इससे पहले कि हम आपको यह बताएं कि दुबई से हमने क्या सीखा, थोड़ी और मस्ती हो जाये .
इनडोर एक्वेरियम में नाव की सवारी करने से पहले हमने पूजा अर्चना करना सही समझा . आखिर विदेश में चुल्लू भर पानी में डूबना कौन चाहेगा . हालाँकि हमने लोगों को ऐसा करते हुए भी देखा . ( यह शायद समझ न आए )
टॉपर्स एट दा टॉप
यह फोटो हमने स्वयं खिंची है .
पानी में बुड्ढा मस्ती .
महिलाएं तो ऐसे ही काम चला लेती हैं .
लेकिन पुरुषों को कौन रोक सकता है . फिर कैसे कहें पुरुष और महिला में कोई फर्क नहीं होता .
मस्ती के बाद अब कुछ काम की बात हो जाए :
स्वच्छता :
दुबई की आबादी 2 मिलियन से भी कम है जिसमे सिर्फ 20 % ही वहां के मूल निवासी हैं . शेष 80 % दूसरे देशों से आए हुए कामकाजी लोग हैं . इनमे मुख्यतया भारतीय , पाकिस्तानी , बंगला देसी , फिलिस्तीनी और ईरानी लोग काम की तलाश में यहाँ भीषण गर्मी में मेहनत करते हैं।
लेकिन जो बात सबसे ज्यादा प्रभावित करती है , वह है यहाँ की सड़कों पर साफ़ सफाई . गन्दगी फैलाना यहाँ भी अपराध है और वहां भी . लेकिन जो लोग यहाँ बेतकल्लुफी से गन्दगी फैलाते हैं , वही वहां जाकर अच्छे नागरिक बन जाते हैं .
वहां कोई सड़क पर या दीवारों पर या कोने में पान की पीक नहीं मारता . न ही खुले में पेशाब की धार मारता . यह अलग बात है कि वहां की गर्मी में और पानी की कमी से इसकी नौबत ही नहीं आती .
ट्रैफिक :
सड़क पर बस बड़ी बड़ी गाड़ियाँ ही दिखती हैं . कोई दोपहिया नहीं , न रिक्शा , न साइकिल . बैलगाड़ी और घोड़ागाड़ी का तो सवाल ही नहीं उठता। जेब्रा क्रॉसिंग पर पहला हक़ पैदल यात्री का होता है। कूद फांद कर कोई सड़क पार नहीं करता .
कारों की फिटनेस हर वर्ष लेनी पड़ती पड़ती है . उसी समय सारे चलान भी भरने पड़ते हैं जिसकी रकम बहुत ज्यादा होती है . इसलिए जो ड्राइवर यहाँ अपनी मर्ज़ी से गाड़ी चलाते हैं , वहां जाकर विश्व के सबसे शरीफ इंसान बन जाते हैं .
टैक्सी चालक के साथ कोई मगजमारी नहीं करनी पड़ती . गाड़ी के अन्दर ही मीटर लगा लगा होता है जो न सिर्फ काम करता है बल्कि रीडिंग भी सही देता है .
पूरे शहर में ऊंची ऊंची बिल्डिंग्स और होटल्स की भरमार है . चमचमाती बिल्डिंग्स पूर्णतया सुरक्षित तरीके से बनाई गई हैं . यहाँ बिजली भी कभी नहीं जाती।
लेकिन ऐसा नहीं है कि सब अच्छा ही अच्छा है . पानी 30 रूपये और पेट्रोल 25 रूपये लीटर मिलता है .
सभी दफ्तर के काम मूल निवासियों के जिम्मे हैं जबकि मजदूरी तथा अन्य मेहनत के काम बाहर के लोग करते हैं . बेहद गर्मी में काम भी सुबह शाम और रात में किये जाते हैं .
यहाँ महिलाओं को बुर्के में रहना पड़ता है। खाना खाते समय भी पर्दा मूंह पर ही रहता है . हालाँकि उनको आदत तो पड़ ही जाती होगी .
कुल मिलाकर दुबई वालों ने अपनी मेहनत से रेगिस्तान में महल और भव्य भवन खड़े करके यह साबित कर दिया कि मेहनत और हिम्मत से विपरीत परिस्थितियों को भी अनुकूल बनाया जा सकता है .
नोट : दुबई के कुछ और चित्र यहाँ देखें .