कामकाज़ी लोग रोज़ सुबह भागते भागते निकलते हैं। हम भी नाश्ते में दो सूखे टोस्ट खाकर काम पर चल देते हैं। लेकिन इतवार छुट्टी का दिन होता है। इसलिए उस दिन अपनी पसंद से शाही अंदाज़ में नाश्ता किया जाता है। हालंकि छुट्टी होने के कारण उठना देर से होता है , फिर आराम से बैठकर पहले घंटों अख़बार छाना जाता है , फिर ब्लॉगिंग और अब तो ना ना करते फेस्बुकिंग भी होने लगी है। ज़ाहिर है, इतवार को न नाश्ता होता है , न लंच , बल्कि 12 बजे के बाद ब्रंच ही हो पाता है।
रविवार के दिन अक्सर हमारा पसंददीदा खाना होता है -- आलू के दो भारी परांठे , साथ में दही तरल मलाई मिलाकर , एक प्लेट में टोमेटो सॉस , उसमे टाबेसको सॉस का छींटा उसे तीखा बनाने के लिए , साथ में शहद सा मीठा मेपल सिरप। परांठे पर कभी कभी मक्खन या मलाई की परत भी चलती है। इन सबके बाद अंत में गर्मागर्म दूध के साथ इतवार का ब्रंच पूरा होता है।
लेकिन महीने में एक या दो बार एक अलग किस्म का नाश्ता भी होता है। इसे ब्रेड पोहा कह सकते हैं।
ज़रा सोचिये , ब्रेड के जो पीस बच जाते हैं , विशेषकर ऊपर नीचे वाले मोटे पीस , उनका आप क्या करते हैं। अक्सर हम इन्हें फेंक दिया करते थे या फिर किसी पशु को खिला देते थे। लेकिन फिर एक दिन एक पत्रिका में पढ़कर हमें यह ख्याल आया और हमने इनका इस्तेमाल पोहा बनाकर करना शुरू कर दिया। अब यह हमारी पसंददीदा डिश बन गई है।
ब्रेड पोहा बनाने के लिए सामग्री :
* ब्रेड के बचे खुचे पीस , जितने सूखे होंगे उतना ही अच्छा होगा। इसके लिए ज़रूरी है कि आप बचे हुए ब्रेड पीस को फ्रिज में स्टोर करते रहें वर्ना फंगस लग जाएगी।
* एक बड़ा टमाटर , बड़े टुकड़ों में कटा हुआ , एक प्याज़ भी बड़े टुकड़ों में कटा हुआ , हरी मिर्च कटी हुई
* मसाले -- साबुत धनिया, धनिया पाउडर , गर्म मसाला, अमचूर, नमक -- सब आधी चम्मच।
* हरा धनिया कटा हुआ , एक निम्बू , टोमेटो सॉस
* एक कप दूध।
बनाने की विधि :
* एक सॉस पेन में एक चम्मच कुकिंग ऑयल डालकर गर्म करिए। इसमें सबसे पहले साबुत धनिया डालकर भूरा होने तक पकाइए।
* अब इसमें कटे हुए प्याज़, टमाटर, हरी मिर्च डालकर मिलाइये और थोड़ा सा पकाकर एक बड़ा चम्मच दूध डालकर हिलाइए।
* अब इसमें बाकि सभी मसाले मिलाकर थोडा और पकाइए। अमचूर की वज़ह से दूध फट जायेगा लेकिन हिलाते रहिये।
* अब ब्रेड के टुकड़े करके सारी ब्रेड इसमें डाल दीजिये और धीरे धीरे करके दूध ब्रेड पर इस तरह डालिए कि सारे टुकड़े दूध में भीग जाएँ। लेकिन ध्यान रखिये कि दूध ज्यादा न हो वर्ना खिचड़ी बन जाएगी। अच्छी तरह से मिलाइये ताकि सारे टुकड़ों पर दूध और मसाले अच्छी तरह से मिल जाएँ।
* जब दूध सूख जाये तो उतार लीजिये। प्लेट में डालकर इस पर हरा धनिया , नीम्बू और स्वादनुसार टोमेटो सॉस डालकर मिलाइए।
