दिल्ली से महज़ २४० किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा सा लेकिन अत्यंत खूबसूरत हिल स्टेशन है , लैंसडौन । दिल्ली से मोदीनगर होकर और मेरठ बाई पास से होते हुए करीब दो घंटे में आप पहुँच जाते हैं खतौली। जहाँ से दायीं ओर बिजनौर के लिए सड़क मुड़ जाती है।
यदि आप सुबह जल्दी निकले हैं तो नाश्ते के लिए खतौली में चीतल रेस्ट्रां बहुत लोकप्रिय रहा है। पहले यह पुराने हाइवे पर पड़ता था जो नया बाई पास बनने से बेकार हो गया था। इसलिए अब उसे बंद कर मालिकों ने बाई पास और पुरानी खतौली सड़क के जंक्शन पर बहुत ही स्ट्रेटेजिक लोकेशन पर नया रेस्ट्रां खोल लिया है। इसकी लोकेशन बहुत उपयोगी है। लेकिन इस बार यहाँ खाना खाने में कोई आनंद नहीं आया। परांठे और चाय दोनों बेकार लगे। यदि जल्दी ही प्रबंधन ने इस और ध्यान नहीं दिया तो उनको आर्थिक हानि होने से कोई नहीं बचा पायेगा।
खतौली से मीरानपुर की सड़क गांवों और खेतों के बीच से होती हुई मीरानपुर में नेशनल हाइवे ११९ से जा मिलती है। यह ड्राईव काफी सुहानी और आरामदायक रही। आगे बिजनौर बाई पास से होकर बिजनौर नज़ीबाबाद सड़क भी बहुत अच्छी है। नज़ीबाबाद से होकर आप पहुँच जायेंगे कोटद्वार जहाँ से एक नदी के साथ साथ आप पहाड़ी सफर शुरू करते हैं। सीधे होने से यह सड़क भी बहुत बढ़िया रही। रास्ते में नदी किनारे एक खोखे वाले की चाय वास्तव में बड़ी स्वादिष्ट थी।
कोटद्वार से आगे एक जगह आती है दुगड्डा। यहाँ से कई रास्ते अलग अलग दिशा में जाते हैं , जिनमे से एक लैंसडौन की ओर जाता है। थोड़ा आगे जाने पर पाइन ( चीड़ ) के पेड़ों के बीच से जाती सड़क बहुत मनमोहक लगती है।
दिल्ली से २३५ किलोमीटर की दूरी पर लैंसडौन की सीखा आरम्भ होते ही, टॉल टैक्स जमा करते ही आ गया ब्लू पाइन रिजॉर्ट जहाँ हमारा ठहरने का इंतज़ाम था। पहाड़ी की स्लोप पर बना यह रिजॉर्ट काफी आरामदायक लगा। लेकिन यहाँ ठहरने के लिए आपको फिजिकली फिट होना पड़ेगा क्योंकि यह सारा रिजॉर्ट ढलान पर बना है जिससे कमरों तक जाने के लिए अनेकों सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। लेकिन सामने वैल्ली व्यू दिल को खुश कर देता है।
रिजॉर्ट के पीछे की पहाड़ी पर चढ़कर आपको नज़र आता है दूर बर्फ से ढके पहाड़ों का दृश्य। हालाँकि मौसम साफ न होने से बर्फ से ढके पहाड़ तो दिखाई नहीं दिए , लेकिन वहां की हरियाली देखकर मन गदगद हो गया।
पहाड़ों में जाएँ और ट्रेकिंग न करें , यह हमसे हो ही नहीं सकता। रिजॉर्ट से लैंसडौन सड़क द्वारा करीब ३ - ४ किलोमीटर दूर पड़ता है। लेकिन रिजॉर्ट के पीछे एक ट्रेकिंग रुट बना है जो घने जंगल से होता हुआ सीधे सड़क से जा मिलता है जहाँ से शहर बस १ किलोमीटर ही रह जाता है। यह रास्ता मुश्किल से आधा किलोमीटर लम्बा है, लेकिन पहली बार जाने वाले को सुनसान और डरावना लगता है। रिसेप्शन पर किसी ने बताया कि अँधेरे में वापस मत आना , जंगली जानवर हो सकते हैं। हमें नहीं लगा कि वहां जानवर होंगे लेकिन निश्चित ही अँधेरे में ट्रेकिंग करना कोई बुद्धिमानी भी नहीं होती। इसलिए वापसी में हम सड़क द्वारा ही ४ किलोमीटर पैदल चलकर रिजॉर्ट पहुंचे , हालाँकि अँधेरे भी हो गया था।
