आज से लगभग तीस वर्ष पहले जब पहली बार एयर इंडिया के महाराजा से हवाई यात्रा की थी तब स्वयं को एक वी आई पी जैसा महसूस किया था. यह एयरलाइन भी तब यात्रियों के साथ शाही मेहमान की तरह ही व्यवहार करती थी. सबसे पहले तो विमान में बैठते ही अत्यंत सुन्दर परियों सी एयर होस्टेस के दर्शन होते थे. फिर वो अपने सुन्दर हाथों से टॉफी परोसती थीं. हमें याद है जब पहली बार हमने हवाई यात्रा की और एयर होस्टेस जब एक ट्रे में इयर प्लग और टॉफियाँ लेकर आई तब हमने तो डरते डरते एक ही टॉफी उठाई, लेकिन साथ वाली सीट पर बैठे एक महानुभव ने जब मुट्ठी भरकर टॉफियाँ उठाई तब एयर हॉस्टेस ने उसे अजीब सी निगाहों से देखा था. उसके बाद आरंभिक औपचारिकताओं के बाद जब प्लेन उड़ान भर चुका और बेल्ट खोलने का संकेत हुआ तो फ़ौरन एयर हॉस्टेस प्लेट में कुछ लेकर हाज़िर थी. हमने सुना था कि एयर इंडिया वाले उड़ान के दौरान बहुत खातिरदारी करते हैं. लेकिन जब प्लेट में अनेक क्रीम रोल्स रखे नज़र आये तो यह देखकर बड़ी हैरानी हुई कि खाने की शुरुआत क्रीम रोल से ! लेकिन जब हाथ में आया तब समझ में आया कि वे सफ़ेद रंग के रोल्स खाने के क्रीम रोल्स नहीं बल्कि मूंह पोंछने के लिए गर्म गीले तौलिये थे. खैर , हाथ मूंह पोंछकर हम खाने के लिए तैयार थे और खाना भी खूब खिलाया गया.
लेकिन अभी जब एक बार फिर एयर इंडिया से यात्रा करने का अवसर मिला तो लगा कि वक्त कितना बदल गया है. एयर हॉस्टेस तो अब भी थीं लेकिन आकर्षक सिर्फ साड़ियाँ ही थीं. खाने पीने के नाम पर बस एक दो सौ एम् एल की जूस की बोतल और दो बिस्कुट। दो सौ एम् एल की पानी की बोतल भी बस मांगने पर ही. वापसी में तो बिस्कुट की जगह २ ५ ग्राम भुनी हुई मूंगफली जिसे खाकर सभी ऐसे आनंदित हो रहे थे जैसे रेगिस्तान में बिसलेरी मिल गई हो. लगता है अब वो दिन भी दूर नहीं जब अगली बार भुने हुए चने खाकर ही संतोष करना पड़ेगा।
अगली सीट की बैक पर लगे मोनिटर में यह सन्देश उड़ान के पूरे समय आता रहा. लेकिन गंतव्य शहर आ गया पर कार्यक्रम आरम्भ नहीं हुआ. आखिर आते जाते दोनों समय द्वार पर हाथ जोड़े खड़ी एयर हॉस्टेस की मधुर मुस्कान से ही महाराजा होने का क्षणिक अहसास हुआ.
बेड टी घर पर , नाश्ता और लंच लखनऊ में , फिर डिनर वापस घर आकर. अक्सर ऐसा कार्यक्रम कॉर्पोरेट जगत में देखा जाता है. लेकिन कुछ ऐसा ही हुआ हमारे साथ , जीवन में पहली बार. गुजरे ज़माने में नवाबों की नगरी लखनऊ के बारे में सुना था कि यह कोई विशेष शहर नहीं। हालाँकि लखनवी तहज़ीब के बारे में बहुत सुना था. लेकिन पता चला कि सुश्री मायावती जी ने इस शहर की कायापलट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
गोमती नदी के किनारे बने डॉ भीम राव अम्बेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल द्वार से होकर नदी पार कर पहुँचते हैं धोलपुर पत्थर से बने स्थल पर.
गोमती नदी के पार एक बहुत बड़े क्षेत्र में बना है यह पत्थरों का शहर जो निश्चित ही देखने में बड़ा चक्षु प्रिय लगता है. इस भवन में बना है एक ऑडिटोरियम।
नदी के किनारे किनारे यह सड़क जिसके दोनों ओर शाम के समय बैठकर निश्चित ही रोजमर्रा की भाग दौड़ की जिंदगी से काफी राहत मिलती होगी।
इसी के दूसरी ओर कई दुकानें बनाई गई थी जो अब खाली पड़ी थी. पता चला यहाँ शाम को शानदार मेला सा लगता है. वास्तव में यह स्थान लखनऊ वासियों के लिए एक नया जीवन दान देने वाला लगता है.
