दिल्ली में हुई बलात्कार की जघन्य घटना से न सिर्फ दिल्ली बल्कि पूरा हिंदुस्तान आक्रोश में भर गया है। सडकों पर , गलियों में , न्यायालय के सामने यहाँ तक कि राष्ट्रपति भवन के आगे भी युवाओं ने जमकर प्रदर्शन किये हैं। फेसबुक पर, ब्लॉग्स पर , समाचार पत्रों और टी वी चैनलों पर सभी जगह लोग एक जुट होकर इस घटना से इतने क्षुब्ध हैं कि अपराधियों के लिए सब मौत की सज़ा की फरियाद कर रहे हैं। भले ही कानून में फांसी की सज़ा रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर केसिज में ही देने का प्रावधान है। लेकिन इस घटना की गंभीरता को देखते हुए अपराधियों पर किसी तरह का रहम मानवता के विरुद्ध ही होगा।
हालाँकि 6 में से 4 आरोपी युवक पकड़े जा चुके हैं, लेकिन इस समय सज़ा से ज्यादा अहम् दो बातें नज़र आती हैं।
1) पीड़ित लड़की की चिकित्सा : डॉक्टरों के अनुसार बलात्कार की ऐसी वीभत्स घटना उन्होंने पहले कभी नहीं देखी। पीड़ित लड़की की आंतें इस कद्र चोटिल हो गई थी कि उसे शल्य क्रिया द्वारा लगभग पूर्णतया निकालना पड़ा। हालाँकि रोगी ने ग़ज़ब का साहस दिखाया है और वह दृढ इच्छा शक्ति से इस विकट समस्या का सामना कर रही है। लेकिन यह भी कटु सत्य है कि बिना क्षुद्र आंत्र ( स्मॉल इंटेसटाइन ) के कोई भी व्यक्ति सामान्य जीवन नहीं गुजार सकता। चिकित्सकों के अनुसार इसका स्थायी उपचार आंत्र प्रत्यारोपण ही हो सकता है। बेशक यह उपचार साधारण नहीं है। कहा नहीं जा सकता कि यह संभव भी होगा या नहीं। फ़िलहाल तो सारे देशवासियों की दुआएं इस बाला के साथ हैं।
2) इस तरह की घटनाओं को कैसे रोक जाये ?
इन्सान में अपराधिक प्रवृति भिन्न भिन्न होती है। कुछ लोग मूल रूप से ही अपराधिक प्रवृति के होते हैं। इन लोगों को कभी सुधारा नहीं जा सकता। न ही इन्हें सज़ा का खौफ होता है। ऐसे लोग पृथ्वी पर एक बोझ होते हैं। इनके साथ किसी भी तरह का मानवीय व्यवहार सम्पूर्ण मानव जाति के प्रति अन्याय होगा। ऐसे लोगों को इंसानों के बीच रहने का कोई हक़ नहीं होना चाहिए। ये सजाए मौत के असली हक़दार होते हैं।
कुछ लोग ऐसे होते हैं जो सपने में भी अपराध करने की नहीं सोच सकते। हालाँकि सात्विक प्रवृति के ऐसे संत आदमी आजकल विरले ही होते जा रहे हैं। इनसे समाज को कोई डर नहीं होता और वे सदा समाज के हितार्थ ही कार्य करते हैं।
लेकिन एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जो अपराधिक प्रवृति का न होते हुए भी विपरीत परिस्थितियों में अपराधी बन सकता है। ये जनसाधारण वर्ग के वे लोग हैं जो तामसी और राजसी प्रवृति के बीच हिचकोले खाते रहते हैं। ऐसे लोगों को अपराधी बनने से सिर्फ एक ही कारक बचाता है -- कानून का डर। जब इन्सान को कानून का डर नहीं रहता , तब उसकी तामसी प्रवृति जाग्रत हो जाती है जो अवसर मिलने पर मनुष्य को अपराध की ओर ले जाती है। ऐसे में अति आवश्यक है कि हमारी कानून व्यवस्था मज़बूत हो। एक ऐसी व्यवस्था हो जो ऐसे जघन्य अपराध होने से बचाए। साथ ही अपराध होने पर न्याय दिलाने में देर न लगाये।
अपराध रोकने के लिए :
* सडकों पर पुलिस की गश्त बढाई जानी चाहिए। पुलिस की मौजूदगी ही अक्सर अपराध कम करने में सक्षम रहती है।
* पुलिसकर्मियों में अनुशासन , मानवीय संवेदना और कर्तव्य परायणता को बढ़ाना होगा।
