आज सुबह अखबार पढ़ते हुए पत्नी अचानक बोली, अजी सुनते हो, मैं सोच रही हूँ की मैं भी बड़ी गाड़ी ले लूं. ये देखिये दो साल पुरानी कार ४ लाख में मिल रही है. मैंने कहा प्रिय, ४ लाख! ये मोडल तो नया ही ३ लाख में मिलता है. वो बोली चिंता क्यों करते हैं, २ लाख किकबैक में वापस मिल जायेंगे और वो अपनी जेब में ही तो आयेंगे. आजकल कार हो या ज़हाज़, खरीद फरोख्त करने का यही तरीका है.
अभी पिछले दिनों छुटियाँ बिताकर आये तो पत्नी बोली, अजी गज़ब हो गया. अचार का डिब्बा खुला रह गया, इसलिए सारा अचार भृष्ट हो गया. मैंने कहा भाग्यवान, ये अपने देश का अचार कुछ ऐसा ही है. विदेश में घूमकर एक बात तो साफ़ हो गयी है की हमारा देश दो बातों में सारे विश्व से आगे है. यानि यहाँ दो चीजों की भरमार है , एक जनसँख्या अपार, और दूसरा भ्रष्ट आचार यानि भ्रष्टाचार. अब देश के अधिकाँश परिवारों की तरह भ्रष्टाचार की भी अनेक संतानें हैं, जैसे रिसू (रिश्वतखोरी), बेनी (बेईमानी ), हैरी (हेरा- फेरी), छोटू (घोटला ), और अब तो विदेशी नाम भी रखे जाने लगे हैं जैसे किस (किक्बैक्स).
अब बढती जनसँख्या को तो हम रोक नहीं सकते, क्योंकि हमारा सामाजिक और राजनितिक ढांचा इस प्रकार का है. और रोकना चाहिए भी नहीं. क्योंकि रोकने की कोशिश की तो अपना भी वही हाल होगा जो आज चीन के संघाई शहर में हो रहा है. यानि काम करने लायक युवक ही नहीं रहे. बुजुर्गों की भरमार हो गई है.
लेकिन भ्रष्टाचार को रोकने का प्रयास तो कर सकते हैं.
कहते हैं की भगवान् के घर में देर है अंधेर नहीं. इसलिए इन्साफ तो मिलता है लेकिन देर से. भगवान् की तरह कानून के घर में भी यही हाल है. अब बुरे कर्म का नतीजा तो बुरा ही होता है. लेकिन इन्साफ के दोनों घरों में देर लगने से इन्साफ मिले भी तो उसका प्रभाव दिखाई नहीं देता. काश की इन्साफ तुंरत मिले तो न सिर्फ अपराधी बल्कि दूसरों को भी इसका अहसास हो सकता है.
मुझे तो तरस आता है उन लोगों पर जो कुकर्म करते हुए एक पल भी नहीं झिझकते. तरस आता है उनकी अज्ञानता पर जो नहीं जानते की इसका नतीजा क्या होगा. और जो जानते हुए भी बुरे काम करते हैं, तो उनको सजा मिलना तो न्यायसंगत ही है. लेकिन जो रंगे हाथों पकडा जाता है, उसकी हालत क्या होती है, इसी बारे में चंद पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं :
छुपाकर अपने ही हाथों में चेहरा
नज़र यूँ ज़माने से चुराई होगी.
कालिख कहाँ थी मां की कोख में
तेरे कर्मों ने ही लगाईं होगी.
दर्द से कितना सिसका होगा आइना
जब सूरत असली दिखाई होगी.
घूसखोरों की एक दिन यारों
इसी तरहां गलियों में रुसवाई होगी.
अभी सब्र के घूँट पी "तारीफ"
कभी शरीफों की भी सुनवाई होगी
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बहुत बढ़िया लगा! ख़ूबसूरत रचना के लिए बधाई!
ReplyDeletedono tarah ke lekhan me aapki kalam BINDAAS he/
ReplyDeletebahut achha lagataa he aapka likhana/
सभी शेर लाजवाब, पर अभी कल ही माननीय बूटा सिंह जी के बेटे को एक करोड़ की रिश्वत लेते पकडा गया पर न तो बूटा सिंह पर कोई असर न उनके बेटे पर........
ReplyDeleteयही नहीं ...............और क्या -क्या लिखूं, शर्म ही जब बेशर्म की हद से गुज़र गई है तो..................
आप तीनों मित्रों का शुक्रिया जो आपने इस गंभीर विषय पर अपनी सहमति जताई.वर्ना जैसा की चंदर मोहन जी ने लिखा की, शर्म ही बेशर्मी की हद से गुजर गयी है, शायद इसीलिए आज इस तरह के विषयों पर लोग बात करना भी उचित नहीं समझते. लेकिन समाज का एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हम सब का कर्त्तव्य हो जाता है की हम ऐसे विषयों पर चर्चा अवश्य करें.
ReplyDeleteमेरी अगली रचना दूसरे अंदाज़ में पढना न भूलें.
अजब-गजब, डा. साहिब
ReplyDelete"छुपाकर अपने ही हाथों में चेहरा
ReplyDeleteनज़र यूँ ज़माने से चुराई होगी.
कालिख कहाँ थी मां की कोख में
तेरे कर्मों ने ही लगाईं होगी.
दर्द से कितना सिसका होगा आइना
जब सूरत असली दिखाई होगी.
घूसखोरों की एक दिन यारों
इसी तरहां गलियों में रुसवाई होगी.
अभी सब्र के घूँट पी "तारीफ"
कभी शरीफों की भी सुनवाई होगी "...
बहुत बढ़िया...गहरा...चुभता हुआ कटाक्ष
एक दिन ऐसे ही रेल की पटरियों से गुजरते हुए बरबस ही ये दो लाईनें मुंह से निकल पड़ी कि...
"रेल पटरियों सी लंबी ये अजगर मानिंद लपलपाती रिश्वतखोरी जेबें...डस-डस बस यही कहती हैं कि...और देवें...और देवें"