आजकल स्मार्ट फोन के साथ कारें भी स्मार्ट आ गई हैं। यदि आप घर से बिना सीट बैल्ट लगाये ही निकल पड़े तो आपकी गाड़ी टें टें करके आपके कान खा लेगी जब तक कि आप सीट बैल्ट लगा नहीं लेते। इसी तरह दरवाज़ा खुला होने पर भी आपको सूचित कर देगी। पैट्रोल कम होने पर वह आपको यह भी बता देगी कि आप कितनी दूर और जा सकते हैं। इसके अलावा सुख सुविधा के सभी साधन तो गाड़ी में होते ही हैं।
लेकिन दिल्ली जैसे शहर की सडकों पर चलते हुए आपको ट्रैफिक स्मार्ट नहीं मिलेगा। बल्कि इतना अनुशासनहीन मिलेगा कि यदि आप स्वयं गाड़ी चला रहे हैं तो आपका ब्लड प्रेशर बढ़ना निश्चित है। यातायात के सभी नियमों की धज्जियाँ कैसे उड़ाई जाती हैं , यह आप यहाँ की सडकों पर देखकर खुद भी एक्सपर्ट बन सकते हैं नियम तोड़ने में। आइये देखते हैं कि कैसे कैसे उत्पात मचाये जाते हैं दिल्ली की सडकों पर :
चौराहों पर : सबसे ज्यादा अराजकता चौराहों पर नज़र आती है। यदि ट्रैफिक पुलिस कॉन्स्टेबल न खड़ा हो तो रेड लाइट जम्प करना दोपहिया चालकों का मनपसंद खेल है। भरे ट्रैफिक में भी ऐसे बीच में घुस जाते हैं जैसे जान की परवाह ही न हो। और यदि लाइट ख़राब हो जाये तो फिर ऐसी अराजकता देखने को मिलती है कि अपने इंसान होने पर शर्म आने लगती है। पहले मैं पहले मैं की तर्ज़ पर चारों ओर से सब अपनी गाड़ी को इंच इंच कर आगे बढ़ाते हुए चौराहे को कुछ ही पलों में युद्ध का मैदान बना देते हैं। फिर फंस कर ऐसे खड़े हो जाते हैं मानो कह रहे हों कि चल अब निकल कर दिखा। मिनटों में लगे जैम को ख़त्म करने में घंटों लग जाते हैं।
मोड़ पर : अक्सर मोड़ पर बायीं ओर मुड़ते समय बहुत ध्यान रखना पड़ता है क्योंकि कब कोई आपके बायीं ओर से मोड़ पर ओवरटेक करके निकल जाये , पता ही नहीं चलता। ऐसे में यदि ज़रा भी चूक हुई तो वो तो गया ही , आप भी मुसीबत में फंस जायेंगे। मोड़ पर ओवरटेक नहीं करते , यह तो जैसे कोई जानता ही नहीं और मानता भी नहीं।
फ्लाईओवर पर : यहाँ भी ओवरटेक करना मना है लेकिन यह बात कोई नहीं मानता। आपके पीछे लगकर पीं पीं करके आपको इतना क्रुद्ध कर देंगे कि या तो आपको साइड देनी पड़ेगी या आप कुढ़ते रहेंगे।
लेन ड्राइविंग : तो जैसे कोई जानता ही नहीं। जब दूसरे लेन में नहीं चलते तब आपके लिए भी लेन में चलना मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव ही हो जाता है। कब कौन अचानक बिना इंडिकेटर दिए लेन बदल कर आपके सामने आ जाये , यह डर सदा लगा रहता है।
हाई बीम : रात में हाई बीम पर चलना दूसरों के लिए बहुत कष्टदायक होता है। ऐसा करने पर २००० रूपये जुर्माना भी हो सकता है। लेकिन आधे से ज्यादा लोग हाई बीम पर ही ड्राइव करते हैं। इससे न सिर्फ आगे वाली गाड़ी के चालक को दिक्कत आती है , बल्कि सामने से आते ट्रैफिक के लिए भी घातक सिद्ध हो सकती है। शुक्र है कि आजकल कारों में रियर व्यू मिरर में हाई बीम से बचने का इंतज़ाम होता है।