* पुलिसकर्मी भी इन्सान होते हैं। इसलिए उनके निजी हितों और सुविधाओं का भी ख्याल रखा जाना चाहिए ताकि वे अपना कार्य निडर होकर सुचारू रूप से कर सकें।
* यातायात के नियमों का सख्ती से पालन कराया जाना चाहिए। इसके लिए ट्रैफिक पुलिस में मेनपावर बढ़ानी आवश्यक है।
* अपराधी को सज़ा दिलाने में न्यायिक प्रक्रिया में सुधार होना चाहिए।
अक्सर एक बलात्कार की पीड़ित महिला को न्याय मिलने में न सिर्फ देरी होती है बल्कि उसे बलात्कार से भी ज्यादा पीड़ा देने वाली प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। इसे रोकने के लिए हमारी न्याय प्रणाली को अतिरिक्त संवेदना पूर्ण होना चाहिए। फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट, इन केमरा सुनवाई , क्रॉस एग्जामिनेशन में संवेदना और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार तथा पीड़ित पर किसी भी प्रकार का अनावश्यक दबाव न होने देना ऐसे आवश्यक कदम हैं जिनसे न सिर्फ पीड़ित महिला को उचित न्याय मिलने की आशा रहेगी बल्कि उसके दर्द को थोडा कम किया जा सकेगा।
सज़ा :
बलात्कार एक ऐसा अमानवीय अत्याचार है जो न सिर्फ एक महिला की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर प्रहार है बल्कि उसकी आत्मा को भी खंडित कर देता है। यह न सिर्फ भयंकर शारीरिक वेदना और पीड़ा देता है बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी स्थायी और अमिट दुष्प्रभाव छोड़ जाता है। इंसानियत के विरुद्ध इससे बड़ा और कोई अपराध नहीं हो सकता। इसलिए आवश्यक है कि बलात्कार के आरोपी पर अपराध सिद्ध होने पर सज़ा में कोई नर्मी न बर्ती जाये और उसे सख्त से सख्त सज़ा दी जाये। और फांसी से ज्यादा सख्त सज़ा और क्या हो सकती है। फांसी का तो नाम सुनकर ही बदन में सिरहन सी दौड़ जाती है। फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट द्वारा शीघ्र कार्यवाही पूर्ण कर जब दो चार अपराधियों को फांसी लगा दी जाएगी तो संभव है लोग ऐसा अपराध करने से डरने लगें। वर्ना दिल्ली की सड़कों पर यूँ ही ये खूंखार दरिन्दे बेख़ौफ़ घूमते रहेंगे अपने अगले शिकार की तलाश में।
इन्सान बस एक ही डर से डरता है -- मौत का डर ! जब तक अपराधियों को मौत का डर दिखाई नहीं देगा , सड़कों पर इंसानियत यूँ ही बेमौत मरती रहेगी।
मौत का खौफ़ हर किसी में होता है. अपराधी सिर्फ़ यही सोच कर अपराध करते है कि कानून की कमजोरी का फ़ायदा उठा बच जायेंगे।
ReplyDeleteऐसे लोगों को आसान मौत देना तो मौत की बेईज्जती होगी, पुलिस का हाल देखा था इस घटना के बाद जारी हाई अलर्ट में लोगों के बैग चैक करती दिख रही थी पुलिस, हसी आती है ऐसे हादसे में भी उगाई के तरीके तलाश कर लेते है भ्रष्टाचारी लोग।
आपके बताए उपाय अच्छे हैं पर जिन्हें इनको लागू करना है ,उनमें न इच्छाशक्ति है और न वे इससे प्रभावित हैं।जनजागरण से ही कुछ हो सकता है !
ReplyDeleteबेशक जन जागरण से कानून व्यवस्था में सुधार की आशा दिखाई देती है।
Deleteजनता जाग रही है, उम्मीद करते हैं कि अब तो शायद कुछ हो ही पायेगा ...
ReplyDeleteयह अपराध समग्र 'मानवता' का सबसे बडा घातक है. यह न केवल पीडितोँ के लिए असह्य, असीमित वेदना का कारक है बल्कि सम्पूर्ण समाज को अपूर्णीय घाव दे जाता है.
