पुराने ज़माने में हरियाणा में लोकगीतों का बड़ा महत्त्व होता था। गायकों को भजनी कहा जाता था । किसी भी विशेष अवसर पर भजनियों को बुलाकर संगीतमय कार्यक्रम ही मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन होता था. भजनी भी दो तरह के गीत या गाने सुनाते थे -- एक पौराणिक गाथाओं से सम्बंधित जिनमे धार्मिक और दार्शनिक सामग्री ज्यादा होती थी . दूसरे रोमांटिक गीत जिन्हे रागनी कहा जाता था . लेकिन सामाजिक कार्यक्रमों मे सिर्फ भजन ही सुनाये जाते थे .
लोकगीतों के गायकों मे लक्ष्मीचंद ( लखमीचंद ) का नाम बड़ा मशहूर था . हमारे पिताजी को भी गाने का बड़ा शौक था . आवाज़ भी अच्छी थी और गाते भी अच्छा थे . उन्ही से अक्सर राजा हरिश्चंद्र के किस्से से लिया गया एक गीत हम सुना करते थे जिसमे सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र सत्य पर कायम रहने के लिये अपना सारा राज पाट छोड़ कर एक शमशान भूमि मे नौकरी करने लगता है. एक दिन उनकी रानी उनके बेटे की लाश लेकर दफनाने के लिये आती है जिसे सांप ने काट लिया था . लेकिन राजा शमशान कर मांगता है जिसे वह देने मे असमर्थ रहती है . आखिर लाश के पास बैठी रोने लगती है तब राजा कहता है :
सुनता ना कोई रे , यूं रोवना फिज़ूल है,
विपदा की मारी तेरै, ममता की भूल है !
खाली पड़ा पिज़रा हंसा , चला गया उड़ के,
जाये पीछे फेर कोई , आया नहीं मूड के !
पांच तत्व जुड़ के सारी, काया का स्थूल है !
विपदा की मारी तेरै, ममता की भूल है !
इसी तरह के अनेक गाने हम पिताजी से सुनते आये थे . सिर्फ गाने ही नहीं , उनका हरियाणवी ह्यूमर भी गज़ब का था जो हमारे भी बहुत काम आया . रोज सुबह पार्क की ६-७ किलोमीटर की सैर करना उनके लिये आम बात थी . एक दिन पार्क की पगडंडी पर चलते हुए एक शख्श दो बार सामने से बिना नमस्ते किये हुए निकल गया . तीसरी बार पिताजी ने पकड़ लिया और बोले -- क्यों भाई , तू कोए लाट साब है या डी सी लगा हुआ है ! वो हैरान होकर बोला -- क्यों साहब , कोई गलती हो गई क्या ? पिताजी बोले -- भाई तू तीन बार सामने से गुजर गया , ना दुआ ना सलाम ! ये कोई बात हुई ! अब वो बेचारा क्या बोलता -- सॉरी बोल कर पीछा छुड़ाया .
उनकी ऐसी ही दबंग बातों से सारे क्षेत्र मे उनका दबदबा आज भी कायम है ! आज उनकी तीसरी पुण्य तिथि है . सच है कि हंस के उड़ जाने के बाद वो कभी वापस नहीं आता ! लेकिन उनकी यादें ओर उनसे सीखे गए सबक सदा याद रहेंगे .
विनम्र श्रद्धांजलि...
ReplyDeleteआपकी यादों ने हमारी यादों के किवाड़ भी खोल दिए.....
ReplyDeleteपर बहुत अच्छा लगता है यादों को उलटते पलटते रहना......जो हंस उड़ गया है उसे भी तसल्ली ज़रूर होती होगी.....
हमारे पापा के जाने के बाद कम से 5-6 ऐसे लोग आये जिन्हें हाँ जानते नहीं the...पूछने पर पाया कि मोर्निंग वाक पर उनसे दुआ सलाम होती थी.....कौन जाने पापा ने उन्हें हडकाया हो :-)
अच्छा लगा आपकी स्मृतियों में झांकना ...its very comforting !!
पिताजी को नमन !!
सादर
अनु
हाँ को हम पढ़ें....the को थे...सॉरी......भावनाओं में बहकर गलतियाँ हो जाती हैं :-(
Deleteअनु जी , यह सबसे बड़ी विडंबना है कि ज़ाने वाले कभी वापस नहीं आते . बस यादें ही रह जाती हैं , दिल को सकूं देने के लिये . आभार , दिल से लिखी टिप्पणी का .
Deleteवे हमेशा दिल में रहेंगे . . .
ReplyDeleteभले ही वो इस दुनिया से चले गए लेकिन यादों में हमेशा साथ रहेंगे … सादर नमन
ReplyDeleteगर्व होता है ऐसे पिता पर। विनम्र श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteआदरभरी श्रद्धांजलि उन्हें और धन्यभाग पुत्र के :-)
ReplyDeleteनमन और श्रद्धांजलि...
ReplyDeleteपिता जी नमन और श्रधांजलि ... बातें कभी मिटती नहीं ... रह जाती हैं जेहन में कभी मुस्कान और कभी आंसू दे जाती हैं ...
ReplyDeleteक्यों भाई , तू कोए लाट साब है या डी सी लगा हुआ है !
ReplyDeleteये वाक्य तो कोई हरियाणवी ही बोलने की क्षमता रखता है. आपके संस्मरण ने बहुत पुरानी यादों को ताजा कर दिया.
पिताजी को सादर नमन.
रामराम.
आपने हमने ये दुख आगे पीछे झेला है.....आपके पिताजी को नमन..उनका दंबग स्वभाव वो दबंग नहीं असल में सच्चे लोगो के चरित्र का वजह हुआ करता था...
ReplyDeleteबहुत सही कहा .
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