श्री अरविन्द मिश्र जी की एक पोस्ट पर टिप्पणी देते हुए हमने लिखा था-- मंगल पर मंगल मनाने में तो पांच सौ साल लग जायेंगे। क्यों न अभी जंगल में ही मंगल मनाया जाए । १३ अप्रैल को हमारी शादी की २८ वीं वर्षगांठ के अवसर पर हमने कुछ ऐसा ही कार्यक्रम बना लिया था । सुबह ही एक पोस्ट स्ड्युल कर हम निकल पड़े । सोचा कि जब वापस आयेंगे तब तक बधाईयों का टोकरा फुल भर चुका होगा । लेकिन आकर देखा तो २० % ही भरा पाया ।
ज़ाहिर है , पाठक शीर्षक देखकर या आरम्भ की चंद पंक्तियाँ पढ़कर ही अंदाज़ा लगा लेते हैं कि पोस्ट पढने लायक है या नहीं । हमने भी ढिंढोरा न पीटते हुए बस अंत में एक पंक्ति डाल दी थी कि आज हमारी वैवाहिक वर्षगांठ है ।
बचपन में शेर की कहानी सुनने का बड़ा शौक था । अब यह हमारे लिओ होने का परिणाम है या कुछ और, कहना मुश्किल है । लेकिन जब भी ताऊ जी फ़ौज से छुट्टी लेकर आते , हम उनसे या तो युद्ध की बातें सुनते या शेर की कहानी । यदि गलती से भी कहानी में कोई और जानवर आता तो फ़ौरन हाय तौबा मचाते और कहते , बस शेर के बारे में बताओ ।ज़ाहिर है , पाठक शीर्षक देखकर या आरम्भ की चंद पंक्तियाँ पढ़कर ही अंदाज़ा लगा लेते हैं कि पोस्ट पढने लायक है या नहीं । हमने भी ढिंढोरा न पीटते हुए बस अंत में एक पंक्ति डाल दी थी कि आज हमारी वैवाहिक वर्षगांठ है ।
कॉलेज के दिनों में जब घूमने का अवसर मिलने लगा तो पाया कि दो स्थान बहुत पसंद आते थे -- एक पहाड़ और दूसरे जंगल ।
इस वर्ष पहली बार ऐसा हुआ कि १३ अप्रैल को दोनों बच्चे घर से बाहर थे । ऐसे में हमें अपने पहले हनीमून की याद आ गई । यह हमारा प्रकृति प्रेम ही था कि जब हम श्रीमती जी के साथ विवाह की 2८ वीं वर्षगांठ पर घूमने जाने का प्रोग्राम बना रहे थे तो यह हमारा ही सुझाव था कि इस बार हनीमून किसी ऐसी जगह मनाया जाए जो बिल्कुल अलग हो ।
एक अच्छी बात यह रहती है कि सैर सपाटे के मामले में हमारी राय कभी भिन्न नहीं होती । इसलिए श्रीमती जी भी फ़ौरन मान गई । और हमारा प्रोग्राम बन गया हरिद्वार जाने का । अब इससे बढ़िया प्राकृतिक स्थल और भला क्या हो सकता था एक सुगर फ्री हनीमून के लिए ।
शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि हरिद्वार सिर्फ एक पवित्र तीर्थ स्थल ही नहीं है । बल्कि यहाँ स्थित है देश के सबसे बड़े वाइल्ड लाइफ नेशनल पार्क्स में से एक --राजा जी नेशनल पार्क (चिल्ला वाइल्ड लाइफ सेंक्चुरी )। देहरादून से लेकर हरिद्वार तक फैला यह फोरेस्ट रिज़र्व पूर्व की ओर जाकर कॉर्बेट पार्क से जाकर मिल जाता है । यह मूलत : हाथियों का संरक्षण पार्क है । लेकिन अन्य जंगली जीव भी बहुतायत में देखे जा सकते हैं ।

