जलते हए रावण ने
जलाते हुए बन्दों से कहा ,
अरे आधुनिक भक्तो
हर साल मुझे जिलाते हो ,
फिर जिन्दा ही जलाते हो !
ऐसी क्या थी मेरी खता
जो इतने मुझसे हो खफा !
अधूरा सा ही तो था गुनाह
फिर क्यों करते हो मेरा दाह !
देखो अपने आस पास
कितने क़ुरावण रहते हैं !
हरण होती हैं रोज सीतायें
जिनके निशाँ तक मिट जाते हैं !
जाओ पहले किसी ऐसे एक
असुर को सज़ा दिलाकर दिखाओ !
तब ऐ कलयुगी भक्तों तुम मुझे जलाओ !
# एक विचार #
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (22-10-2018) को "किसे अच्छी नहीं लगती" (चर्चा अंक-3132) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
बेहतरीन रचना
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ReplyDeleteबेहतरीन और प्रासंगिक।
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