किसी भी देश के विकास का एक अच्छा सूचकांक वहां की महिलाओं और बच्चों का स्वास्थ्य होता है ! हमारा भारत देश एक विकासशील देश है ! ज़ाहिर है , अभी यहाँ विकसित देशों की तरह नागरिकों को सभी सुख सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं ! निश्चित ही इसका प्रभाव महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य पर अवश्य पड़ता है ! लेकिन हमारे देश मे महिलाएं दो वर्ग मे बंटी हैं , एक जो आर्थिक रूप से उच्च आय वर्ग की हैं और दूसरी जो निम्न और निम्न मध्य आय वर्ग मे आती हैं ! आर्थिक रूप से संपन्न महिलाओं को स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याओं से चिंतित होने की आवश्यकता नहीं रहती क्योंकि अब हमारे देश मे भी सर्वोत्तम स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हैं ! वे अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक भी होती हैं और स्वतंत्र भी ! लेकिन निम्न और मध्य निम्न वर्ग मे अभी भी महिलाएं स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रहती हैं जिसका परिणाम उन्हे विभिन्न प्रकार से अस्वस्थ रहकर भुगतना पड़ता है !
सतही तौर पर देखें तो लगता है कि अपने स्वास्थ्य की अनदेखी के लिये महिलाएं स्वयम् ही जिम्मेदार हैं ! लेकिन ध्यान से देखने पर पता चलता है कि महिलाओं के खराब स्वास्थ्य के लिये हमारे समाज मे फैली कुरीतियाँ , गलत धारणाएं , अवमाननाएं और कुंठित सोच ज्यादा जिम्मेदार हैं ! एक महिला के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य प्रजनन माना जाता है , लेकिन अक्सर यही उसके खराब स्वास्थय का कारण भी बनता है ! आज भी एक लाख गर्भवती महिलाओं मे से हर वर्ष करीब ३६० महिलाएं गर्भ के कारण अकाल मौत के मूँह मे चली जाती हैं ! आधे से ज्यादा गर्भवती महिलाओं को रक्त की कमी पाई जाती है ! 21वीं सदी मे भी हमारे देश मे आधे से ज्यादा प्रसव अशिक्षित दाइयों द्वारा कराये जाते हैं ! निम्न वर्ग मे कुपोषण , संक्रमण , और उचित मात्रा मे भोजन न मिल पाने के कारण गर्भवती महिलाओं का स्वास्थ्य निम्न स्तर का ही रह जाता है ! उचित स्वास्थ्य सेवाएं न मिल पाने के कारण न सिर्फ गर्भवती माँ , बल्कि अजन्मे बच्चे के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है !
इसके अतिरिक्त महिलाओं के स्वास्थ्य पर परिवार की सोच का भी बहुत प्रभाव पड़ता है ! अक्सर घर मे बड़े बूढ़े विशेषकर सास का हुक्म पत्थर की लकीर होता है ! एकल परिवारों मे भी पुरुष प्रधान समाज की छाप साफ नज़र आती है ! एक गृहणी अपनी मर्ज़ी से न जी पाती है , न अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रह सकती है ! यहाँ तक कि डॉक्टर के पास जाने के लिये भी उसे अपनी सास या पतिदेव की अनुमति चाहिये होती है ! उसे कब और कितने बच्चे पैदा करने हैं , अक्सर इसका निर्णय भी स्वयम् उसका नहीं होता ! कई बार देखा गया है कि डॉक्टर की सलाह के बावज़ूद गर्भवती महिला प्रसव के अंत समय तक अस्पताल नहीं जाती और घर बैठी रहती है क्योंकि घरवालों ने इज़ाज़त नहीं दी ! अक्सर इस लापरवाही के परिणाम भयंकर हो सकते हैं जिसमे माँ और बच्चे दोनो को ख़तरा हो सकता है ! लेकिन यहाँ डॉक्टर से ज्यादा सास की सोच , समझ और हुक्म ज्यादा अहम साबित होता है जिसकी हानि महिला को उठानी पड़ती है !
जब तक हमारा समाज शिक्षित नहीं होगा , जब तक हमारे अंध विश्वास , गलत धारणाएं और पुरानी कुतर्कीय मान्यताएं समाप्त नहीं होंगी , तब तक हमारे देश की महिलाएं पीड़ित होती रहेंगी और स्वास्थ्य के क्षेत्र मे महिलाओं का दर्ज़ा निम्न स्तर पर बना रहेगा ! जब तक हमारी युवा माएं सुरक्षित नहीं होंगी , हमारा ये विकासशील देश , विकासशील ही बना रहेगा , कभी पूर्णतया विकसित देश नहीं कहलायेगा !
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (16-03-2015) को "जाड़ा कब तक है..." (चर्चा अंक - 1919) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
यहाँ तक कि डॉक्टर के पास जाने के लिये भी उसे अपनी सास या पतिदेव की अनुमति चाहिये होती है !