ReplyDeleteआपके प्रस्तुत सुझाव बहुत ही अच्छे है.एक और बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि ऐसे अपराधी जब तक अपराध में लिप्त नहीं होते,निशानदेही नहीं हो पाती.सुरक्षा और सावधानी के लिए यह तथ्य बहुत बडी बाधा है.
इन सभी उपायों के समांतर, सदाचार, सद्चरित्र व संयम के महत्व का अनवरत प्रसार होना चाहिए. इसके विपरित भाव वाले प्रसार प्रचार को बाधित किया जाना चाहिए.
सडकों पर कानून व्यवस्था में सुधार होने से ऐसे लोगों की हिम्मत नहीं पड़ेगी। दुष्ट आत्माओं को प्यार से नहीं सुधारा जा सकता।
Deleteजिन्हें अपने जीवन और मान मर्यादा की चिंता नहीं होती वह क्या दूसरे के जीवन और भावनाओं को समझ पाएंगे .....उनके लिए मानवीय भावनाओं और संवेदनाओं की कोई कीमत नहीं ....हाँ ऐसे संवेदना हीन लोगों को जीने का भी तो कोई अधिकार नहीं ......इसलिए जो भी कठोर सजा इन्हें दी जा सकती है वह दी जानी चाहिए ....!
ReplyDeleteशर्म आती है डा0 साहब मुझे तो अपने हिन्दुस्तानी होने पर। आपकी बातो से पूर्णतया सहमत हूँ लेकिन साथ ही अपने ब्लॉग के एक लेख का कुछ हिस्सा भी इस टिप्पनी में जोड़ रहा हूँ, जो मेरी बात कहता है ! क्योंकि हम लोग सिर्फ पुलिस को ही दोष न दे। आज भ्रष्ट जुडीशियरी और विधायिका (राजनीतिग ) इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। (369 तो हमारे ऐसे एम् पी और एम एल ए ही है जिनपर महिलाओं से बदसुलूकी के संगीन अपराध है ) अपराधियों को बचने के लिए हमारी जुडीशियरी यह निर्णय तो झट से सुना देती है की अगर कोई अपराधी फर्जी मुठभेड़ में पुलिस द्वारा मारा जाता है तो उन पुलिस कर्मियों को मृत्यु दंड दिया जाना चाहिए ( मैं यह नहीं कहता की हमारी पुलिस बहुत शरीफ है किन्तु पुलिस का मनोबल तो इन्होने तोड़ा है ). और यहाँ ये खामोश है ! यहाँ क्यों नही जुडीशियरी वही निर्णय सुनाती है इन दरेंदों के लिए ??? लेख का हिस्सा यहाँ चस्पा कर रहा हूँ :
ReplyDeleteजब से यह दिल्ली की छात्रा के साथ दरिंदगी का मामला प्रकाश में आया है, संसद, विधान सभाओं, खबरिया माध्यमो और टीवी चैनलों पर खूब घडियाली आंसू बहाए जा रहे है। और उन्हें सुनकर , पढ़कर मैं पके जा रहा हूँ क्योंकि एक भी माई के लाल ने यह सवाल नहीं उठाया कि जनता की सेक्योरिटी के लिए जो सुरक्षाबल थे, उन्हें तो इन घडियाली आंसू बहाने वाले कायरों ने हड़प रखा है, जनता तो असुरक्षित होगी ही ! आज तक किसी राजनितिक हस्ती अथवा उसके रिश्तेदारों का गैंगरेप हुआ ? नहीं।।।।। क्योंकि उनके पास तो फ्री के पुलिसवाले बन्दूक्धारी हैं। आप देखें की एक तथाकथित वीआइपी जो एयर पोर्ट आ -जा रहा हो, आपने भी गौर फरमाया होगा कि उसको प्राप्त ब्लैक कमांडो के अलावा भी एयर पोर्ट से नई दिल्ली ( उसके गंतव्य तक ) के हर चौराहे पर सफ़ेद वर्दी वाले 5-5 ट्राफिक पुलिस के जवान और एक से दो जिप्सिया खडी रहती है, जबकि बाकी दिल्ली में कई जगहों पर ट्रैफिक लाईट पर एक भी ट्रैफिक कर्मी नहीं होता, पुलिस जिप्सिया तो दूर की बात है और लोग खुद ही घंटों जाम में जूझ रहे होते है। ये हाल तो सिर्फ दिल्ली का बया कर रहा हूँ, बाकी देश का क्या होगा ! इसलिए यही कहूंगा कि जागो...... राजनीतिक स्वार्थ के लिए दूसरों पर ये कितनी जल्दी आरक्षण थोंपते है लेकिन एक महिला आरक्षण बिल संसद में कब से धूल फांक रहा है, अगर वह समय पर पास हुआ होता और संसद में महिलाओं का उचित प्रतिनिधित्व होता तो क्या वे महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार को रोकने के लिए कोई सख्त क़ानून नहीं बनाते? इसलिए बस, अब जागो वरना कश्मीर के मशहूर उर्दू कवि वृज नारायण चकबस्त जी का यह शेर सही सिद्ध हो जाएगा - "मिटेगा दीन भी और आबरू भी जाएगी, तुम्हारे नाम से दुनिया को शर्म आएगी।"
वाकई आत्म निरीक्षण की ज़रुरत है।
Delete"मिटेगा दीन भी और आबरू भी जाएगी, तुम्हारे नाम से दुनिया को शर्म आएगी।"
Deleteसहमत हूँ, सतही बात से समस्या हल नहीं होती, सबका आक्रोश स्वाभाविक है!