अगला दिन घूमने का था। यहाँ घूमने के लिए दो ही विशेष स्थान हैं। एक यह झील जो शहर के लगभग बीचों बीच ही बनी है। चारों और पाइन के पेड़ों के बीच यह झील ३० फुट गहरी है जहाँ बोटिंग करने के लिए आपको लाइफ जैकेट पहननी पड़ेगी।
इस शांत झील की तरह ही लैंसडौन भी एक बहुत शांत जगह है जहाँ गढ़वाल रायफल्स का हेड क्वार्टर है। आर्मी के अलावा यहाँ न तो कोई विशेष स्थानीय निवासी हैं , न मार्किट या अन्य सुविधाएँ। शहर में भी गिने चुने ही होटल्स हैं और बाकि हिल स्टेशंस की तरह कोई विशेष गतिविधि नज़र नहीं आई। लेकिन आर्मी शॉप्स पर कुछ बहुत सुन्दर और सस्ते गिफ्ट ज़रूर मिल जायेंगे।
यहाँ दूसरा स्पॉट है टिप एंड टॉप जहाँ से आपको चारों ओर का शानदार दृश्य नज़र आएगा। यहाँ एक के बाद एक कई व्यूइंग गैलरीज बनी हैं जहाँ फोटो खींचने और खिंचवाने का अपना ही मज़ा है।
घने जंगल के बीच फूलों से लदे कई पेड़ तो मन को मोह ही लेते हैं। मौसम साफ हो तो दूर बर्फ से ढकी चोटियां भी नज़र आएँगी।
यहीं पर गढ़वाल मंडल विकास निगम का रेस्ट हाउस भी बना है जिसमे अनेक बैम्बू कॉटेज बनी हैं। लेकिन ठहरने के लिए यह जगह एक दम बकवास लगी। न यहाँ खाने का उचित प्रबंध है न हीं स्टाफ मित्रतापूर्ण लगा। कमरों का किराया भी बिना बात बहुत ज्यादा है। कुल मिलाकर यहाँ ठहरने के लिए किसी दुश्मन को ही सलाह दी जा सकती है।
ब्लू पाइन रिजॉर्ट से भी पहाड़ों का दृश्य कोई कम रमणीक नहीं हैं।
वापसी में भले ही ग्रैंड चीतल पर खाना न खाया हो , लेकिन वाशरूम जाने के लिए यह जगह सर्वोत्तम है।
दिल्ली से वीकएंड पर बाहर जाने के लिए लैंसडौन एक बहुत ही अच्छी जगह लगी। साफ़ रास्ता , साफ सुथरी प्रदुषण रहित जगह और शांत वातावरण आपके महीनों के तनाव को कम करने के लिए एक उपयुक्त जगह है लैंसडौन ।
यदि आप सुबह जल्दी निकले हैं तो नाश्ते के लिए खतौली में चीतल रेस्ट्रां बहुत लोकप्रिय रहा है। पहले यह पुराने हाइवे पर पड़ता था जो नया बाई पास बनने से बेकार हो गया था। इसलिए अब उसे बंद कर मालिकों ने बाई पास और पुरानी खतौली सड़क के जंक्शन पर बहुत ही स्ट्रेटेजिक लोकेशन पर नया रेस्ट्रां खोल लिया है। इसकी लोकेशन बहुत उपयोगी है। लेकिन इस बार यहाँ खाना खाने में कोई आनंद नहीं आया। परांठे और चाय दोनों बेकार लगे। यदि जल्दी ही प्रबंधन ने इस और ध्यान नहीं दिया तो उनको आर्थिक हानि होने से कोई नहीं बचा पायेगा।