ReplyDelete@ ये बात कभी गांवों में लागू होती थी पर आज सत्य नहीं है| मैं जिस समाज से आता हूँ आजभी वहां परम्पराएँ निभाती जाती है इसके बावजूद इस मामले में परिस्थितियां बदली है, आज बुजुर्ग घर आई नव वधुओं को बेटी के समान समझते है और प्रजनन से पूर्व उन्हें खुद समय समय पर डाक्टर के पास जाने की सलाह देते है इस मामले में अनुमति की कोई जरुरत नहीं|
इससे पहले भी पहले प्रजनन के समय मायके में भेजने का रिवाज था जो आज भी ठीक उसी तरह चल रहा है | यह रिवाज भी इसीलिए था ताकि नववधू को कोई दिक्कत नहीं हो. बुजुर्ग जानते थे कि नववधू शर्म व लोकलाज के चलते कई बातें ससुराल में शेयर नहीं कर सकती जो मायके में कर सकती है अत: उसे सामाजिक इस तरह के सामाजिक बन्धनों से आजादी देने के लिए पहली डिलीवरी मायके में करवाने का रिवाज प्रचलित किया गया !!
रतन सिंह जी , आज भी दिल्ली जैसे शहर के सरकारी अस्पतालों मे आने वाली महिलाओं मे अधिकांश का यही हाल है ! दिल्ली की लगभग ४० % आबादी पूर्वी दिल्ली मे रहती है जिसकी ७० -८०% जनता पुनर्वास कॉलोनियों मे रहती है जहां एक २५ गज के प्लॉट मे बने मकान मे ६ -६ परिवार रहते हैं ! इन हालातों मे रहने वालों की दास्तान है ये !
Deleteगांव के स्वास्थ्य केंद में यदि कोई अच्छी नर्स की तैनाती हो तो वो इस मामले में बहुत बढ़िया भूमिका निभा सकती है. वर्षों पहले जब रूढ़ियाँ ज्यादा थी तब का अनुभव है हमें कोपर टी लगवानी थी, हमने नर्स को कहा तो उसने दादी जी से बात की कोपर टी के व बच्चों के बीच उम्र के गेप के फायदे समझाये और हमारा काम हो गया |
ReplyDeleteलेकिन आज गांवों के स्वास्थ्य केन्द्रों में नर्सें एक आध घंटे के लिए आती है, उनकी शिकायत भी करो तो कोई कार्यवाही नहीं, पता नहीं उन्हें डाक्टर लोग क्यों बचाने को उतावले रहते है. इस तरह का ताजा अनुभव मुझे हुआ है. गांव की नर्स की शिकायत पर कोई कार्यवाही नहीं, बल्कि चिकित्सा अधिकारी मुझे सलाह देने लगे कि अपने गांव की कोई नर्स हो तो उसकी ड्यूटी लगवालो वो भी मंत्री से खुद कहकर !!
ये हालात भी गरीब जनता के लिये ही हैं ! वर्ना शहरों मे अमीरों के लिये तो ५ सितारा अस्पताल बने हैं !
Deleteजब तक हमारा समाज शिक्षित नहीं होगा , जब तक हमारे अंध विश्वास , गलत धारणाएं समाप्त नहीं होंगी , तब तक हमारे देश की महिलाएं पीड़ित होती रहेंगी और स्वास्थ्य के क्षेत्र मे महिलाओं का दर्ज़ा निम्न स्तर पर बना रहेगा !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति… यही कटु सत्य है!
समाज को कैसे जागरूक किया जाये ये अनुत्तरित प्रश्न है , सारा कुछ इस परिवर्तन मे निहित है सामाजिक परिवर्तन बेहद जरूरी
ReplyDeleteकुश्वंश जी , समाज को जागरूक करने मे सरकार , शिक्षाविद , चिकित्सक और धर्म गुरुओं सभी का योगदान आवश्यक है ! इसमे समय लग सकता है लेकिन शुरुआत तो होनी चाहिये !
ReplyDeleteदेखते हैं ...
ReplyDeleteशुरुआत घर से ही होनी चाहिए ... पहले घर की महिलाओं को इन बातों के लिए प्रेरित करें ... फिर घर से जुडी महिलाओं को जैसे काम करने वाली, मालिन, सफाई वाली या आस पड़ोस में काम करने वाली महिलाओं को ... जागरूकता आने की शुरुआत हो तभी ये संभव है ...
ReplyDeleteबड़ा गंभीर विषय लिया आपने आज , महिलाओं की स्थिति वाकई चिंताजनक है !
ReplyDeleteमंगलकामनाएं आपको !
सुप्रिय डॉ साहब आपने बुनियादी समस्याओं को रेखांकित किया है। आपको बैंगलोर से अभी अभी एक मेल प्रेषित की है कृपया देखें।
ReplyDeleteआदर से वीरुभाई
#४ ,डी -ब्लाक ,नोफ्रा ,कोलाबा ,मुंबई
चिंतनशील प्रस्तुति ...
ReplyDeleteताऊजी समस्या ये है कि माता वर्ग की महिलाएं अपने 40 साल के बच्चों की बात को भी बच्चे की बात समझती हैं......1-पहले घर का काम फिर खाना..2-बिना पूजा न खाने की जिद..3-पूजा करने का समय 10-11 बजे..4-घर का आधा काम निपटा कर....ये वो काम हैं जिना किए बिना वो मानती नहीं..उन्हें समझाते समझाते खुद हम थक जाते हैं..अब जाकर हमारी माताजी ने बात माननी शुरू कि है.वो भी जबरदस्ती करने पर..फिर भी खाना खाने में 10 बजा ही देती हैं..अब इन माताओं का क्या करें..इनकी माताओं की देखादेखी या कह लें कि साथ रहते रहते आज की उनकी बहू भी वैसे होती जाती हैं...(ये बहूरिया का एक्सपीरिंयस मेरा नहीं हैं...शादीशुदा दोस्तों की शिकायत है)
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