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Tuesday, June 16, 2009

पालतू आदमी की होती है बस यही पहचान,
गले में स्वर्ण माला,
दायें हाथ की "तीसरी ऊँगली में स्वर्ण मुद्रिका,
होठों पे झूठी मुस्कान,
उसके सिर पर सींघ नही होते,
न होती है उसकी पूँछ,
उसकी पहचान होती है, चेहरे पर लगी…
एक नन्ही सी मूँछ!


- कवि नीरज मलिक

रंग मंच के कलाकार श्री shahnawaz ने अपने sheron से sabko khoob gudgudaya.
सलामत रहे--
बच्चों की मुस्कान,
पंछियों की उड़ान,
फूलों के रंग,
अपनों का संग,
बड़ों का दुलार,
और भाई भाई का प्यार!
सलामत रहे--

देश की आज़ादी,
वीरों के हौसले फौलादी,
लोकतंत्र में अटल विश्वास,
और रामराज्य की आस!

yours truely
 

कुछ और झलकियाँ
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3 comments:

  1. अच्छा लगा यह रिपोर्ट पढ़ कर.

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  2. Pahlee baar aayi hun aapke blog pe..abhi to by 'your's truly' hee padhee...aur aage padhna hai..!

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  3. कार्यक्रम के सफल संचालन के लिए बहुत-बहुत बधाई

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