लेडी चालक देख के, फौरन संभला जाय,
ना जाने किस मोड़ पे,बिना बात मुड़ जाय।
पर्वत तो यूं बिखर रहे, ज्यों ताश के पत्ते,
पेड़ काटकर बन रहे ,रिजॉर्ट्स बहुमंजिले।
जब पाप बढ़े जगत में, कुदरत करती न्याय,
आजकल तो सावन में, शेर भी घास ख़ाय।
उन्नत शहर की नालियां, बारिश में भर जाय,
क्या करें हर सावन में, बारिश आ ही जाय।