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Wednesday, May 4, 2011

अंतर्राष्ट्रीय ब्लोगर्स सम्मेलन---भाग २

पिछली पोस्ट से आगे ---

कुछ दिन पहले भाई अविनाश जी का फोन आया -डॉ साहब आपको समारोह में ज़रूर आना है
मैंने जानना चाहा कि भाई इसमें हमारा क्या रोल रहेगा कहने लगे बाहर से बहुत से लोग रहे हैं , ब्लोगर्स को पुरस्कार दिए जायेंगे, फिर चाय पानी होगा, साढ़े छै बजे से दूसरा कार्यक्रम है तद्पश्चात रात्रि भोज का आयोजन है

मैंने फिर प्रश्न किया --लेकिन इसमें हमारा रोल क्या रहेगा ?
यही बात अविनाश जी समझा नहीं पाए यही समझ आया कि बस मिलना जुलना होगा

खैर हमने खुद ही हिसाब लगाया कि इस तरह के कार्यक्रम में तीन तरह के लोग होते हैं
एक वो जो विशिष्ठ अतिथि होते हैं , उन्हें मंच पर बिठाया जाता है
दूसरे वो जिन्हें सम्मानित करने के लिए निमंत्रित किया जाता है
और तीसरे वो जिन्हें ऑडियंस में बैठकर तालियाँ बजाने के लिए आमंत्रित किया जाता है

अब हमें निमंत्रण तो मिला नहीं था
अविनाश भाई ने आमंत्रित ज़रूर किया था

लेकिन आमंत्रण पर जाना तो हम बहुत पहले छोड़ चुके इसलिए जाने का कोई औचित्य तो था नहीं

लेकिन एक और खास वज़ह भी थी जाने की बहुत से ब्लोगर साथी जिनसे ब्लॉग पर तो गुफ्तगू होती रहती थी लेकिन उनसे मिले कभी नहीं थे , समारोह में उपस्थित होने थे उनसे मिलने का लालच हमें रोक नहीं पाया जाने से

साढ़े छै के बाद जब हम पहुंचे तो पता चला कि कार्यक्रम तो कुछ देर पहले ही शुरू हुआ था सम्मान समारोह चल रहा था

जाते ही दिनेश राय द्विवेदी जी नज़र आए तो उन्होंने ने हमें और हमने उन्हें पहचान लिया और बैठने के लिए साथ मिल गया

लेकिन माहौल में कुछ टेंशन साफ नज़र रहा था और जब भाषणबाजी शुरू हुई तो राजनीति की बातें शुरू हो गई ऐसे में हमने तो खिसक लेना ही उचित समझा बाहर आकर शुरू हुआ ब्लोगर्स साथियों से मिलने का सिलसिला

सबसे पहले ललित जी की नज़र पड़ी बड़े आदर सहित मिलना हुआ संजीव तिवारी जी कैमरा लिए तैयार खड़े थे उनसे भी पहली बार मिले
इस बीच खुशदीप सहगल मिले तो बोले -अरे सर बैक बेंचर बन कर बैठे हो
हमने कहा भाई कंपनी के लिए द्विवेदी जी तो हैं ना
लेकिन
वो किसी परेशानी में थे और जल्दी से निकल लिए

उद्देश्य तो लोगों से मिलना था कितने ही लोगों से मिले पहली बार --कुमार राधारमण जी , जाकिर अली रजनीश , अवधिया जी , पाबला जी , निर्मला जी , संगीता पुरी जी , रतन सिंह शेखावत जी, जय कुमार झा जी से मिलना हुआ

राजीव तनेजा , वर्मा जी , शाहनवाज़ , विनोद पांडे सहित और भी युवा ब्लोगर्स से तो पहले भी मिलना हो चुका है

पाबला जी जाने क्यों देर तक दो सीट की जगह घेरे बैठे रहे अंतत : हमें उन्हें फोन कर बुलाना पड़ा आधुनिक तकनीक का भी कितना यूज और मिसयूज होता है तीन चार पंक्तियाँ आगे बैठे पाबला जी को हमने एस टी डी कर के बुलाया और उनको भी रोमिंग का किराया देना पड़ा

किसी ने एक मासूम से नज़र आने वाले सुन्दर चुस्त तंदुरुस्त नटखट से युवक से मिलवाया और पहचानने के लिए कहा देखकर कुछ पहचाना सा तो लगा लकिन फिर कुछ शक हुआ तो हमने उसके डोले शोले हाथ लगाकर देखे तो फ़ौरन पहचान गए अरे यह तो महफूज़ अली थे एक दम बच्चे से फोटो में कितना अलग दिखते हैं सब