खतौली से मीरानपुर की सड़क गांवों और खेतों के बीच से होती हुई मीरानपुर में नेशनल हाइवे ११९ से जा मिलती है। यह ड्राईव काफी सुहानी और आरामदायक रही। आगे बिजनौर बाई पास से होकर बिजनौर नज़ीबाबाद सड़क भी बहुत अच्छी है। नज़ीबाबाद से होकर आप पहुँच जायेंगे कोटद्वार जहाँ से एक नदी के साथ साथ आप पहाड़ी सफर शुरू करते हैं। सीधे होने से यह सड़क भी बहुत बढ़िया रही। रास्ते में नदी किनारे एक खोखे वाले की चाय वास्तव में बड़ी स्वादिष्ट थी।
कोटद्वार से आगे एक जगह आती है दुगड्डा। यहाँ से कई रास्ते अलग अलग दिशा में जाते हैं , जिनमे से एक लैंसडौन की ओर जाता है। थोड़ा आगे जाने पर पाइन ( चीड़ ) के पेड़ों के बीच से जाती सड़क बहुत मनमोहक लगती है।
दिल्ली से २३५ किलोमीटर की दूरी पर लैंसडौन की सीखा आरम्भ होते ही, टॉल टैक्स जमा करते ही आ गया ब्लू पाइन रिजॉर्ट जहाँ हमारा ठहरने का इंतज़ाम था। पहाड़ी की स्लोप पर बना यह रिजॉर्ट काफी आरामदायक लगा। लेकिन यहाँ ठहरने के लिए आपको फिजिकली फिट होना पड़ेगा क्योंकि यह सारा रिजॉर्ट ढलान पर बना है जिससे कमरों तक जाने के लिए अनेकों सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। लेकिन सामने वैल्ली व्यू दिल को खुश कर देता है।
रिजॉर्ट के पीछे की पहाड़ी पर चढ़कर आपको नज़र आता है दूर बर्फ से ढके पहाड़ों का दृश्य। हालाँकि मौसम साफ न होने से बर्फ से ढके पहाड़ तो दिखाई नहीं दिए , लेकिन वहां की हरियाली देखकर मन गदगद हो गया।
पहाड़ों में जाएँ और ट्रेकिंग न करें , यह हमसे हो ही नहीं सकता। रिजॉर्ट से लैंसडौन सड़क द्वारा करीब ३ - ४ किलोमीटर दूर पड़ता है। लेकिन रिजॉर्ट के पीछे एक ट्रेकिंग रुट बना है जो घने जंगल से होता हुआ सीधे सड़क से जा मिलता है जहाँ से शहर बस १ किलोमीटर ही रह जाता है। यह रास्ता मुश्किल से आधा किलोमीटर लम्बा है, लेकिन पहली बार जाने वाले को सुनसान और डरावना लगता है। रिसेप्शन पर किसी ने बताया कि अँधेरे में वापस मत आना , जंगली जानवर हो सकते हैं। हमें नहीं लगा कि वहां जानवर होंगे लेकिन निश्चित ही अँधेरे में ट्रेकिंग करना कोई बुद्धिमानी भी नहीं होती। इसलिए वापसी में हम सड़क द्वारा ही ४ किलोमीटर पैदल चलकर रिजॉर्ट पहुंचे , हालाँकि अँधेरे भी हो गया था।
अगला दिन घूमने का था। यहाँ घूमने के लिए दो ही विशेष स्थान हैं। एक यह झील जो शहर के लगभग बीचों बीच ही बनी है। चारों और पाइन के पेड़ों के बीच यह झील ३० फुट गहरी है जहाँ बोटिंग करने के लिए आपको लाइफ जैकेट पहननी पड़ेगी।
इस शांत झील की तरह ही लैंसडौन भी एक बहुत शांत जगह है जहाँ गढ़वाल रायफल्स का हेड क्वार्टर है। आर्मी के अलावा यहाँ न तो कोई विशेष स्थानीय निवासी हैं , न मार्किट या अन्य सुविधाएँ। शहर में भी गिने चुने ही होटल्स हैं और बाकि हिल स्टेशंस की तरह कोई विशेष गतिविधि नज़र नहीं आई। लेकिन आर्मी शॉप्स पर कुछ बहुत सुन्दर और सस्ते गिफ्ट ज़रूर मिल जायेंगे।
