2025 का नया नया मैं बूढ़ा हूं,
पर दवाओं पर ही अब जीता हूं।
रम वोदका बीयर विस्की सब छूट गई,
मदर डेयरी की बस छाछ लस्सी पीता हूं।
पेंट शर्ट सब टंगी टंगी पुरानी हो गईं,
फट जाए तो रफुगर बन खुद सीता हूं।
रोज थैला उठाए मार्केट में दिखता हूं,
हर दुकानदार से करता फजीहता हूं।
घर में है लाइब्रेरी भरी सैकड़ों किताबों से,
पर पढ़ने लिखने में बस करता कविता हूं।
बचे खुचे हैं जो सर पर तजुर्बे के बाल हैं,
कोई सुनता नहीं वरना ज्ञान की गीता हूं।
सीढ़ियां चढ़ने में भले ही फूल जाता है दम,
पर दिल से अभी युवाशक्ति का चीता हूं।
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