बसंत पंचमी पर होली का डंडा गड़ जाता है ! यानि मस्ती भरे एक खुशहाल दौर की शुरुआत हो जाती है ! घर बाहर खेत खलियान , सभी जगह रंग बसंती छाने लगता है ! ऐसे मे प्रस्तुत है , एक प्रेम / शृंगार ग़ज़ल :
निकलो ना यूं अयां होकर , के दुनिया बड़ी खराब है ,
रखना इसे संभाल कर , ये हुस्न लाज़वाब है !
नयनों की गहराई मे , राही ना डूब जाये कहीं ,
आँखें ये तेरी झील सी , मचलती हुई चेनाब हैं !
होठों की सुर्ख़ लालिमा , यूं लुभा रही है हमे ,
मयकश को मयख़ाने मे, ज्यों बुला रही शराब है !
गालों के बसंती रंग पे , शरमाये खुद शृंगार भी,
ठंड की सुहानी धूप मे , ये खिलते हुए गुलाब हैं !
चर्चे तुम्हारे हुस्न के , होने लगे हैं गली गली ,
कैसे संभाले दिल कोई , ये ज़लवा बेहिसाब है !
तारीफ़ तुम्हारे रूप की , करे क्या "तारीफ" ,
तू जागती आँखों का , इक हसीन ख्वाब है !
तारीफ़ तुम्हारे रूप की , करे क्या "तारीफ" ,
ReplyDeleteतू जागती आँखों का , इक हसीन ख्वाब है ..
तारीफ़ के इस उलट फेर की क्या तारीफ़ करें ... बहुत ही मस्त लाजवाब शेर डाक्टर साहब ....
शुक्रिया नासवा जी !
DeleteBadhiya Gazal.....
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (26-01-2015) को "गणतन्त्र पर्व" (चर्चा-1870) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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गणतन्त्रदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी ...
Deleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.....
ReplyDeleteगणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएँ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.....
ReplyDeleteगणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएँ।
चर्चे तुम्हारे हुस्न के , होने लगे हैं गली गली ,
ReplyDeleteकैसे संभाले दिल कोई , ये ज़लवा बेहिसाब है !
अभी तो हुश्न के ही शुरू हुए हैं जब इश्क के शुरू होंगे तब क्या होगा ? बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति
चर्चे तो हुस्न के ही होते हैं ज़नाब ! :)
Deleteतारीफ़ तुम्हारे रूप की , करे क्या "तारीफ" ,
ReplyDeleteतू जागती आँखों का , इक हसीन ख्वाब है ..
.................. लाजवाब शेर
वाह ताऊजीजीजीजीजीजीजीजी असली रंग तो यहां बिखेरा हुआ है आपने
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