इसी तरह मिलना जुलना चलता रहा

लेकिन एक बात साफ नज़र रही थी लोगों के चेहरों पर हंसी नज़र नहीं रही थी

हम डॉक्टर्स के कोई भी कार्यक्रम होते हैं तो औपचारिक कार्यक्रम के बाद सब प्यार से गले मिलते हैं और खूब हंसी मज़ाक चलता है

दो अवसर तो ऐसे होते हैं जिन पर डॉक्टर्स अपने प्रतिद्वंदियों से भी बड़े प्यार से गले मिलते हैं एक होली पर और दूसरे मेडिकल एसोसिएशन की पार्टियों में
सब ऐसे गले मिलते हैं जैसे बरसों से बिछड़े यार मिल रहे हों
दिल से दिल भले ही ना मिले , लेकिन पेट से पेट तो मिलते ही हैं
क्या करें अधिकांश डॉक्टर्स के भी पेट जो निकले होते हैं

लेकिन ब्लोगर्स मीट में गले मिलने की रिवाज़ नहीं है इसलिए हमें भी सावधानी बरतनी पड़ी
आजकल माहौल ही कुछ ऐसा है कि जाने कौन क्या सोच ले

पुरुषों के मुकाबले महिलाएं ज्यादा रिलेक्स्ड नज़र रही थी
संजू तनेजा जी , संगीता जी , निर्मला जी और सुनीता शानू जी जिनको हम बाद में ही पहचान पाए , मुस्कराती हुई ही नज़र आई

इस बीच अविनाश जी से भी मिलना हुआ लेकिन उनके चेहरे पर उडती हवाइयों को देखकर हमें आभास हो गया कि मामला कुछ गड़बड़ है इसलिए हैलो भी होले से ही हुई

एक तरफ किताबों की दुकान लगी थी , जैसे कोई पुस्तक मेला लगा हो

कार्यक्रम के संयोजक रविन्द्र प्रभात जी अति व्यस्त नज़र रहे थे वैसे भी उनसे कभी मिलना नहीं हुआ , प्रत्यक्ष में ही ब्लोग्स पर वहां भी राम राम , दुआ सलाम ही हो पाई

इस बीच टोपी पहने अजय कुमार झा ने अपना परिचय दिया तो पहचाना
जाते जाते श्री अशोक चक्रधर जी से भी मुलाकात हो ही गई

कुछ ऐसे मित्र भी रहे जिनसे मिलना हो सका किन्ही कारणों से वे नहीं पाए होंगे जिनमे श्री राजेन्द्र स्वर्णकार जी , अरविन्द मिस्र जी , काजल कुमार जी, रूप चंद शास्त्री जी, और राकेश कुमार जी प्रमुख थे

राजेन्द्र जी से तो एक महीने पहले ही मिलने की बात हो गई थी लेकिन परिस्थितिवश उनका आना संभव हो पाया अरविन्द जी का भी पहले ही पता चल गया था कि नहीं आने वाले
काजल कुमार जी तो आकर भी चले गए
रूप चंद शास्त्री जी सीट पर ही बैठे रहे , इसलिए मुलाकात नहीं हो पाई
संगीता स्वरुप जी भी जाने क्यों हमें दिखाई नहीं दी

अंत में हमने भी खा ( हवा ) पीकर ( चाय) सोचा -- अब लौट चलें

लेकिन यही समझ में नहीं आया कि यह समारोह ब्लोगर्स के लिए था या ब्लोगर्स के माध्यम से आयोजकों ने अपना कोई विशेष कार्य सिद्ध किया था

मिलने जुलने को छोड़कर , बाकि हालात पर कई सवाल ज़ेहन में उठ खड़े हुए जो इस सम्मेलन में अवशेष के रूप में रह गए हैं और जिनका ज़वाब आपको ढूंढना है


नोट : इस कार्यक्रम के आयोजन में अविनाश वाचस्पति और रविन्द्र प्रभात की मेहनत की दाद देनी पड़ेगी


Monday, May 2, 2011

अंतर्राष्ट्रीय ब्लोगर्स सम्मेलन--भाग १

दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय ब्लोगर्स सम्मेलन संपन्न हुआ । हमने तो ब्लोगिंग छोड़ने का मन बना लिया था । लेकिन छोड़ने का मन भी नहीं करता । इसलिए मित्रों से ही कहलवा लिया कि अभी न छोड़ें ।

