सावन के उमस भरे महीने में कंधे पर गंगा जल से भरे लोटे का भार उठाये हुए, पैरों में पड़े छालों की परवाह किये बिना, नंगे पांव २५० किलोमीटर पैदल चलते हुए, अपनी मंज़िल तक पहुंचना, सचमुच दिल की गहराइयों में बसी शिव भक्ति और श्रद्धा भावना का प्रतीक है। यह देखकर कांवड़ियों के प्रति प्रेम और सहानुभूति की मिली जुली भावना मन में आना स्वाभाविक है। कुछ युवक तो साल दर साल इस यात्रा में सम्मिलित होकर गर्वान्वित मह्सूस करते हैं। यह और बात है कि इस बेहद कष्टदायक प्रक्रिया को पूर्ण करने से व्यक्ति विशेष को सिवाय मन की आंतरिक प्रसन्नता के कुछ और हासिल नहीं होता।
लेकिन शिव भक्ति की आड़ में कुछ असामाजिक तत्त्व समाज और कानून की धज्जियाँ उड़ाते हुए अपनी मनमानी करते नज़र आते हैं। यह समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। ज़रा सोचिये,
* ट्रकों पर हज़ारों वाट का म्यूजिक सिस्टम लगाकर, शराब पीकर, रास्ते में भांगड़ा करते १२ साल से लेकर २०-२२ साल तक की आयु के युवा क्या कहलायेंगे !
* या फिर एक बाइक या स्कूटर पर गेरुआ टी शर्ट और कच्छा पहनकर, हाथों में बेसबॉल बैट पकड़े, बिना हेलमेट के तीन तीन युवा बैठकर सडकों के बीचों
बीच सीधी उलटी दिशा में बेधड़क ड्राईव करते हुए क्या शिव भक्त कहलायेंगे !
* कानून भी ऐसे में धार्मिक आस्था के नाम पर मनमानी करने के लिए खुली छूट दे देता है।
* इसी कारण इन दिनों में दिल्ली की सडकों पर कोई भी गेरुए वस्त्र पहनकर बाइक पर बिना हेलमेट मस्ती करता हुआ घूम सकता है क्योंकि उसे विश्वास होता
है कि कोई ट्रैफिक पुलिस वाला उसका चालान नहीं काट पायेगा।
* देखा जाये तो यह धार्मिक सहिष्णुता का दुरूपयोग है जिसका दुष्परिणाम आम जनता को भुगतना पड़ता है।
कुछ लोग इसे विभिन्न धर्मों से जोड़कर दलील देते हैं कि जब अन्य धर्मों के लोग धर्म का दुरूपयोग करते हैं, तब कोई शोर नहीं मचता। धर्म चाहे कोई भी हो , कोई भी धर्म अनुयायियों को गलत रास्ते पर चलने का निर्देश नहीं देता, न ही बाध्य करता है। एक दूसरे को देखकर गलतियाँ करते रहना धर्म का ही विनाश है। धर्म हमारा सही रास्ते पर चलने का मार्गदर्शन करता है। इसलिए धर्म और धार्मिक आस्था की आड़ में अमानवीय व्यवहार सहन नहीं किया जाना चाहिए और इसे रोकने के लिए प्रशासन को ठोस और कठोर कदम उठाने चाहिए।
बिल्कुल सही कहा सर आपने.... हमारे यहाँ शिवाजी जयंती, आंबेडकर जयंती पर भी ऐसी ही रैलियाँ निकलती हैं। बाइक पर तीन तीन सवार, फर्राटे से बिना हेलमेट सड़क से गुजरते हैं और पूरे अधिकार से ट्रेफिक जाम कर देते हैं। किसकी मजाल जो इनके रास्ते में आ जाए....
ReplyDeleteधर्म चाहे कोई भी हो , कोई भी धर्म अनुयायियों को गलत रास्ते पर चलने का निर्देश नहीं देता, न ही बाध्य करता है। एक दूसरे को देखकर गलतियाँ करते रहना धर्म का ही विनाश है। धर्म हमारा सही रास्ते पर चलने का मार्गदर्शन करता है। इसलिए धर्म और धार्मिक आस्था की आड़ में अमानवीय व्यवहार सहन नहीं किया जाना चाहिए और इसे रोकने के लिए प्रशासन को ठोस और कठोर कदम उठाने चाहिए।
ReplyDelete...एकदम सटीक बात कही आपने
धर्म के नाम पर ऐसे बेहूदा कृत्य करने के छूट बिलकुल नहीं देनी चाहिए
धर्म के नाम पर ऐसे बेहूदा कृत्य
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (11-08-2018) को "धार्मिक आस्था के नाम पर अराजकता" (चर्चा अंक-3060) (चर्चा अंक-2968) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन नौ दशक पूर्व का काकोरी काण्ड और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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