ये आज के गुरु है !"
ReplyDeleteहमारे गुरु जानते थे की आगे ऐसे गुरुओ का ही बोलबाला होगा तभी उन्होंने एक पवित्र बुक को गुरु की उपाधि दी जो हमे ज्ञान का दर्शन भी करवाती है ..मुझे बहुत आश्चर्य होता है जब पढेलिखे लोग इन गुरुओ के आगे नतमस्तक होते है ...
यही तो सबसे बड़े अफ़सोस की बात है कि पढ़े लिखे लोग ही इन बातों में ज्यादा पड़ते हैं।
Deleteमेरी ईश्वर में कोई आस्था नहीं है कभी कभी कोई मुझसे इसका कारण पूछता है तो मै कहती हूँ की खुद भगवान ने मुझे आ कर कहा की मै उनकी भक्ति न करू, तो सवाल करने वाला मुस्कराने लगता है, फिर मेरा सवाल उनसे ये होता है की जब दुनिया में भगवान है तो उसकी मुलाकात मुझसे क्यों नही हो सकती है , आप खुद बताये की क्या आप भगवान होने के विश्वास पर पक्के है की नहीं । जो लोग भगवान को मानते है उनसे --- जब भगवान हो सकता है तो वो गुरु जी खुद भगवान क्यों नहीं हो सकते है , आप सभी की आस्था आस्था और दूसरो की आस्था अन्धविश्वास क्यों हो जाती है , ये कौन तय करेगा की क्या आस्था है और क्या अन्धविश्वास , मेरी नजर में तो मंदिर जा कर फुल माला चढ़ाना आदि भी अन्धविश्वास का ही एक रूप है , पर बाकियों के लिए तो आस्था है , मेरे लिए तो मंदिर पूजा पथ सभी एक दुकानदारी ही है फुल माला धुप अगरबत्ती , चढवा मंदिर सब का आज करोडो अरबो का कारोबार है , उस बारे में क्या कहेंगे , क्या ये दुकानदारी नहीं है ।
ReplyDeleteजी बिल्कुल सही कह रही हैं आप। मंदिरों में चढ़ावा बस एक दिखावा है। काले धन को ठिकाने लगाने का भी एक साधन है। और हम सोचते हैं कि चलो कुछ तो पाप धुल गए।
Deleteभगवान में विश्वास होना चाहिए लेकिन उसे कहीं खोजने की ज़रुरत नहीं है। बस आँखें बंद करिए और भगवान के दर्शन कीजिये। ढकोसलों में पड़ने की ज़रुरत कहाँ है।
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Deletehttp://mahaavtar.jagranjunction.com/
दिनों दिन इन गुरुओं की संख्या में बढ़ोत्तरी ही हो रही है।
ReplyDeleteलोगों को अपने पुरुषार्थ पर भरोसा ही नहीं
अभी कुम्भ में एक जघन्य अपराध के आरोपी को महामंडलेश्वर बनाया गया है .
ReplyDeleteभगवान हमारे अन्दर हैं और हम बाहर तलाशते हैं
ऐसे कितने ही स्वयाम्बू भगवान अपने देश में भरे पड़े हैं कोने कोने में ... क्यों नहीं सब मिल के देश का कुछ भला करने का सोच लेते ... सब अपने अपने नोट संभालने में लगे रहते हैं ...
ReplyDeleteयही बात सचिन पर भी लागू होती है कि भला वे भगवान कैसे कहला सकते हैं। लेकिन इस देश की हालात यह है कि हम किसी को भी भगवान बना सकते हैं।
ReplyDeleteकेवल उन्हें ही नहीं हमें भी याद है जब आपने पूछा था की यह दृश्य कहाँ का है :)रही गुरुओं की बात तो यह अंधभक्ति के फंडे अपनी भी समझ के बाहर है।
ReplyDeleteओह माई गोड ......लोगों की सोच अभी भी नहीं बदली :(
ReplyDeletekisi par aank band karke bhagwaan manna galat hai par ye satya hai ki bhagvaan dharti par ate hain manushya roop me.... aur kal yug me manushya bhagwaan karmo se banta hai.. updesh dene se nahi... jis prakaar aaj sadhu mahatmaaon ne dharm ki aad me ise apna dhandha bana liya hai yah sarasar galat hai... http://myblogshivpratap.blogspot.in/p/blog-page_16.html kripya yah blog pdhe..
ReplyDeletekisi ko aank band karke bhagwaan manna galat hai par ye satya hai ki bhagvaan dharti par manushya roop me ate hain.... aur kal yug me manushya bhagwaan karmo se banta hai.. updesh dene se nahi... jis prakaar aaj sadhu mahatmaaon ne dharm ki aad me ise apna dhandha bana liya hai yah sarasar galat hai... http://myblogshivpratap.blogspot.in/p/blog-page_16.html
ReplyDeletekripya yah blog padhe..
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