देश विदेश में भ्रमण करने के बावज़ूद बैंगलोर कभी जाना नहीं हो पाया था। इत्तेफ़ाक़ से यह अवसर मिला जब अभी बेटे के पास जाना हुआ। ऐसे में हम तो जो टिकेट सबसे सस्ती मिलती है , उसे ही बुक करा देते हैं। संयोगवश इस बार आना जाना दोनों ही एयर इण्डिया से हुआ। जाते समय तो प्लेन साधारण सा ही था लेकिन वापसी में एयर इण्डिया का ड्रीमलाइनर विमान मिला जिसमे बैठकर एक बार तो आनन्द आ गया।
एयर इण्डिया का एक लाभ तो यह मिलता है कि इसकी उड़ान टी- ३ से उड़ती है। इसलिए एयरपोर्ट पर ही आधे पैसे वसूल हो जाते हैं। उस पर फलाइट के दौरान जैसा भी सही , लेकिन खाना मुफ्त में मिलता है।हमें तो बैठते ही वो दिन याद आ गए जब पहली बार और तद्पश्चात एयर इण्डिया से यात्रा करते थे और बैठते ही सुन्दर सी विमान परिचारिका एक ट्रे में टॉफियां और इयर प्लग लेकिन सेवा में हाज़िर हो जाती थी। फिर टेक ऑफ़ करते ही पहले गर्मागर्म तौलिया हाथ मुँह पोंछने के लिए हाज़िर होता था। और फिर खाना। इस तरह एक महाराजा की तरह ही आपको ट्रीट किया जाता था। लेकिन अब न महाराजा रहा , न वो आवभगत। फिर भी , एयर इण्डिया से सफ़र करना एक सुखद अनुभव ही रहा।
यूँ तो बैंगलोर को देश का आई टी हब कहा जाता है। इसलिए उत्तर भारत से बहुत से युवा जॉब करने यहाँ आते हैं। लेकिन यह शहर बाकि बड़े शहरों की अपेक्षा थोड़ा महंगा है। एयरपोर्ट से निकलते ही सड़क के दोनों ओर बहुत खूबसूरत हरियाली और फूलों की सजावट मिली। हालाँकि प्री पेड़ टैक्सी बहुत महँगी थी , लेकिन बाहर टैक्सियों के रेट अपेक्षाकृत कम थे। लेकिन शहर से दूर होने की वज़ह से समय और पैसा अतिरिक्त ही लगा।
यहाँ घूमने के लिए नेट पर कुछ स्थल अपनी पसंद के ढूंढें और हम पहुँच गए इस पैलेस में जिसे वड़ियार राजाओं ने बनवाया था। महल में प्रवेश टिकेट ही इतना महंगा था कि एक बार तो सोचना पड़ा। लेकिन फिर २२५ रूपये प्रति व्यक्ति देकर महल देखने का प्रलोभन छोड़ना असम्भव ही था। आखिर , देखकर निराश तो नहीं ही हुए।
बाहर लॉन से महल का दृश्य।
महल का एक कक्ष जो बैठक जैसा था। गाइड के रूप में ऑडियो यंत्र दिए गए थे जिसमे रिकॉर्ड किये गए सन्देश द्वारा हर कक्ष के बारे में बताया गया था।
खूबसूरती से सजे आँगन में रखा एक आसन , सोफेनुमा।
मुख्य प्रवेश द्वार के सामने बना है यह बड़ा हॉल जिसमे शादियां होती हैं। इसकी सजावट भी बेहद सुन्दर थी।
महल के बाहर लॉन में यह पेड़ सैकड़ों वर्ष पुराना लगता है। इसने अपने अंदर कई और छोटे पेड़ छुपाये हुए हैं जिन्हे यह संरक्षण प्रदान करता है।
पेलेस से लौटे समय विधान सभा भवन आता है जो मेंन रोड पर ही है।
यह विधान सभा का नया भवन है। पुरनी बिल्डिंग भी साथ ही है।
विधान सभा भवन के बाहर पेड़ों की छटा।
बैंगलोर की एक विशेषता तो यह लगी कि यहाँ कहीं भी हमें झुग्गी झोंपड़ी या अनधिकृत आवासीय कॉलोनी दिखाई नहीं दी , न ही कोई स्लम दिखा। सभी शहरों की तरह यहाँ भी एक महात्मा गांधी रोड़ है जो काफी आधुनिक साज सज्जा से परिपूर्ण है। यह हैरानी की ही बात थी कि देश की राजधानी में भी एम् जी रोड है लेकिन वह महात्मा गांधी नहीं बल्कि मेहरौली गुडगाँव रोड कहलाती है। क्या महात्मा गांधी के नाम पर दिल्ली में इतना रोष है ?
