वैसे तो थोडा बहुत आलसी हम सब होते हैं । लेकिन भला कोई इतना अलसी भी हो सकता है !
दो दोस्त एक जामुन के पेड़ के नीचे लेटे हुए थे। पेड़ पर पकी हुई जामुनें लगी थी , जो हवा के झोंके के साथ टप टप गिर रही थी । दोनों दोस्त बड़े आलसी थे । इसलिए मूंह खोलकर लेटे हुए थे ताकि कोई जामुन मूंह में गिरे तो खा लें । लेकिन जामुनें थी कि कोई यहाँ गिरे कोई वहां , बस मूंह में ही नहीं गिर रही थी ।
इतने में एक दोस्त बोला --यार तू कैसा दोस्त है । दोस्त वह होता है जो वक्त पर काम आये । इतनी अच्छी अच्छी जामुनें गिर रही हैं । तुझसे इतना नहीं होता कि कुछ जामुन मुझे खिला दे।
दूसरा दोस्त बोला --छोड़ यार । दोस्त वह होता है जो मुसीबत में काम आए । अभी अभी वो कुत्ता मेरे कान में पेशाब कर के चला गया । तुझसे इतना भी नहीं हुआ कि उसे भगा देता ।
अब उन दोस्तों की ये बातें एक सज्जन पुरुष खड़े सुन रहे थे । उन्हें उनके आलस्य पर बड़ा तरस आया । उसने दो जामुन उठाई और दोनों के मूंह में एक एक डाल दी ।
अभी वह चलने ही लगा था कि दोनों एक साथ चिल्लाये --अबे रुक , मूंह से गुठली कौन निकालेगा ?
मित्रो, सुख हो या दुःख , दोस्तों की ज़रुरत हमेशा रहती है ।
लेकिन जो दोस्त मुसीबत के वक्त काम न आये , क्या वह दोस्त कहलाने के लायक है ?
नोट : उपरोक्त लतीफ़ा ओशो रजनीश के सौजन्य से ।