हॉर्न बजाना : यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो हम दिल्ली वालों को पैदा होते ही सीखने को मिल जाती है। किसी भी सड़क के किनारे बने घरों में जाकर देखिये , हॉर्न का इतना शोर होता है कि लगता है जैसे सब पगला गए हैं। बिना बात हॉर्न बजाना हमारी आदत बन गई है। मोटर साइकिल वाले तो हॉर्न पर हाथ रखकर ही बाइक चलाते हैं। चौराहे पर लाइट ग्रीन होते ही सब एक स्वर से शुरू हो जाते हैं। ऐसा पागलपन शायद ही किसी और देश में देखने को मिलता हो। जबकि चौराहे के १०० मीटर के अंदर हॉर्न बजाना कानूनन अपराध है लेकिन आज तक इस बात पर किसी का चालान नहीं कटा।
बिना हेलमेट : दोपहियां सवारियों को हेलमेट पहनना न सिर्फ कानूनी तौर पर आवश्यक है बल्कि सुरक्षा की दृष्टि से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। लेकिन एक बाइक पर तीन तीन युवक बैठकर बिना हेलमेट के ट्रैफिक में ज़िग ज़ैग ड्राइव करना तो जैसे फैशन सा बन गया है। बेशक हर बार दुर्घटना नहीं होती लेकिन यदि हो जाये तो भयंकर परिणाम होना लगभग निश्चित है।
रोड रेज़ : यहाँ बस एक बार किसी की गाड़ी दूसरी गाड़ी से बस ज़रा छू भर जाये , फिर देखिये कैसा दृश्य सामने आता है तू तू मैं मैं का। यहाँ हर कोई अपने आप को वी आई पी समझता है। या तो तुरंत हाथापाई शुरू हो जाती है या लोग फ़ौरन फोन घुमाना शुरू कर देते हैं अपने साथियों को बुलाने के लिए या नेतागिरि करने के लिए। अक्सर जितना नुकसान एक्सीडेंट में नहीं होता , उससे ज्यादा लड़ाई झगडे में हो जाता है।
ड्रिंक एंड ड्राइविंग : सबसे खतरनाक है यह उल्लंघन। इसके कारण कई भयंकर हादसे हो चुके हैं। लेकिन युवा वर्ग बिलकुल परवाह नहीं करता। जबकि सच यहाँ है कि नशे में होने पर स्वयं पर सारा नियंत्रण समाप्त हो जाता है और ड्राईवर अपने लिए और दूसरों के लिए भी खतरा बन जाता है। हालाँकि आजकल पुलिस वाले जगह जगह एल्कोमीटर लेकर खड़े रहते हैं लेकिन इनकी संख्या अत्यंत कम होने के कारण प्रभावी नहीं हो पाते।
ड्राइव करते समय फोन का प्रयोग : हानिकारक तो है ही , कानूनन जुर्म भी है। लेकिन लोग बाज़ नहीं आते और बात करने के नए नए तरीके भी निकल आते हैं। इनमे सबसे नया है गाड़ी में लगा इंफोटेन्मेंट सिस्टम जिसको आप फोन के साथ सिंक्रोनाइज़ कर सकते हैं और बिना हाथ लगाये बात कर सकते हैं। पता नहीं पुलिस इस बारे में क्या कहती है।
कानून के उपरोक्त १० उल्लंघनों पर कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त पुलिस न होने के कारण दिल्ली की जनता धड्ड्ले से ट्रैफिक के नियमों का उल्लंघन करती है। ज़ाहिर है , दिल्ली की सडकों पर खतरा सदा मंडराता रहता है। लेकिन हम समझने को तैयार नहीं। इंसान सदा डर से डरता है। जब डर नहीं होता तो वो इंसान से शैतान बन जाता है। वर्ना यही लोग जब अमेरिका , कनाडा या दुबई जैसे देशों में जाकर ड्राइवर का काम करते हैं तो एकदम सीधे सादे और नेक इंसान बन जाते हैं क्योंकि वहां उन्हें पता होता है कि सजा से बच निकलने का वहां कोई मार्ग नहीं होता। काश कानून का यह डर यहाँ भी होता !
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (28-11-2015) को "ये धरा राम का धाम है" (चर्चा-अंक 2174) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी।
Deleteआभार .
ReplyDelete