दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय ब्लोगर्स सम्मेलन संपन्न हुआ । हमने तो ब्लोगिंग छोड़ने का मन बना लिया था । लेकिन छोड़ने का मन भी नहीं करता । इसलिए मित्रों से ही कहलवा लिया कि अभी न छोड़ें ।
ब्लोगिंग का नशा भी सिग्रेट जैसा होता है । कितना ही छोड़ने की कोशिश करो लेकिन वह आपको नहीं छोडती । किसी ने कहा है --इट इज इज वेरी ईजी टू स्टॉप स्मोकिंग , एंड आई हैव डन ईट सो मेनी टाइम्स ।
सिग्रेट छोड़ना है इतना आसान
ज़रा मुझे ही देखो ,
मैं कितनी बार कर चुका हूँ ये काम ।
प्रस्तुत है एक रिपोर्ट --आँखों देखी ।
सर्दियों के दिन थे । हम किसी काम से अपने गाँव की ओर जा रहे थे । रोहतक रोड से पहले झंडेवालान के सामने एक स्कूल में लगा बैनर देखा । लिखा था --दिल्ली हंसोड़ दंगल के लिए आज ऑडिशन हो रहा है । हमें भी जाने क्या सूझा कि झट गाड़ी मोड़ दी और पहुँच गए ऑडिशन हॉल में । सोचा गाँव तो एक दो घंटे बाद भी पहुँच जायेंगे , क्यों न लगे हाथ हम भी दो चार जोक्स सुनाते चलें ।
अपना नाम लिखाया और लगे इंतज़ार करने अपनी बारी का ।
ऑडिशन लेने वाले को एक दो बार कहा भी कि हम डॉक्टर हैं और जल्दी में हैं , ज़रा जल्दी बुला लें । लेकिन बारी तो बारी पर ही आती है ।
खैर आखिर नंबर आ ही गया । हमने अपना सबसे बढ़िया जोक सुनाया और सोचा कि अब लगेंगे ठहाके।
लेकिन यह क्या --एक भी बंदा नहीं हंसा । हमें थोडा धक्का सा लगा लेकिन फिर संभलते हुए अपना सबसे बढ़िया से भी बढ़िया दूसरा जोक निकाला और पेश किया ।
लेकिन फिर वही --एक चींटी तक के हंसने की भी आवाज़ नहीं आई । सब हमें ऐसे देख रहे थे जैसे कह रहे हों --जा यार जा --क्यों बोर कर रहा है ।
अब तो अपनी सारी फूंक निकल गई और औकात समझ आ गई तो चुपचाप खिसक लिए वहां से ।
घर आकर आत्मनिरीक्षण किया तो समझ आया कि भैया हँसता कौन । वहां श्रोता तो कोई था ही नहीं । सभी तो ऑडिशन देने वाले थे और अपनी बारी के इन्तज़ार में नर्वस से बैठे थे । कोई नाखून चबा रहा था , कोई हाथ मसल रहा था , किसी का मूंह सूख रहा था । सबको एक ही चिंता थी कि मेरा ऑडिशन ठीक ठाक हो जाए तो बात बने ।
और ऑडिशन लेने वाले को तो हंसने की मनाही थी । ज़ाहिर है , उन्हें तो बाद में स्टूडियो में बैठकर हँसना था।
खैर हमने इसे एक ख़राब ख्वाब समझ कर भूलने की कोशिश की ।
लेकिन कुछ दिन बाद हमारे पास फोन आया ।
कड़कदार आवाज़ --आपने हमारे प्रोग्राम में ऑडिशन दिया था ? हमने डरते डरते कहा --हाँ भाई दिया तो था । कोई गलती हो गई क्या ।
उसने थोडा नर्म पड़ते हुए कहा --नहीं नहीं , सर हमने तो आपको ये बताने के लिए फोन किया है कि आपको फाइनल्स के लिए सलेक्ट कर लिया गया है ।
मैंने कहा --कमाल है , सीधे फाइनल्स में ! अच्छा फाइनल्स का ऑडिशन अलग से होगा ! !
वो बोला --नहीं सर , आप समझे नहीं । आपको ऑडिशन के लिए नहीं , ऑडियंस के लिए सलेक्ट किया गया है ।
मैंने कहा --तो भाई ये कहो न कि फ्री में तालियाँ बजाने के लिए बुला रहे हो ।
खैर हम गए भी , तालियाँ भी बजाई ।
इसके बाद एक छोटा सा इतिहास हमने भी रचा । लेकिन ये कहानी फिर कभी ।
नोट : आप सोच रहे होंगे कि इस संस्मरण का अंतर्राष्ट्रीय ब्लोगर्स सम्मेलन से क्या सम्बन्ध है । जानने के लिए अगला भाग पढना न भूलें ।
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Monday, May 2, 2011
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