दिल्ली से मोदीनगर तक का रास्ता तय करने के बाद मेरठ बाई पास से होते हुए, फिर खतौली बाई पास और अंत में मुजफ़्फ़र नगर बाई पास को पार करने तक का तकरीबन ९० किलोमीटर का रास्ता बेहद आसान बन गया है । सारे रास्ते चार लेन वाला सिग्नल फ्री हाईवे बनने से सफ़र का आनंद दुगना हो जाता है ।
फ़्लाइओवर्स पर लगी इम्पोर्टेड लाइट्स को देखकर यही लगा कि विकास की आंधी उत्तर प्रदेश में भी आ चुकी है ।
लेकिन खतौली बाईपास बनने से चीतल रेस्ट्रां का अच्छा खासा नुकसान हो गया है । अब वहां कोई नहीं जाता । बिजनेस में कब दिन पलट जाएँ और दिवाला निकल जाए , इसे देखकर यह अच्छी तरह समझ आता है ।
१३ अप्रैल को सुबह से ही बादल छाए हुए थे । १२५ किलोमीटर तक मौसम ऐसा ही रहा ।

मुजफ़्फ़र नगर बाई पास के ख़त्म होते ही सड़क पर अनेक ढाबे बने हैं । ढाबे में खाने का अपना ही मज़ा है । जब तक हमने आलू परांठे का स्वाद लिया , तब तक बूंदा बंदी होने लगी थी । फिर तेज बारिस होने लगी । अगले ७५ किलोमीटर मध्यम बारिस में ड्राईव करते रहे ।
चिल्ला :

क्रमश : ---लेकिन खतौली बाईपास बनने से चीतल रेस्ट्रां का अच्छा खासा नुकसान हो गया है । अब वहां कोई नहीं जाता । बिजनेस में कब दिन पलट जाएँ और दिवाला निकल जाए , इसे देखकर यह अच्छी तरह समझ आता है ।
१३ अप्रैल को सुबह से ही बादल छाए हुए थे । १२५ किलोमीटर तक मौसम ऐसा ही रहा ।

मुजफ़्फ़र नगर बाई पास के ख़त्म होते ही सड़क पर अनेक ढाबे बने हैं । ढाबे में खाने का अपना ही मज़ा है । जब तक हमने आलू परांठे का स्वाद लिया , तब तक बूंदा बंदी होने लगी थी । फिर तेज बारिस होने लगी । अगले ७५ किलोमीटर मध्यम बारिस में ड्राईव करते रहे ।
चिल्ला :
पिछली बार ५-६ साल पहले जाना हुआ था । गंगा जी के पश्चिमी किनारे पर घाट बने हैं । ठीक इसके विपरीत पूर्वी किनारे पर है चिल्ला फोरेस्ट । बैरेज से होकर गंगा पार करते ही दिल्ली हरिद्वार सड़क के सामानांतर एक पतली सी सड़क है जो जंगल से होती हुई चिल्ला जाती है जहाँ गढ़वाल मंडल विकास निगम का आरामदायक टूरिस्ट बंगला है जहाँ रहने का बढ़िया इंतज़ाम है । इस सड़क और गंगा के बीच घना जंगल है जहाँ पिछली बार हमने हाथी पर बैठकर तेंदुए की जोड़ी देखी थी । दायीं ओर सारा जंगल है जो करीब २४०-२५० वर्ग किलोमीटर में फैला है । यहाँ सिर्फ गाड़ी से जाया जा सकता है । पिछली बार हम अपनी गाड़ी लेकर जंगल में घुस गए थे , एक गाइड के साथ । लेकिन शाम होने की वज़ह से ६-७ किलोमीटर के बाद ही वापस मुड़ना पड़ा था क्योंकि अँधेरा होने लगा था । इसलिए इस बार तय कर लिया था कि पार्क का पूरा चक्कर अवश्य लगाना है ।
सड़क से ही ऐसा दृश्य देखने को मिल जाता है ।