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Wednesday, July 30, 2025

एक शहर की सड़कें ...

एक साल में तीन चुनाव,

हर चुनाव में जागती एक उम्मीद।

कि तीन सालों से टूटी सड़कें,

अब तो सज संवर ही जाएंगी।


चंबल के बीहड़ों सी ऊबड़ खाबड़,

बारिशों में बरसाती नाला बनी सड़कें,

सावन आने से दस दिन पहले,

आखिर संवर ही गईं,

बिटुमन की काली चादर ओढ़कर।


ठेकेदार अब रोज मंदिर जाता है,

प्रसाद चढ़ाकर दुआ मांगता है,

पेमेंट होने तक सड़क की सलामती की।

आखिर अगले ही दिन,

सड़क की सतह पर उभर आईं थीं रोड़ियां।


दुनिया में परमानेंट कुछ भी नहीं,

फिर ये तो बेचारी इमरजेंसी सड़क है,

भ्रष्ट अफसरों द्वारा बनाई गई,

भ्रष्ट नेताओं की लाज रखने के लिए। 

Monday, July 21, 2025

नया नया बूढ़ा ...

 2025 का नया नया मैं बूढ़ा हूं,

पर दवाओं पर ही अब जीता हूं।


रम वोदका बीयर विस्की सब छूट गई,

मदर डेयरी की बस छाछ लस्सी पीता हूं।


पेंट शर्ट सब टंगी टंगी पुरानी हो गईं,

फट जाए तो रफुगर बन खुद सीता हूं।


रोज थैला उठाए मार्केट में दिखता हूं,

हर दुकानदार से करता फजीहता हूं।


घर में है लाइब्रेरी भरी सैकड़ों किताबों से,

पर पढ़ने लिखने में बस करता कविता हूं।


बचे खुचे हैं जो सर पर तजुर्बे के बाल हैं,

कोई सुनता नहीं वरना ज्ञान की गीता हूं।


सीढ़ियां चढ़ने में भले ही फूल जाता है दम,

पर दिल से अभी युवाशक्ति का चीता हूं।