इस तरह ब्रेड पोहा तैयार है। इसका स्वाद दूध और मसालों के अनुपात और पकाने पर बहुत निर्भर करेगा। लेकिन आपको पसंद आएगा , ऐसा विश्वास है।
इसे कहते हैं -- आम के आम , और गुठलियों के दाम।
इसका महत्त्व आपको मेरी एक कविता की चंद अंतिम पंक्तियों में नज़र आएगा :
एब्स डाइटिंग जिम ट्रेडमिल , ये सब अमीरों के चोचले हैं ,
जो वैभव सम्पन्नता पूर्ण, ऐशो आराम की दुनिया में पले हैं।
वर्ना सच तो यही है कि ---
जहाँ कुपोषण के शिकार हों, करोड़ों बच्चे और नर नारी ,
वहां एब्स तो क्या , हड्डी पसली भी खुद ही उभर आती हैं सारी।
ये लोग कैसे हैं , जो रात भर ट्रेडमिल पर पसीना बहाते हैं ,
फिर खाने से कतराते हैं , ताकि पेट बाहर न आये।
कुछ लोग ऐसे हैं जो दिन भर पसीना बहाते हैं ,
ताकि जब शाम ढले तो पेट में कुछ तो जाये।
अगली बार जब आप किसी दावत में जाएँ
और प्लेट भर कर नाना प्रकार के व्यंजन खाएं।
तो छोड़ने से पहले एक बार एक बात अवश्य सोच लें,
कि अभी अभी जो आपने आधा प्लेट खाना छोड़ा है।
शायद उसी समय देश के किसी कोने में ,
क़र्ज़ में डूबे एक किसान ने , भूख से दम तोड़ा है।
नोट : इसे पढ़कर यदि एक भी व्यक्ति ने जूठा छोड़ने की आदत छोड़ दी तो समझिएगा , प्रयास सफल रहा।
इसे पढ़कर यदि एक भी व्यक्ति ने जूठा छोड़ने की आदत छोड़ दी तो समझिएगा , प्रयास सफल रहा।
ReplyDeleteबाकि कुछ किया जाये की न किया जाये आपके सुझाव पर अमल किया जाये
दूध के स्थान पर हम दही डालते हैं लेकिन ब्रेड सूखी नहीं होती है ताजी ही रहती है। यह खम्मण जेसे बन जाते हैं।
ReplyDeleteजी , लेकिन सूखी का मतलब -- नो वेस्ट।
Deleteअरज लगाते हैं श्रीमतीजी से कि क्या ऐसा कुछ बना पायेंगी।
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Deleteखुद क्यों नहीं ट्राई करते भाई ! :)
क्यों मज़ाक करते हैं..
Deleteअरे वाह! आपने खाना पकाने में भी हाथ आजमाने शुरू कर दिया. बढ़िया रेसिपी.
ReplyDeleteकविता के माध्यम से बढ़िया सन्देश.
जी , शुरू नहीं किया -- शुरू से ही ऐसे हैं। :)
Deleteरेसिपी पढ़कर आनंदित हुआ तो कविता ने ग़मगीन कर दिया :-)
ReplyDeleteरेसिपी का ध्येय ही यही है कि खाने को वेस्ट होने से बचाएं। :)
Deleteब्रेड वाली रेसीपी तो एक तरह से अन्न का सदुपयोग ही है. आपके ब्रंच वाले मेनू को पढकर मुंह में पानी आ रहा है पर अफ़्सोस कोई चांस नही है क्योंकि लठ्ठ की पहरेदारी सख्त है.:(
ReplyDeleteरामराम.
कभी कभी तो रियायत --- :)
Deleteब्रेड के ऊपर नीचे वाले मोटे पीस खाने के लिए बचपन में हम में तो झगड़ा होता था :)
ReplyDeleteबैस्ट आउट औफ़ वेस्ट .....बढ़िया रेसिपी .... संदेश परक कविता ॥
ReplyDeleteखाना छोड़ना तो हमें भी पसंद नहीं ... उतना डालो जितना खा सको ... दुबारा लेने की मनाही थोड़े होती है ...