बेशक आपका सब कहना सही है मगर ऐसे कुकर्मियों के लिये फ़ांसी तो मुक्ति है उन्हें तो ऐसी सज़ा दीजाये कि आगे कोई ऐसा करने की सोच भी ना सके यदि कानून मे नही है ऐसी सज़ा तो शामिल की जाये विशेष अधिकार का इस्तेमाल करके………तभी सुधार संभव है। उन्हें तो पत्थरों से मारा जाये सरे आम हर राह चलता मार सके,हर बहन बेटी मार सके और ज़िन्दा भी रहे सडक पर खुलेआम हर पल ऐसी मौत मरे कि मौत की रूह भी काँप उठे फिर देखो कैसे नहीं बदलाव आता ज़हनी सोच में
ReplyDeleteयह आक्रोश जायज़ है।
Deleteडॉ साहब इस लेख के प्रथम भाग "1) पीड़ित लड़की की चिकित्सा" के संबंध मे कहना चाहूँगा कि दो दिन पूर्व एक जीवन रक्षक स्तुति फेसबुक पर देकर सहृदय दिल्लीवासियों से अनुरोध किया था कि उसे मरीज के अभिभावकों तक पहुंचा दें आज फिर उसे दोबारा फेसबुक पर जारी किया है। दिल्ली के प्रतिष्ठित ब्लागर-गोड़ियाल साहब को दो वर्ष पूर्व यही स्तुति व्यक्तिगत रूप से भेजी थी। आज आपको भी ई-मेल के जरिये भेज दी है। कृपया अपने किसी विश्वस्त कर्मचारी या फेक्स के माध्यम से उस पीड़िता के अभिभावकों तक पहुंचवाने का कष्ट कर दें। इसी स्तुति से पाँच वर्ष पूर्व सर गंगा राम अस्पताल मे एडमिट किडनी फेलयोर के एक मरीज को लाभ मिल चुका है और वह आज अपना व्यापार सुचारू रूप से कर रहा है।
ReplyDeleteबेहतर लेखनी, बधाई !!
ReplyDeleteवी आई पी सुरक्षा पुलिस कर्मियों का 10-15 % मुंबई नगरी में ले रही है .बाकी
ReplyDeleteजगह खासकर दिल्ली में स्थिति और भी विचित्र हो सकती है .आधी आबादी की
सलामती की कीमत पर कथित वी आई पीज़ कब तक जेड और जेड प्लस सिक्युरिटी का उपभोग करेंगे .
एक आन्दोलन इनके खिलाफ भी होना चाहिए .
पुलिस में सिफारिशी भर्ती अपराध तत्वों की बंद हों उनके आका राजनेताओं के कहे .
उनका पहले मनोवैज्ञानिक परीक्षण हो ,मानवीय पक्षों पर प्रशिक्षण हो ,सिविलिटि
,नागर बोध
से
उनका परिचय करवाया जाए .
बेशक यही बात सभी महकमों पे लागू होती है शिक्षा पर भी जहां कोई भी चला आ
रहा है .प्रासंगिक मुद्दा उठाया है आपने .आभार आपकी सद्य टिपण्णी का जो हमारी बेश कीमती धरोहर है .
dr sahab
ReplyDeletethe first lesson begins at home
stop gender bias athome
teach your sons that they are not gods they are human and they need to be civilized
dont blame the administration , dont blame the system , just each of us should blame ourself
for these people there is no mother , father , brother or sister. they are simply shaitaan .
