एक ज़माना था जब घर में मनोरंजन के साधन के रूप में या तो एक छोटा सा ट्रांजिस्टर होता था या एक ब्लैक एंड वाइट टी वी, जिस पर सप्ताह में एक दिन आधे घंटे का चित्रहार और सप्ताहंत में एक हिंदी फिल्म दिखाने के अलावा कृषि दर्शन जैसे कुछ कार्यक्रम ही प्रसारित किये जाते थे। फिर देश में एशिया ८२ गेम्स का आयोजन हुआ और रंगीन टी वी का आगमन हुआ। अब मनोरंजन रामायण और महाभारत जैसे कार्यक्रमों से होता हुआ हम लोग और बुनियाद जैसे मेगा सीरियल्स में तब्दील हो गया। फिर केबल टी वी, डिश टी वी और अंतत: ओ टी टी के उपलब्ध होने से मनोरंजन हमारी पकड़ में पूरी तरह से आ गया। साथ ही स्मार्ट मोबाइल के आने से तो दुनिया ने दुनिया को सचमुच अपने मुट्ठी में ही कर लिया।
इस बीच इंसान देखिये कैसे कैसे दौर से गुजरा। ९० के दशक में टी वी मनोरंजन का सबसे बड़ा घरेलु साधन बन गया था। अनेक चैनलों पर २४ घंटे न्यूज ही नहीं बल्कि तरह तरह के सीरियल्स ने भारतीय घरों को एकजुट कर दिया था। वर्षों चलने वाले सीरियल्स को देख देख कर बच्चे युवा हो गए, युवा बुजुर्ग हो गए और बुजुर्ग अमर हो गए। हाल ये होता था कि यदि टी वी खराब हो जाये तो ज़िंदगी वीरान सी लगने लगती थी। ठीक करने पर ऐसा लगता था जैसे ज़िंदगी में फिर से बहार आ गई हो।
नए मिलेनियम में पहले मोबाइल, फिर दूसरा दशक आते आते सबके हाथों में स्मार्ट फोन आ गया। इसके बाद तो जैसे टी वी की छुट्टी ही हो गई। अब बुजुर्गों को छोड़कर शायद ही कोई युवा टी वी देखता हो। देखें भी क्यों, जब सब कुछ फोन पर ही देखा सुना जा सकता है। धीरे धीरे फोन के फीचर्स एक से बढ़कर एक आधुनिक और सुविधाजनक होते गए और अब ये आलम है कि शायद ही कोई उपकरण हो जिसकी स्मार्ट फोन ने छुट्टी न कर दी हो। लेकिन यह भी सच है कि आज हम स्मार्ट फोन पर इतने निर्भर हो गए हैं कि एक पल की जुदाई भी सहन करना मुश्किल हो गया है। यदि फोन खराब हो जाये या चार्ज खत्म हो जाये और चार्जर न मिले तो कुछ ही घंटों की जुदाई से जैसे विश्व से नाता ही टूट जाता है। वाट्सएप्प और फेसबुक के बिना मन उदास हो जाता है जैसे ज़िंदगी में कुछ छूट गया हो। आज सचमुच इंसान स्मार्ट फोन का गुलाम बन गया है।
पहले टी वी और फिर मोबाइल फोन, दोनों ने इंसान को अपने मुट्ठी में कर लिया है। लेकिन दोनों में एक समानता है। दोनों को चलते रहने के लिए बिजली चाहिए। यदि बिजली गुल हो जाये और एक दो दिन तक वापस ही न आये तो न टी वी चल पाता है, न मोबाइल चार्ज हो सकता है। इन्वर्टर भी ६ -८ घंटे से ज्यादा नहीं चलता। बस समझिये कि आपकी ज़िंदगी हो गई ठप्प।
अब ज़रा कल्पना कीजिये कि आप बहुमंज़िला इमारत में रहते हैं, दो दिन से बिजली नहीं है। कोई बैकअप भी नहीं है। अब आपके पास न तो पानी आ रहा है, पानी हुआ भी तो पीने लायक नहीं होगा क्योंकि आर ओ काम नहीं करेगा। फोन भी काम नहीं कर रहा, इसलिए न किसी से बात कर सकते हैं और न ही बाहर से सामान मंगा सकते हैं। लिफ्ट भी काम नहीं कर रही, इसलिए २० - ३० फ्लोर से नीचे आना और फिर सामान लेकर सीढियाँ चढ़ना एवरेस्ट पर चढ़ने जैसा लगेगा। और सबसे बड़ी मुसीबत, अब दिन भर ऑफिस का काम भी नहीं कर सकते, क्योंकि कंप्यूटर भी तो बिजली से ही चलता है। जिंदगी में सब कुछ होते हुए भी लगेगा जैसे कुछ भी नहीं है।
ऐसे में आप सोचने पर मज़बूर हो जायेंगे कि जब बिजली का अविष्कार ही नहीं हुआ था, तब लोग कैसे जिंदा रहते थे। निश्चित ही लोग न केवल जिंदा रहते थे, बल्कि बड़े बड़े साम्राज्य होते थे, महाराजाओं के ठाठ बाठ भी होते थे। आम आदमी भी जीवन निर्वाह कर ही लेते थे। बस तब इंसान बिजली का गुलाम नहीं था। अपनी शारीरिक और मानसिक शक्ति के दम पर सब काम करते थे। बस यही ताकत अब कहीं ग़ुम होती जा रही है। आज हम वास्तव में तकनीक और आधुनिक सुविधाओं के गुलाम से हो गए हैं। लेकिन ज़रा सोचिये कि सभी प्राकृतिक संसाधन सीमित हैं। जिस दिन ये खत्म हो गए या इनकी उपलब्धता कम हो गई, उस दिन कैसा हाहाकार मच जायेगा। इसलिए प्राकृतिक संसाधनों जैसे जल, वायु , तेल , कोयला , वन और पर्वतों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि ये हैं तो हमें बिजली मिलती रहेगी और सब ऐशो आराम चलता रहेगा, ये नहीं तो कुछ नहीं बचेगा।
संदेशात्मक पोस्ट ।।प्राकृतिक संसाधनों को बचाना आवश्यक है ।।
ReplyDeleteजी धन्यवाद।
Deleteआज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ डा. दराल साहेब, आपका परिचय बड़ा विरोधाभासी है...एक तो डॉक्टर और फिर वो भी हंसोड़ ...वाह
ReplyDeleteजी बेशक, बहुयामी कह सकते हैं। पधारने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया। हम तो अब बस कभी कभी कभार ही ब्लॉग पर आते हैं।
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