यहाँ दूसरा स्पॉट है टिप एंड टॉप जहाँ से आपको चारों ओर का शानदार दृश्य नज़र आएगा। यहाँ एक के बाद एक कई व्यूइंग गैलरीज बनी हैं जहाँ फोटो खींचने और खिंचवाने का अपना ही मज़ा है।
घने जंगल के बीच फूलों से लदे कई पेड़ तो मन को मोह ही लेते हैं। मौसम साफ हो तो दूर बर्फ से ढकी चोटियां भी नज़र आएँगी।
यहीं पर गढ़वाल मंडल विकास निगम का रेस्ट हाउस भी बना है जिसमे अनेक बैम्बू कॉटेज बनी हैं। लेकिन ठहरने के लिए यह जगह एक दम बकवास लगी। न यहाँ खाने का उचित प्रबंध है न हीं स्टाफ मित्रतापूर्ण लगा। कमरों का किराया भी बिना बात बहुत ज्यादा है। कुल मिलाकर यहाँ ठहरने के लिए किसी दुश्मन को ही सलाह दी जा सकती है।
ब्लू पाइन रिजॉर्ट से भी पहाड़ों का दृश्य कोई कम रमणीक नहीं हैं।
वापसी में भले ही ग्रैंड चीतल पर खाना न खाया हो , लेकिन वाशरूम जाने के लिए यह जगह सर्वोत्तम है।
दिल्ली से वीकएंड पर बाहर जाने के लिए लैंसडौन एक बहुत ही अच्छी जगह लगी। साफ़ रास्ता , साफ सुथरी प्रदुषण रहित जगह और शांत वातावरण आपके महीनों के तनाव को कम करने के लिए एक उपयुक्त जगह है लैंसडौन ।
जगह तो बढ़िया लग रही है. वैसे कहीं भी घूमने जाओ तो खाना पीना खोमचे वालों का ही बढ़िया होता है. रेस्तरां तो बेकार.
ReplyDeleteशिखा जी , इनका स्टेंडर्ड तो अभी डाउन हुआ है । बाहर खाने में हाइजीन का ख्याल रखना बहुत ज़रूरी रहता है। इसलिए हम तो चाय के सिवाय और कुछ नहीं लेते।
ReplyDeleteचीतल ग्रांड में तो कई बार गई हूँ पर ये नई लोकेशन नहीं देखी.लेंस डाउन के बारे में सुना जरुर है पर कभी जाना नहीं हुआ. पर अब तो जाना बनाता है
ReplyDeleteआभार
स्वागत है रचना जी। बहुत दिनों बाद नज़र आई आप !
Deleteपुराना वाला चीतल बढिया था, हरिद्वार आते-जाते हमेशा वहीं नाश्ता या डिनर होता था। ग्रैंड चीतल पर पहला ही अनुभव खराब रहा।
ReplyDeleteलैंसडाऊन के लिये एक बार निकले थे, लेकिन दुर्घटना होने पर कार को ऋषिकेश छोडना पडा और हम पहुंच गये "खिर्सू"
प्रणाम
ये क्वालिटी पर कोम्प्रोमाईज़ कर रहे हैं !
Deletefoto sahit badhiya janakari di hai ...
ReplyDelete...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें. ,बहुत शानदार
ReplyDeleteफोटो देख कर तो लग रहा है बहुत सुन्दर शायद है ये ... लगता है जाना हो होगा अब ..
ReplyDeleteज़रूर हो कर आइये , बहुत अच्छी जगह है ।
Deleteवाह डाक्टर साहब बहुत अच्छी जगह तलासी, मौका मिला तो जाएंगे और आपको याद करेंगे ॥ शुक्रिया
ReplyDeleteताऊजी भतीजों को लेकर भी चला करें कभी - कभी....आपके साथ घूमना हो जाएगा....हीहीहीही खर्चा भी गाड़ी का बच जाएगा...
ReplyDeleteखर्चा बचेगा भतीजों का....ताऊ के साथ होते हुए भतीजें खर्च करने की जुर्रत करें...इतने संस्कारहीन थोड़े न हैं भतीजे..हीहीहीही
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