Deleteदेश का पूरा सिस्टम ही सड़ गया है, अब तो समग्र क्रान्ति की आवश्यकता है।
ReplyDeleteकष्टदायक...
ReplyDeleteशक्त क़ानून बना देने से घटनाओं में कमी आ सकती है,लेकिन ख़तम नही हो सकता,सामाजिक बहिस्कार भी होना चाहिए,,,,
ReplyDeleterecent post : समाधान समस्याओं का,
सहमत, कठोरतम दंड मिले ताकि एक मिसाल कायम हो -हार्ड कोर अपराधी डरें
ReplyDeleteक्या कहें ..सच.कानून तो बना दो , सजा भी लिख दो ..पर उसका पालन भी तो हो.सच पूछिए तो कोई आशा कोई उम्मीद नहीं.
ReplyDeleteमौत के डर के साधे ये दुष्कर्मी सध सकें तो वह भी स्वीकार्य है..आस तो अभी भी शेष है।
ReplyDeleteकेवल क़ानून बना देने से कुछ नहीं होगा समाज की सोच जाग्रत करना होगी
ReplyDeleteउन आरोपियों को इतनी कड़ी सजा की आवश्यकता है कि जिन्दगी उनके लिए ऐसा नासूर बन जाए जिसका कोई इलाज न हो |
यह बात सही है कि सिर्फ कानून बनाने से कुछ नहीं होगा। इसीलिए सज़ा की बात कही है। आवश्यक है कि सख्त सज़ा का प्रावधान हो और उसे पूर्णतया लागु भी किया जाये। हमने अस्पताल में बहुत से अपराधियों को देखा है जिनमे रेपिस्ट भी आते हैं। वहां जाकर सब बड़े मासूम बन जाते हैं। लेकिन यह सच है की दर्द उन्हें भी होता है जब उन पर पड़ती है। इसी दर्द का अहसास दिलाना ज़रूरी है ताकि वे कुकर्म करने से पहले डरें। और मौत का डर निसंदेह सबसे बड़ा डर है। कसाब भी फांसी से पहले डर के मारे इन्कोहिरेंटली बडबडा रहा था। जब मौत सामने नज़र आती है तब बड़े बड़ों के छक्के छूट जाते हैं। इसलिए इन अपराधियों को मौत का डर दिखना चाहिए।
ReplyDeleteइन्सान बस एक ही डर से डरता है -- मौत का डर ! जब तक अपराधियों को मौत का डर दिखाई नहीं देगा , सड़कों पर इंसानियत यूँ ही बेमौत मरती रहेगी।
ReplyDeleteमौत की सजा ही कारगर है पश्चाताप आदि बेमानी हैं . कोई मानवाधिकार नहीं सीधे * फुल एंड फ़ाइनल *
इन्हें कैसी मौत दी जाय- कि लोगों के सामने एक उदाहरण रहे!
ReplyDeleteसजा मौत की हो या कम भी लेकिन यह तुरंत मिलनी चाहिये. कानूनी पचड़े में पड़कर गुनाहगारों को सजा ना मिलना ही इस तरह की घटनाओं को बढ़ावा देता है.
ReplyDeleteसमस्या का समाधान पढ़ने में आसान लगता है पर जिस कदर अपराधीकरण हर क्षेत्र में फैला हुवा है ... ओर राजनीति में तो सबसे अधिक ... लगता नहीं की आसान होगा इस तंत्र को दुरुस्त करना ... पर करना तो होगा ही .. अभी नहीं तो फिर कब ...
ReplyDeleteओर फांसी तो होनी ही चाहिए फास्ट ट्रेक द्वारा १-२ सालों में ...
