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Monday, August 19, 2024

दरिंदे....


कहने को सारी दुनिया दमदार हुई, 

फिर एक बार पर जिंदगी शर्मसार हुई।

कुछ जंगली भेड़ियों की कारिस्तानी से,

फिर एक बार इंसानियत की हार हुई। 


सीने में जलन थी, पर रो ना सकी,

आंखों में नींद थी, पर सो ना सकी। 

इतने जख्म दिए बेदर्द जालिमों ने, 

उस दर्द की कोई दवा हो ना सकी। 


निर्मल कोमल कच्ची धूप सी होती हैं,

बेटियां भगवान का ही स्वरूप होती हैं।

जो मासूमियत को कुचलते हैं बेरहमी से,

उनकी उजली शक्ल कितनी कुरूप होती है। 


Thursday, August 1, 2024

हास्य कवि...

 पत्नी पर कविता सुनाओ तो पत्नी नाराज़ हो जाती है,

बालों पर कविता सुनाओ तो दोस्तों की हालत नासाज हो जाती है।


धर्म पर कविता सुनाओ तो

लोग सांप्रदायिक फसाद में फंस जाते हैं,

नेताओं पर कविता सुनाओ तो दोस्त ही खेमों में बंट जाते हैं। 


यही सोचकर आजकल हास्य कवि मंचों पर,

कविता नहीं, केवल चुटकले सुनाते हैं। 😅