तब से तो रोज रोज रोज दे रहा हूँ मैं ॥
मुरझाई प्यार की लता न पल्लवित हुई,
यूरिया में डोज ग्लूकोज दे रहा हूँ मैं॥
- कवि बृजेश द्विवेदी
वो ही असली नेता थे।
तो क्या शेखर बोस भगत केवल बस अभिनेता थे॥
उनको फूल चढ़ाये तुमने जो सत्ता के ग्राहक थे।
उनको जाने क्यू भूल गये जो आजादी के वाहक थे॥
- कवि कुलदीप ललकार
मानव-धर्म भूल रहा, ये वहसी संसार,
मंदिर, मस्जिद, गुरद्वार, माँगे सभी मुराद,
मैं माँगू संसार में, शाँति का प्रसाद,
- कवि टी॰ एस॰ दराल
यूपीए की जीत का सम्मान देखीए
राहूल जी का चल गया शबाब देखीए
अडवानी जी का टूट गया ख्वाब देखीए
लालू जी भी आ गये ON ROAD देखीए
उठ बैठता है किस ओर देखीए
- कवि हरमिन्द्र पाल
एक ने दूजे को बताया
तेरी बीवी को सांप ने काट खाया
पहला बोला इस सांप ने कइयों को काट खाया होगा
और मौत के घाट पहूँचाया होगा
अब कंठी हो गई होगी इसकी खाली
मेरी बीवी से जहर मरवाने आया होगा।
- कवियित्री बलजीत 'तन्हा'
जहाँ कहीं भी नई रोशनी छाई है
जहां कही भी जीवन की सच्चाई है
दुनिया वाले चाहें उसको धर्म कहें
सच कहता हूँ भारत की परछाई है
- कवि राजेश चेतन
मजा आ गया इतने सारे कवियों की कविता पढ़कर और आपकी भी. :)
ReplyDeleteआभार.
जात - धर्म के नाम पे, भाई-भाई को मार,
ReplyDeleteमानव-धर्म भूल रहा, ये वहसी संसार,
मंदिर, मस्जिद, गुरद्वार, माँगे सभी मुराद,
मैं माँगू संसार में, शाँति का प्रसाद,
बहुत बढ़िया