एक सुबह अस्पताल जाते हुए रास्ते में यह नज़ारा देखा तो फोटो ले लिया। यही ज़ेहन में आकर एक ग़ज़ल बन गई :
हर सू हरियाली छाई है ,
अपनी जाँ पे बन आई है।
औरों की सजती, महफ़िल है,
एक हम पर ही तनहाई है।
धोखा मत खा जाना यारो,
तन उजला, मन पर काई है।
छोड़ें या अपनायें किसको,
दूल्हा दुल्हन ना बाराती,
शूगर का रोगी है खुद वो
क्यों बाजा ना शहनाई है।
शूगर का रोगी है खुद वो
जो पेशे से हलवाई है।
ना समझे ना माने दिल की,
क्यों ऐसा वो हरजाई है।
रक्त का रंग है एक, मानो तो
सब ही आपस में भाई हैं।
दिल जीते जो 'तारीफ़ों' से,
तो खुशियों की भरपाई है।
नोट : ग़ज़ल में मात्रिक क्रम है - 22 22 22 22
...हर बात पे ताकूँ मैं तुझको,
ReplyDeleteदिल मेरा सौदाई है !
शूगर का रोगी है खुद वो
ReplyDeleteजो पेशे से हलवाई है।
:) एक कटु यथार्थ , बहुत सुन्दर रचना है डा0 साहब !
वाह क्या बात है :)
ReplyDeleteरक्त का रंग है एक, मानो तो
ReplyDeleteसब ही आपस में भाई हैं।,,,,बहुत खूब दराल साहब ,,,,
RECENT POST शहीदों की याद में,
बहुत खूब है,
ReplyDeleteमजा आ गया, हमें जो सुनायी है..
बहुत खूब कही है आप ने यह ग़ज़ल .
ReplyDeleteबढ़िया है हर पंक्ति में छुपी एक सच्चाई है :)
ReplyDeleteसच कहा है, सच लिखा है,
ReplyDeleteगज़ल खूब बनाई है।
सुन्दर रोचक भावनात्मक अभिव्यक्ति नसीब सभ्रवाल से प्रेरणा लें भारत से पलायन करने वाले
ReplyDeleteआप भी जाने मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ?
धोखा मत खा जाना यारो,
ReplyDeleteतन उजला, मन पर काई है।
क्या बात है ...बहुत खूब
यह गज़ल है या सच्चाई है .
अरे वाह....
ReplyDeleteएकदम U turn !!!
बड़े दिनों बाद आपकी ग़ज़ल पढने मिली....
तारीफों के पुल बाँधने को जा चाहता है..
सादर
अनु
सवाल पूछती चलती यह गजल 'मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई ',परिवेश की झरबेरियों से सावधान भी करती है .
ReplyDeleteऔरों की सजती, महफ़िल है,
एक हम पर ही तनहाई है। बढ़िया अशआर सन्देश देते से कुछ कहते से .शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .हमारी ब्लॉग पोस्ट को मान्यता दिलवातीं हैं आपकी टिप्पणियाँ .
ना समझे ना माने दिल की,
ReplyDeleteक्यों ऐसा वो हरजाई है।
बहुत सुन्दर रचना है डा0 साहब !
चलो !आपके बाद ही सही
ReplyDeleteअब सब की बारी आई है :D
यह मन्ज़र खूब रहा यारो,
ReplyDeleteसब पर दीवानी छाई है । :)
पसंद करने के लिए आप सबका आभार।
शूगर का रोगी है खुद वो
ReplyDeleteजो पेशे से हलवाई है।
इससे बुरा क्या होगा ...
सतीश जी , कभी मन में यह बेतुका सा सवाल आता था कि हलवाई के तो बड़े मज़े होते होंगे क्योंकि सारे दिन मिठाई जो खाता रहता होगा। :)
Deleteऐसा कौन सा बच्चा होगा जिसे यह सपना न आया हो भाई जी ??
Deleteये हलवाई का उदहारण बढ़िया उदहारण है. बेचारा.
ReplyDeleteसुंदर गज़ल.