लोग डर से ही रुकते हैं .... कानून बने और उनका सख्ती से पालन हो .... जब हमारी संसद में ही ऐसे लोग बैठे हों जो ऐसे कामों के दोषी हों तो कानून कैसे बनेगा और पालन कैसे होगा ... आज युवा शक्ति के आगे सरकार मजबूर हो रही है ... युवाओं का जज़्बा देख कुछ उम्मीद तो बंधती है ...सार्थक लेख
ReplyDeleteआपकी बातों से पूर्णतः सहमत हूँ हम उमा (उत्तराखंड महिला एसोसिएशन ) फांसी की ही डिमांड कर रहे हैं
ReplyDeleteइस मुद्दे पर मेरे अपने विचार इस तरह हैं
(1) आग किसी के घर में लगी हो तो दूसरा यही सोचता है अरे मैं क्यूँ जाऊं बुझाने ,अरे ये आग तो घर घर में लगी है सभी की माँ, बहन ,बेटियाँ हैं , एक जुट होकर इस गंदगी को साफ़ करें |
(2) उम्र कैद में क्या हमें नहीं पता कुछ सालों बाद ये कुत्ते फिर बाहर आयेंगे फिर हड्डियां तलाशेंगे एक बलात्कार की भी वो सजा दस बीस करेंगे तो भी वही सजा ,और जेल में भी अपनी सुविधाएं मिल जुल कर बना लेते हैं तो क्या सजा हुई ,इनको तो उसी तरह टार्चर करके मौत के घात उतरना चाहिए ,सरे आम फांसी दे सरकार|
(3) जब कुत्ता पागल हो जाता है तो क्या उन्हें शूट नहीं किया जाता ? यही हो इन अपराधियों की सजा
(4) शरीर का कोई अंग खराब हो जाए तो उसे काट दिया जाता है, ये भी समाज के संक्रमित अंग हैं |
(5) बदलाव हमे घरों में बच्चों की परवरिश में लाना है पहले हम लड्के लड़कियों को घर में सबके सुबह सुबह चरण स्पर्श सिखाया जाता था ,आज के वक़्त में जो ऐसा करता है उसे पुराने विचारो का कहकर उपहास बनाते हैं ,फिर नारियों का, बड़ों का सम्मान बच्चों के दिलों में कहाँ से आएगा ?
(6) शिक्षण संस्थानों में सेक्स शिक्षा पर अक्सर बाते होती हैं ,अरे पहले सब संस्थानों में नैतिक शिक्षा अनिवार्य करो |
(7) , हमारे समाज में गन्दी सोच पैदा कर रही हैं वो हैं पोर्न फिल्मे उन पर बैन क्यूँ नहीं लगते घर घर में ,साइबर कैफे पर इंटरनेट से बच्चे कौन सी साईट देखते हैं कभी सोचा ?? क्यूँ अपने देश में इन साईट पर बैन नहीं ??
(8) इन घटनाओं को जो अंजाम देते हैं उनमे बेरोजगार ,अनाथ ,गुंडे प्रवार्तियों लोग ज्यादा शामिल हैं उन्हें तो कानून का कोई डर खौफ है ही नहीं, क़ानून, पुलिस ऐसे लोगों पर विशेष पैनी नजर रखे |
(9) स्त्रियों को भी निडर होना पड़ेगा आत्म रक्षा के लिए चाहे कोई अस्त्र ही साथ में लेकर चलना पड़े अगर सरकार नारियों की सुरक्षा नहीं कर सकती तो उन्हें अस्त्र रखने की इजाजत दे जिससे वो एकांत में भी स्वरक्षा कर सके |
(13) क़ानून में बदलाव कर प्रशासन ,निष्पक्ष होकर ऐसे न्रशंस अत्याचारियों ,बलात्कारियों को सरे आम फांसी दे।
राजेश कुमारी
सही विचार व्यक्त किये हैं।
Deleteसोच में बदलाव के साथ कानून में सख्ती लानी होगी।
राजेश कुमारी जी के सभी सुझाव वास्तविक और सार्थक है . इनसे पूर्ण सहमति !
Deleteकोई शख्त कानून हो .और सजा में भी देरी न हो..किसी तरह की कोई रियायत न बरती जाये..तभी ये पापी डरेंगे..सार्थक लेख...
ReplyDeleteराजेश कुमारी जी ने बहुत अच्छे सुझाव दिए है । डा0 दराल जी ने सुझाव पुलिस व्यवस्था को सदृढ करने के लिए दिए वह भी ठीक है । इस तरह के लोग पैदा कहां होते है इन अपराधियों का जीवन, कहां यह पले बडे हुए यदि इस बाबत जानकारी मिले तो पता चलेगा कौन है यह लोग जिन्होने उक लडकी के साथ इतनी दरिन्दगी की उसे मौत के मुंह में पहुचा दिया इस तरह के अपराधियों के लिए मौत की सजा ही होनी चाहिए।
ReplyDeleteसही कहा सर -भय बिन होय न प्रीत
ReplyDeleteइन्सान को जब तक इंसानियत का पता नहीं चलता वो पशुओ से भी बदतर ज़िन्दगी जीता है ।
ReplyDeletehttp://dailymajlis.blogspot.in/2013/01/soulpower.html