ReplyDeleteहां एक बात ओर .... आप डाक्टरी के साथ शेफ भी हैं ये नहीं पता था ... भाभी जी का काम आसान कर दिया आपने तो ... शुक्र है ये पोस्ट पत्नी ने नहीं देखि अभी तक ..
जी , वो भी से खाती हैं हमारी रेसिपी। :)
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ReplyDeleteउम्दा जानकारी डा० साहब !
ReplyDeleteएब्स डाइटिंग जिम ट्रेडमिल , ये सब अमीरों के चोचले हैं ,
जो वैभव सम्पन्नता पूर्ण, ऐशो आराम की दुनिया में पले हैं।
एक अपना अनुभव इसी से मेल खाता शेयर करना चाहूँगा : मेरी पुराणी गाडी जो पैट्रोल वर्जन थी, और जिसमे हमेशा मैंने इंडियन आयल का एक्स्ट्रा-प्रीमियम तेल ही इस्तेमाल किया तकरीबन आठ- नौ साल साल बिना किसी वाधा के चली। अब जब मैंने नई खरीदी (एक ख़ास लगाऊ होने की वजह से एक्स्चेञ्ज नहीं की ) तो उसपर पैसे बचाने के चक्कर में एक्स्ट्रा प्रीमियम की जगह सामान्य तेल भरवाने लगा। अभी दो ही बार सामान्य तेल भरवाया था कि गाडी का इंजन बोलने लगा। मैंने अपने ऑफिस के ड्राइवर को कहा की इसे किसी मैकेनिक को दिखा तो उसका जबाब बड़ा ज्ञानवर्धक था। बोला, साहब, अगर जो इंसान हैंडपंप का पानी पीता है और उसे किसी रोज बिसलेरी का पानी भी पिला दो तो उसपर ख़ास फर्क नही पड़ता किंतुं यदि रोज बिस्लेरी पीने वाले को अगर एक दिन हैंडपंप का पानी पिला दो तो यही हाल होता है जो गाडी का हुआ।
बढ़िया संस्मरण।
Deleteअरे वाह अब कुकिंग में भी हाथ आजमाने शुरु कर दिये डाक्टर साहब …………और साथ मे बढिया संदेश्……वाह
ReplyDeleteब्रेड पोहा तो बहुत समय से हम बनाते आ रहे हैं.हॉस्टल में भी शाम के नाश्ते में मिला करता था .
ReplyDeleteबचपन से आदत है झूठा न छोड़ने की.बच्चों को भी वही सिखाया है.
कविता में आपने एक ऐसे कड़वे सत्य को प्रस्तुत किया है जिसे जानबूझ कर अनदेखा किया जाता है.
काश,हर कोई इस बात को समझे.
कहीं पढ़ा था कि विश्व में सबसे अधिक खाना एमिरात में रहने वालों द्वारा फेंका /बर्बाद होता है.
जी , सभी विकसित देशों में खाने की बहुत बर्बादी होती है। लेकिन हम यह अफोर्ड नहीं कर सकते।
Delete'आयुर्वेद' के अनुसार दूध और नमक का साथ सेवन करने से 'चर्म रोग' होने का भय रहता है अतः ऐसा करना स्वस्थ्य के लिए हानिकारक है।
ReplyDeleteकविता और नोट मे दिया संदेश अनुकरणीय है। हम तो दावत-पार्टी आदि मे बेहद कम (नाम-मात्र-शुगन भर)भोजन ही लेते आ रहे हैं। फेंकना तो हमे आता ही नहीं है ,दूसरों द्वारा बरबादी किया जाना देख कर हमारा जी कोफ्त होता है।
स्वस्थ सेवा के साथसाथ सामाजिक सन्देश -बहूत सुन्दर
ReplyDeletelatest postमेरे विचार मेरी अनुभूति: मेरी और उनकी बातें
...रेसिपी नोट कर ली है !!!
ReplyDeleteदराल सर,
ReplyDeleteकुछ लोग खाने के लिए ही जीते हैं और कुछ को जीने के लिए भी खाना मयस्सर नहीं...
कुकर के प्रैशर की तरह इस आर्थिक विषमता का प्रैशर बढ़ता जा रहा है...इस प्रैशर को रिलीज़ करने का कोई सेफ्टी वॉल्व नहीं ढूंढा गया तो विस्फोट होना तय है...और इस विस्फोट के असर से कोई भी बच नहीं पाएगा...
