पालतू आदमी की होती है बस यही पहचान,
गले में स्वर्ण माला,
दायें हाथ की "तीसरी ऊँगली में स्वर्ण मुद्रिका,
होठों पे झूठी मुस्कान,
उसके सिर पर सींघ नही होते,
न होती है उसकी पूँछ,
उसकी पहचान होती है, चेहरे पर लगी…
एक नन्ही सी मूँछ!- कवि नीरज मलिक
सलामत रहे--
पंछियों की उड़ान,
फूलों के रंग,
अपनों का संग,
बड़ों का दुलार,
और भाई भाई का प्यार!
सलामत रहे--
वीरों के हौसले फौलादी,
लोकतंत्र में अटल विश्वास,
और रामराज्य की आस!
yours truely
कुछ और झलकियाँ
अच्छा लगा यह रिपोर्ट पढ़ कर.
ReplyDeletePahlee baar aayi hun aapke blog pe..abhi to by 'your's truly' hee padhee...aur aage padhna hai..!
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कार्यक्रम के सफल संचालन के लिए बहुत-बहुत बधाई
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