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Saturday, October 1, 2016

विश्व बुजुर्ग दिवस पर एक पेशकश ---


यह आधुनिक और विकसित जीवन की ही देन है जो बच्चे स्कूल की शिक्षा ख़त्म होते ही घर छोड़ने पर मज़बूर हो जाते हैं , और फिर कभी घर नहीं लौट पाते।
अक्सर सुशिक्षित समाज में मात पिता बुढ़ापे में अकेले ही रह जाते हैं। आज विश्व बुजुर्ग दिवस पर एक रचना , पिता का पत्र पुत्र के नाम :


जीवन के चमन मुर्झा जायें , और हर अंग शिथिल पड़ जायें ।
तुम मुझे सँभालने काम छोड़कर ,  कहीं रहो, पर आ जाना ----

दुनिया का दस्तूर है ये , आखिर घर छोड़ा जाता है ,
पर बिना बच्चों के भी ,  आँगन सूना हो जाता है ।
तुम घर का अहसास दिलाने , इक दिन सूरत दिखला जाना ----

मात पिता का सारा जीवन , पालन में निकल जाता है ,
सपने पूरे होने तक यौवन , हाथों से फिसल जाता है ।
तुम यौवन का संचार कराने , शक्ति बन कर आ जाना -------

जाने कितने व्रत रखे थे  , जाने कितनी मन्नत मांगी थी ,
तेरी खातिर तेरी माता भी , जाने कितनी रातें जागी थी ।
जीवन के अंतिम क्षण पर , तुम अपना फ़र्ज़ निभा जाना ------

जीवन के चमन मुर्झा जायें , और अंग शिथिल पड़ जायें ।
तुम मुझे सँभालने काम छोड़कर ,  कहीं रहो घर आ जाना ----


( जब आँचल रात का लहराये -- इस ग़ज़ल / गीत पर आधारित )

5 comments:

  1. पिता का पुत्र के नाम एक मार्मिक पत्र .

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  2. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-10-2016) के चर्चा मंच "कुछ बातें आज के हालात पर" (चर्चा अंक-2483) पर भी होगी!
    महात्मा गान्धी और पं. लालबहादुर शास्त्री की जयन्ती की बधायी।
    साथ ही शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. सार्थक रचना

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  4. मार्मिक .... पिता के शंड पुत्र के दिल को हिला सकें तो क्या बात है ...
    बहुत खूब लिखा है ...

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  5. बहुत ही उम्दा ..... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति .... Thanks for sharing this!! :) :)

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