धोखा मत खा जाना यारो,
ReplyDeleteतन उजला, मन पर काई है।
बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति है .
New postअनुभूति : चाल,चलन,चरित्र
New post तुम ही हो दामिनी।
वाह अच्छी सिनर्जी है!
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteवाह .... बहुत खूब ....
ReplyDeleteबेहतरीन पंक्तियाँ बनाई हैं .....
ReplyDeleteरक्त का रंग है एक, मानो तो
ReplyDeleteसब ही आपस में भाई हैं।
दिल जीते जो 'तारीफ़ों' से,
तो खुशियों की भरपाई है।
क्या कहने डॉ साहब आनंद आ गया ...
ये अब कविता है कि गजल ये पता नहीं चल सका..हां इतना तो है कि लिखी काफी अच्छी लाइने हैं
ReplyDeleteरोहित जी , एक ग़ज़ल में काफ़िया और रदीफ़ होते हैं , एक मतला होता है , एक मक्ता होता है। कम से कम 3- 5 अश'आर होते हैं। और मात्राओं का एक विशेष क्रम होता है। ये सभी इसमें हैं , इसलिए ग़ज़ल ही कहेंगे।
Deleteअब इन सबका क्या अर्थ होता है , यह तो लम्बी कहानी है। :)
शानदार और असरदार गजल
ReplyDeleteव़ाह जी वाह।
ReplyDeleteवाह दाराल साहब बेहद खूबसूरत और मजेदार ग़ज़ल , हलवाई का हस्र देखकर कुछ और भी याद आया :
ReplyDelete......
दिल भी घायल उसका.... उनसे...
बाई-पास करवाई है ....
वाह कुश्वंश जी . इसे यूँ भी कह सकते हैं :
Deleteदिल का रोगी निकला जिससे
दिल में तारें डलवाई हैं ।
शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का -
ReplyDeleteजितने भी आसपास जाए ,हरजाई हैं ,
सबके सब सेकुलर भाई हैं .
रक्त का रंग है एक, मानो तो
ReplyDeleteसब ही आपस में भाई हैं ...
मानो तो ... आपने सही कहा है पर इस बात को सब कहाँ मानते हैं आज ...
लाजवाब शेर हैं सभी .. कुछ कुछ बोलते हैं ...
शूगर का रोगी है खुद वो
ReplyDeleteजो पेशे से हलवाई है।
वाह ..वाह .....वाह .....
हम तो बस तारीफ की तारीफ किये जा रहे हैं .....
ज जाने आपको ऐसे अल्फाज़ सूझते कहाँ से हैं .....
बहुत खूब ...!!
दोष दें किसको अपनी किस्मत में ही रुसवाई है .बढ़िया प्रस्तुति डॉ साहब .
ReplyDeleteक्या तुक भिडाई है पेशे से डाक्टर हो पर लगता है की तुम भी हमारी जमात के भाई हो .....वाह ! वाह !वाह !
ReplyDeleteek se badhkar ek moti piroye hai...sundar
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteशूगर का रोगी है खुद वो
ReplyDeleteपेशे से हलवाई है।
तुकबंदी के साथ तारीफ़ खुशियों का पैमाना , और क्या चाहिए एक ग़ज़ल होने को !
रक्त का रंग है एक, मानो तो
सब ही आपस में भाई हैं।
क्या बात है
डॉ.तारीफ़ दराल भाई जी
अच्छी ग़ज़ल कही है आपने , लेकिन हमारे लिए मुश्किल भी हो सकती है ...
:)
अब शायर साहब कहें आपको या डॉक्टर साहब
हां , हम भी तारीफ़ की तारीफ़ किए जा रहे हैं ... ...
बसंत पंचमी एवं
आने वाले सभी उत्सवों-मंगलदिवसों के लिए
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
राजेन्द्र स्वर्णकार
हर सू हरियाली छाई है ,
ReplyDeleteअपनी जाँ पे बन आई है।
औरों की सजती, महफ़िल है,
एक हम पर ही तनहाई है। bahut sunder rachana.