मुफ्त दो घूँट पिला दे तेरे सदके वाली ,
भला हम ग़रीबों से कहीं दाम दिए जाते हैं.
वो तो भला हो हमारी सरकार का, जिसने ४०% एरियर देकर साथ ही ये विश्वाश भी दिया की ६०% भी जल्दी ही मिल जायेगा. तो भाई हमने तो इसी भरोसे पर अपनी टिकेट कटवा ली. और पहुँच गए टोरंटो.
मुझे अपने कॉलेज के दिनों का एक गाना याद आता है --
आते जाते खूबसूरत, आवारों सड़कों पे,
कभी कभी इत्तेफाक से,
कितने अनजान लोग मिल जाते हैं ,
उनमे से कुछ लोग भूल जाते हैं,
कुछ याद रह जाते हैं.
डॉ विनोद वर्मा के साथ टोरंटो में
भाई अपनी कहानी भी कुछ ऐसी ही है. मेडिकल कालिज में दाखिले से लेकर डॉक्टर बनने तक का ६ साल का सफ़र इतना लम्बा होता है की इस दौरान सामान विचारधारा वाले लोग उम्र भर के लिए करीब आ जाते हैं. हमारे शौक भी कुछ ऐसे ही थे जैसे की फोटोग्राफी, संगीत, सैर सपाटा, और दोस्तों के साथ महफिल जमाना. जैसा देश, वैसा भेष
और एक बरसे के बाद फिर से महफिल जमी, और साथ में थे कुछ नए दोस्त भी जिनसे मुलाकात वहीँ पर हुई और पलक झपकते ही बरसों पुराने दोस्तों जैसी प्रेम डोर जुड़ गयी.
हमारे साथ अनिल, संजय, विनोद, और पीछे प्रदीप और राज
इन दोस्तों के साथ बिताये गए ये २० दिन यूँ तो जैसे २० लम्हों में गुजर गए लेकिन अगले २० साल तक भी एक एक पल याद आयेंगे.
एक शानदार पल
कौन कहता है इस दुनिया में दोस्त नहीं मिलते,
गर दिल के द्वार हों खुले, तो अजनबी भी दोस्त बन जाते हैं.
अगले भाग में--
हिंदी ब्लोगिंग के जाने माने और पुरस्कृत ब्लॉगर श्री समीर लाल से अजेक्स में हुई एक यादगार मुलाकात.
डॉ विनोद वर्मा
चित्र ने कथ्य के भाव को और मजबूती दी है, वैसे पुराने दोस्त से मिलने का आनन्द ही कुछ और है।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
इंतजार है अगले भाग का ।
ReplyDeleteभाई नेट पर भटकता आप तक पहंचा
ReplyDeleteआप में मुझमें तीन समानतएं मिलीं
१ आप की तरह मैं भी चिक्तिसक हूं १९७१ medical college rohtak se graduation
2 कुछ लिख भी लेता हूं
३ आप की तरह मैं भी आजकल प्रवास पर[ जेने्वा] में हूं
मेरे ब्लाग
http://gazalkbahane.blogspot.com/
http://katha-kavita.blogspot.com/
सुखद यात्रा, मन माफिक दोस्त और मन को सुकून देती महफ़िल, एक साथ जब तीनों मिले तो लगता ही है की त्रैलोक्य संवर गया.
ReplyDeleteसचित्र यात्रा कथा पसंद आयी.
बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
दोस्त और वो भी समीर जी जैसे मिलें तो मजा ही आ जाता है।
ReplyDeleteमुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बढ़िया लिखा है आपने और तस्वीरें भी बहुत अच्छी हैं! पुराने दोस्त से मिलने का मज़ा ही कुछ और है! आपके अगले भाग का इंतज़ार रहेगा!अब तो मैं आपका फोल्लोवेर बन चुकी हूँ इसलिए आती रहूंगी! मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!
ReplyDeleteबहुत अच्छा वर्णन किया है आपनें,इंतजार है अगले भाग का
ReplyDeletedoctors ko jab bhi sahityik shreni me pata hu, dil khush ho jata he, vo isliye kyuki me samajhta hu vo shareer ke andar ( sookshm shareer, jnha samvedanaye hoti he) aour shareer ke bahar dono aor ki tamaam kriyao ko bakhoobi jaan samajhte he, shareer ke liye to ve upachaar kar hi lete he kintu man ke bhavo ko vyakt kar ve kuchh jyada naya kar sakte he/ kher..dosti me kisi prakaar ka koi bhed bhaav nahi hota../ dost dunia ke kisi bhi kone me ho, ham jese hi hote he yaa dosti ke baad ho jaate he// aapke blog par pahli baar aaya aour man prasann ho gaya..ab aate rahunga/
ReplyDelete"कौन कहता है इस दुनिया में दोस्त नहीं मिलते,
ReplyDeleteगर दिल के द्वार हों खुले, तो अजनबी भी दोस्त बन जाते हैं"
सत्य वचन...