ब्लोगिंग का नशा भी सिग्रेट जैसा होता है कितना ही छोड़ने की कोशिश करो लेकिन वह आपको नहीं छोडती । किसी ने कहा है --इट इज इज वेरी ईजी टू स्टॉप स्मोकिंग , एंड आई हैव डन ईट सो मेनी टाइम्स

सिग्रेट छोड़ना है इतना आसान
ज़रा मुझे ही देखो ,
मैं कितनी बार कर चुका हूँ ये काम ।

प्रस्तुत है एक रिपोर्ट --आँखों देखी ।

सर्दियों के दिन थे । हम किसी काम से अपने गाँव की ओर जा रहे थे । रोहतक रोड से पहले झंडेवालान के सामने एक स्कूल में लगा बैनर देखा । लिखा था --दिल्ली हंसोड़ दंगल के लिए आज ऑडिशन हो रहा है । हमें भी जाने क्या सूझा कि झट गाड़ी मोड़ दी और पहुँच गए ऑडिशन हॉल में । सोचा गाँव तो एक दो घंटे बाद भी पहुँच जायेंगे , क्यों न लगे हाथ हम भी दो चार जोक्स सुनाते चलें ।

अपना नाम लिखाया और लगे इंतज़ार करने अपनी बारी का ।
ऑडिशन लेने वाले को एक दो बार कहा भी कि हम डॉक्टर हैं और जल्दी में हैं , ज़रा जल्दी बुला लेंलेकिन बारी तो बारी पर ही आती है

खैर आखिर नंबर आ ही गया । हमने अपना सबसे बढ़िया जोक सुनाया और सोचा कि अब लगेंगे ठहाके

लेकिन यह क्या --एक भी बंदा नहीं हंसा । हमें थोडा धक्का सा लगा लेकिन फिर संभलते हुए अपना सबसे बढ़िया से भी बढ़िया दूसरा जोक निकाला और पेश किया ।

लेकिन फिर वही --एक चींटी तक के हंसने की भी आवाज़ नहीं आई । सब हमें ऐसे देख रहे थे जैसे कह रहे हों --जा यार जा --क्यों बोर कर रहा है ।

अब तो अपनी सारी फूंक निकल गई और औकात समझ गई तो चुपचाप खिसक लिए वहां से

घर आकर आत्मनिरीक्षण किया तो समझ आया कि भैया हँसता कौन । वहां श्रोता तो कोई था ही नहीं । सभी तो ऑडिशन देने वाले थे और अपनी बारी के इन्तज़ार में नर्वस से बैठे थे । कोई नाखून चबा रहा था , कोई हाथ मसल रहा था , किसी का मूंह सूख रहा था । सबको एक ही चिंता थी कि मेरा ऑडिशन ठीक ठाक हो जाए तो बात बने ।

और ऑडिशन लेने वाले को तो हंसने की मनाही थीज़ाहिर है , उन्हें तो बाद में स्टूडियो में बैठकर हँसना था।

खैर हमने इसे एक ख़राब ख्वाब समझ कर भूलने की कोशिश की ।

लेकिन कुछ दिन बाद हमारे पास फोन आया ।

कड़कदार आवाज़ --आपने हमारे प्रोग्राम में ऑडिशन दिया था ? हमने डरते डरते कहा --हाँ भाई दिया तो था । कोई गलती हो गई क्या ।
उसने थोडा नर्म पड़ते हुए कहा --नहीं नहीं , सर हमने तो आपको ये बताने के लिए फोन किया है कि आपको फाइनल्स के लिए सलेक्ट कर लिया गया है ।

मैंने कहा --कमाल है , सीधे फाइनल्स में ! अच्छा फाइनल्स का ऑडिशन अलग से होगा ! !

वो बोला --नहीं सर , आप समझे नहींआपको ऑडिशन के लिए नहीं , ऑडियंस के लिए सलेक्ट किया गया है

मैंने कहा --तो भाई ये कहो कि फ्री में तालियाँ बजाने के लिए बुला रहे हो

खैर हम गए भी , तालियाँ भी बजाई ।
इसके बाद एक छोटा सा इतिहास हमने भी रचा । लेकिन ये कहानी फिर कभी ।

नोट : आप सोच रहे होंगे कि इस संस्मरण का अंतर्राष्ट्रीय ब्लोगर्स सम्मेलन से क्या सम्बन्ध हैजानने के लिए अगला भाग पढना भूलें