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Wednesday, May 18, 2022

एक लघु कथा:

गूगल बाहर का तापमान 42 दिखा रहा था। घर के सभी खिड़की दरवाज़े बंद कर
(खिड़कियां तो वैसे भी कभी नहीं खोलते। पता नही एक खिड़की में दो दो खिड़कियां लगवाई क्यों थीं। शायद वो पुराना ज़माना था, पुरानी सोच थी।),
हम अपने कमरे में आराम से बैठे अपनी ही कविताएं पढ़ रहे थे (कोई दूसरा पढ़े ना पड़े, हम तो पढ़ ही सकते हैं)।
तभी अचानक एक गहरे काले रंग का पक्षी अंदर से ही उड़ता हुआ आया और कमरे में बुलेट ट्रेन की स्पीड से गोल गोल चक्कर काटने लगा। न जाने कहाँ से और कैसे घर मे घुसा, यह बिल्कुल समझ में नहीं आया। कई घंटे हुए कोई दरवाज़ा नहीं खुला था। शायद सुबह ही घुसा होगा और कहीं छुपकर सो गया होगा, ज़बरदस्ती का मेहमान बनकर।
उसकी स्पीड देखकर तो हमें ही चक्कर से आने लगे। सोचा ये तो चमगादड़ लग रहा है, काट भी सकता है। यदि चिपट जाता तो छुड़ाना मुश्किल हो जाता। अब पहले तो हमने बाहर की ओर खुलने वाला दरवाज़ा खोला, लेकिन उसने कोई ध्यान नहीं दिया। उसी तरह उसी स्पीड से उड़ता रहा। फिर लाइट बंद की, फिर भी एक काली परछाई सी पंखे की तरह चलती दिखाई देती रही।
शाम होने लगी थी, लेकिन उसकी स्पीड कम नही हुई। ऐसा लगने लगा था जैसे आज तो कमरे में यही सोएगा। पर अब हमने कमर कस ली और डट कर मुकाबला करनी की सोची। एक झाड़ू हाथ मे लेकर उसे हवा में घुमाना शुरू किया ताकि उसका ध्यान भंग हो। लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ। अब तो हम भी कमरे में ही घुस गए और उस पर निशाना साधने लगे। इस बीच श्रीमती जी को याद आया कि लोग इस पर तौलिया फेंककर पकड़ लेते हैं। लेकिन वह तरीका भी कारगर साबित नहीं हुआ।
अब तक हम झाड़ू घुमा घुमा कर पसीना पसीना हो चुके थे। हैरानी थी कि थकने भी लगे थे, आखिर करीब 20 मिनट से मेहनत करने में लगे थे। लेकिन वो नहीं थका था। खैर, हमने एक आखिरी दांव लगाने की सोची और झाड़ू को उठाकर स्थिर रखते हुए उसके चक्करव्यूह को भेदने की सोची। अर्जुन की तरह मछली की आंख में निशाना लगाया और एक निश्चित स्थान पर एक निश्चित समय पर प्रहार करने का प्रयास किया। आखिर 4-5 सर्कल्स के बाद निशाना सही बैठ ही गया और वह लुढ़ककर बेड पर जा गिरा। ज़ाहिर था, चोट खाकर वह बेहोश या पस्त हो गया था। इस बीच हाथ मे तौलिया लिए मेडम ने उसे धर दबोचा जैसे फिल्मों में अपहरणकर्ता सिर पर कपड़ा डालकर किसी को पकड़ लेते हैं।
उसे उठाकर बालकनी से बाहर फेंका तो अंधेरे में पता भी नहीं चला कि कहां उड़ गया। ये सोचकर अच्छा लगा कि सिर्फ कुछ पल के लिए बेहोश ही हुआ था, मरा नहीं था। और इस तरह हमने एक बिन बुलाए मेहमान से निज़ात पाई। इस तरह का वाकया ज़िंदगी मे पहली बार हुआ।

4 comments:

  1. जो भी हुआ उससे ये पता चल गया कि चुस्त दुरुस्त हैं और निशाना भी जबरदस्त है ।।

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    1. हां जी, पत्नी के सामने इज़्ज़त का सवाल था। 😃

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  2. वह तो यह गनीमत रही है कि पंखा नहीं चल रहा था घर में वर्ना बेमौत मारा जाता बेचारा कोई भूला-भटका हुआ

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  3. अच्छी और रोचक कथा
    बधाई

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