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Tuesday, May 31, 2022

अन्नाडेल हो गया - एक संस्मरण :

 

मेडिकल कॉलेज के थर्ड ईयर में १९७७ में पहली बार दिल्ली से बाहर घूमने जाना हुआ। हम सात लड़कों का समूह निकला शिमला के लिए। युवा दिल और युवा तन मन के साथ जून के महीने में शिमला का मौसम, सब कुछ एक सपने जैसा था। माल रोड़ पर मिल गया टूरिस्ट इन्फॉर्मेशन सेंटर, जहाँ से वहां के सभी टूरिस्ट पॉइंट्स की पूरी जानकारी मिल गई।  शिमला के आस पास के सभी टूरिस्ट पॉइंट्स पर घूम लिए। लेकिन शिमला के अंदर ही एक पॉइंट मिला जो बहुत रोमांटिक लगा। नाम था अन्नाडेल। बुकलेट में लिखा था कि अन्नाडेल एक बहुत ही खूबसूरत जगह है जहाँ हेलीपेड और क्रिकेट ग्राउंड है , साथ ही वहां एक खूबसूरत स्प्रिंग (जलधारा) बहती है, जहाँ बैठकर पिकनिक मनाई जा सकती है। माल रोड़ जहाँ से शुरू होती है, वहीँ से एक रास्ता जाता है अन्नाडेल की ओर जो बहुत ढलान वाला रास्ता था।  लेकिन हम कूदते फांदते पहुँच ही गए। वहां पेड़ों के बीच से वह स्थल दिखाई दिया, धारा भी देख रही रही, लेकिन वहां तक जाने का कोई रास्ता नहीं था। सड़क से करीब १० फुट नीचे उतरना था नदी तक पहुँचने के लिए।  हम भी जोश में टार्ज़न की तरह पेड़ों की शाखाओं से लटककर नीचे कूद गए। हरी हरी घास के बीच एक पतली सी जल धारा बह रही थी, किनारों पर घास में कई युवा जोड़े बैठे थे।  मौसम तो सुहाना था ही।  खैर हमने भी स्नैक्स आदि खाये और कुछ देर बैठकर खुशी ख़ुशी वापस आ गए।  कुल मिलाकर बड़ा मज़ा आया।  


फिर वर्षों बाद १९९२ में बच्चों के साथ दोबारा जाना हुआ।  सब घूम फिर कर हमें अन्नाडेल की याद आ गई तो हमने कहा कि चलो एक बहुत खूबसूरत जगह दिखाते हैं। १५ साल बाद काफी कुछ बदल चुका था, इसलिए हमने किसी से अन्नाडेल का रास्ता पूछा।  रास्ता तो उसने बता दिया लेकिन जब हमने कहा कि क्या वहां एक खूबसूरत स्प्रिंग (जल धारा) अब भी बहती है, तो वो बोला, जी स्प्रिंग का तो पता नहीं पर एक गंदा नाला तो बहता है। यह सुनकर हमें धक्का सा तो लगा लेकिन मन में विश्वास था कि उसे शायद पता नहीं होगा। इसलिए चल दिए अन्नाडेल की ओर।  वहां जाकर जो निराशा हुई वह बयान नहीं की जा सकती।  वहां वास्तव में अब कुछ नहीं था, सब पेड़ कट चुके थे, स्प्रिंग की जगह एक गंदा नाला बह रहा था और घास का नामो निशान नहीं था। न कोई इंसान दिखा न इंसान की जात।  हार कर हम वापस मुड़ लिए।  लेकिन साथ ही स्टेडियम में क्रिकेट मैच चल रहा था, बच्चों को सांत्वना देने के लिए बस कुछ देर स्टेडियम में बैठकर मैच देखा और वापस आ गए।  

ऐसी परिस्थिति में पुराने ज़माने में इंग्लिश में कुछ कहते थे।  लेकिन अब जब भी कभी ऐसी कोई बात होती है तो हम कहते हैं - ये तो अन्नाडेल हो गया।                  


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