बेशक इसे बनाने में सरकार या यूँ कहिये की पब्लिक फंड को भारी मात्रा में लगाया गया होगा। लेकिन अब इन्हें यूँ बेकद्री से पड़े देखकर आजकल की राजनीति पर क्षोभ ही होता है. राजनीतिक पार्टियों के बीच फंसकर यदि कोई बेवकूफ़ बनता है तो वह आम जनता ही है. नेता लोग तो अपने व्हिम्स और फेंसी के तहत अपनी मनमर्जी करते हैं और जनता बेचारी खड़ी बस तमाशा देखती रह जाती है.
एयर इंडिया का वो पुराना जमाना तो अब बस ख्वाबों में ही रह गया, क्या दिन थे वो भी.
ReplyDeleteरामराम.
-----दूर से और सुनसान देख कर और भी सुन्दर लगता है ..
ReplyDelete.....यद्यपि अब पहले आप में गाडी कोइ नहीं छोड़ता परन्तु मरे हाथी में अभी भी कुछ जान है...
सुंदर छवियां ,बहुत जल्द इन पार्को में शादियाँ होने वाली हैं |आपने मायावती और कांशीराम की छवि भी देखि होगी ,काफी बड़ी प्रतिमा हैं |उनपर मालाये भी |
ReplyDeletechhabiya bahut sundar hain !
ReplyDeleteLatest post हे निराकार!
latest post कानून और दंड
अभी तक प्लेन में सफर नहीं किया,लेकिन शीघ्र ही ४-५ देशों का टूर बन रहा है ...
ReplyDeleteRECENT POST : हल निकलेगा
लखनऊ के ठाठ हैं , आज भी !!
ReplyDeleteअब तो हवाई यात्रा बोझ लगने लगी है, पानी भी मुश्किल से पिलाया जाता है।
ReplyDeleteलखनऊ के हजरतगंज में जनपथ मार्केट हुआ करती थी एक जहां शाम को मेला-सा होता था, अच्छा लगा जानकर कि लखनऊ इतना बदल गया है.
ReplyDeleteसुन्दर चित्रण । बढ़िया प्रस्तुति ।
ReplyDeleteमेरी नई रचना :- चलो अवध का धाम
लखनऊ के ठाठ पहले भी थे और आज भी है .......पर आज का बदला हुआ रूप अच्छा लगा रहा है
ReplyDeleteवर्धा जाते समय ट्रेन में पोस्ट मोबाईल पर पढ़ गया -टिप्पणी नहीं हो पायी
ReplyDeleteक्या खूब लिखा है आपने अपने नखलऊ के बारे में :-)
एयर इंडिया के विमान से विमान यात्रा के तो और भी कई किस्से हैं डॉ साहब, जैसे एयर होस्टेस सभी उम्र दराज़ हो चुकी हैं। लोग सामने की सीट पर जहां अखबार और पत्रिकाएँ रखने की जगह होती है वहाँ चप्पले उतार कर रख देते हैं। पीने वालों के लिए सादी मूँगफली और चाकोली आती है अब आती है या नहीं, पता नहीं पर आज से 3-4 साल पहले तो यही हाल देखा था हमने, प्लेन कम हमें तो ट्रेन का डब्बा ज्यादा लगी थी वो फ्लाइट जिसमें सब अपनी-अपनी मन मर्ज़ी के हिसाब से चल रहे थे :) तब से हमें तो जेट एयर वेज और एमिरेटेस ही अच्छी लगती हैं।
ReplyDeleteपाथर नगरी, जीवन ढूँढ़ू।
ReplyDeleteपता नहीं जी...अब तक हवाई जहाज में यात्रा की ही नहीं है....सारी दुरियां बस और रेल से नापी हैं....हां विदेश जाना होगा तो जाएंगे जरुर हवाई जहाज से ..क्योंकि पानी के जहाज से आधा ही रास्ता नापा होगा की समुद्र में ही छुट्टियां खत्म हो जाएंगी और हमें आधे रास्ते से तैरकर वापस आना पड़ेगा..
ReplyDeleteराजनीती और नेता दो पाटन के बीच पिसे जनता। अच्छी चीजों की भी उपेक्षा तो यही लोग कर सकते हैं।
ReplyDeleteशहर तो सच में बहुत साफ दिख रहा है .. ये मायावती का कमाल है या आपके केमरे का ...
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