जय हिंद...
खुशदीप भाई , यहाँ आर्थिक विषमता कदम कदम पर नज़र आती है। फ़िलहाल ऐसे ही जीना पड़ेगा। अभी अभी बागपत के एक गाँव की शादी अटेंड कर के आ रहा हूँ। एक ही दिन में बहुत विषमताएं देखने को मिली।
Deleteहम तो बनाते हैं ब्रेड पोहा....
ReplyDeleteनमक अक्सर ज्यादा हो जाया करता था पहले :-)
अब सीख गए.
कविता ने दुखी किया मगर सीख भी मिली...
और आप डॉक्टर साहब हमारे आदरणीय हैं
आप डॉक्टर दाराल "जी" है :)
it was purely unintentional...
regards
anu
प्रयास होना चाहिए... सफलता एक न एक दिन मिलेगी ही !
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
वाह जी वाह, बढ़िया डिश बताई, आजमाते हैं।
ReplyDeleteवैसे प्लेट में झूठा कभी बचपन से ही नहीं छोड़ा। माँ-बाप की कम से कम यह सीख तो हमने शुरू से ही अपनाई हुई है।
ReplyDeleteबढ़िया रेसिपी डाक्टर साहब कविता के माध्यम से बढ़िया सन्देश !!
ReplyDeleteबहुत ही बढियां रेसिपी है ..जरुर ट्राई करुँगी ..वैसे डॉ साहेब ,सन्डे की इतनी मलाई आखिर जाती कहाँ है ? ऐसा सन्डे हो तो मेरा आंकड़ा तो 100 पार कर जायेगा हा हा हा हा हा
ReplyDeleteझूठन छोड़ना न घर में पसंद करती हूँ न बाहर ... शादी में तो खाना देखकर ही खाती हूँ ..क्योकि मेरे हिसाब से न तो वहां सब्जी ही धुलती होगी और न ही वहां तेल की क्वालिटी ठीक होगी ...इसलिए थोड़े से दाल -चावल खाकर ही राम -राम होती है ..हा, अगर पनीर की सब्जी हुई और रोटी हुई तो जरुर खाती हूँ क्योकि पूरी और पराठो से तो मेरी पूरी तरह से दुश्मनी है हा हा हा हा
Deleteयही सही है जी।
ज़रूरी तौर पर अनुकरणीय सन्देश देती है यह रचना .मुंबई के कालबा देवी इलाके में एक रेस्तरां है ठाकर भोजनालय .गुजराती थाली सर्व की जाती है .जितना मर्ज़ी खाओ पेशकश एक ही है :हम
ReplyDeleteआपकी हरेक बात मानेंगे आप हमारी बस एक बात माने कृपया जूठा /जूठन न छोड़ें .
हमारे देश में जूठा छोड़ना एक अपराध माना जाना चाहिए।
Deleteअच्छी डिश है .
ReplyDeleteब्रेड के बचे टुकड़ों को तल कर सूप में डालने अथवा शाही टोस्ट के रूप में बच्चे ज्यादा पसंद करते हैं .
वाह...क्या बात है डॉ साहब अब शैफ भी बन गए :)मुझे पहले से पता थी यह रेसिपी एक टिप मैं भी दूँ आपको ? आप इन्हीं ब्रेड के पीसों को ब्रेड क्रेम्स की तरह भी स्तेमाल कर सकते हैं जैसे कटलेट बनाने में आलू और बाकी उबली सब्जियों के साथ इन ब्रेड के टुकड़ों को मिक्सी में पीसकर मिलाया जा सकता है।
ReplyDeleteरही बात झूठा छोड़ने की तो हम तो उसमें विश्वास रखते है की भले ही कोई चीज़ ज्यादा पसंद आरही हो तो उसे दस बार लो लेकिन एक साथ ज्यादा मात्रा में लेकर जूठा न छोड़ो....
काश सभी पढ़े लिखे ऐसा ही करें।
Deleteस्वादिष्ट पाकविधि और मार्मिक संदेश के लिए आभार!
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