परिवहन के रूप में यहाँ भी दिल्ली जैसी लो फलोर बसें थी लेकिन उनका किराया बहुत ज्यादा था। टैक्सी सिर्फ फोन पर बुकिंग से ही मिलती हैं जिनका किराया भी ज्यादा ही लगा। लेकिन सड़क पर ऑटो अवश्य मिल जाते हैं परन्तु वे कभी मीटर से चलने को राज़ी नहीं होते। फल , सब्ज़ियाँ , दूध , खाने पीने की सभी चीज़ें दिल्ली के मुकाबले महँगी हैं।
लेकिन जो बात सबसे अच्छी है वो है यहाँ का मौसम। लगता है यहाँ गर्मी तो कभी पड़ती ही नहीं , न ही ज्यादा ठण्ड होती है। शायद इसका कारण है इसकी समुद्र तल से ऊंचाई जो करीब ९०० मीटर है जबकि दिल्ली की ऊंचाई २०० मीटर ही है। इसलिए यहाँ सुबह शाम मौसम बहुत सुहाना रहता है। ठंडी हवायें जब लहरा कर आती हैं तो सारी महंगाई भूल सी जाती है। यहाँ वायु प्रदुषण भी बहुत कम लगा। पानी और बिजली की किल्लत भी नज़र नहीं आई। लोग भी दिल्ली के मुकाबले ज्यादा सभ्य लगे। सडकों पर थूकना भी दिखाई नहीं दिया। विशेष तौर पर एक बात अच्छी यह लगी कि यहाँ लगभग सभी हिंदी समझते भी हैं और बोलते भी हैं। एक ग्राहक को दुकानदार से हिंदी में बात करते हुए देखकर अति प्रसन्नता हुई क्योंकि दोनों ही दक्षिण भारतीय थे।
लेकिन वापस आते समय यही महसूस हुआ कि जहाँ हमारे पडोसी बैंगलोर से आकर दिल्ली में बसे हैं , वहीँ दिल्ली वाले जॉब करने बैंगलोर जा रहे हैं। आखिर घर में भी होती है रोटी ! लेकिन लगता है , समय के साथ यह परिवर्तन भी अनिवार्य है अब तो जिसके साथ ही जीना है।
हमने बैंगलोर में यह महल नहीं देखा था, चलो आपने दिखा दिया। लेकिन एक कटु सत्य यह भी है कि बैंगलोर की खूबसूरती को आईटी कम्पनियों की भीड़ ने निगल लिया है। अब तो हर वक्त भीड़ का ही सामना करना पड़ता है।
ReplyDeleteलेकिन इससे यहाँ देश के हर कोने से आये लोग मिल जाते हैं .
Deleteसालों पहले देखा था बैंगलोर. अब तो काफी बदल गया होगा. लेकिन तब भी यह शहर भला सा लगा था.
ReplyDeleteआज भी भला सा ही लगा आपकी पोस्ट से.
भारइस वायु सेवा के अपने लुफ्त तो हैं ही ,लुफ्तांसा की ही तरह
ReplyDeleteऔर त का एक खूबसूरत शहर
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन वर्ल्ड वाइड वेब को फैले हुये २५ साल - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
लेकिन वापस आते समय यही महसूस हुआ कि जहाँ हमारे पडोसी बैंगलोर से आकर दिल्ली में बसे हैं , वहीँ दिल्ली वाले जॉब करने बैंगलोर जा रहे हैं। आखिर घर में भी होती है रोटी ! लेकिन लगता है , समय के साथ यह परिवर्तन भी अनिवार्य है अब तो जिसके साथ ही जीना है।
ReplyDeleteयादगार यात्रा संस्मरण डॉ साहब प्रणाम अनुभवों का लाभ आपसे सदा मिला
आपकी बैंगलोर यात्रा अच्छी रही। सुन्दर तस्वीरों के लिए सादर धन्यवाद।।
ReplyDeleteनई कड़ियाँ : 25 साल का हुआ वर्ल्ड वाइड वेब (WWW)
वाह अपकी पोस्ट में फ़ोटो तो बहुत ही सुंदर हैं. लेख में चार चांद लगाते हैं.
ReplyDeleteआप ब्लॉग पर बहुत कम आते हैं ! :)
Deleteसुंदर यात्रा संस्मरण...रोचक।।।
ReplyDeleteविधानसौधा के एक किलोमीटर पर ही हमारा निवास है, आप आते तो आनन्द आता।
ReplyDeleteबेशक पाण्डेय जी . लेकिन समय बहुत सीमित था .
Deleteबैंगलोर जाना हुआ था वर्षों पहले , खूबसूरत हाईटेक शहर है यह . लाल बाग़ और फिशरी देखा था !
ReplyDeleteसुन्दर चित्रों ने फिर से याद दिलाया !
देखा नहीं ये महल अभी तक .. पर अगली बार जाना हुआ तो जरूर देखेंगे ...
ReplyDeleteआपने सुन्दर चित्रों से इसकी खूबसूरती को बढ़ा दिया है ... अच्छा लगा आपका संस्मरण ... होली कि बधाई ...