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Saturday, January 15, 2022

हँसलोपैथी -- हँसो हँसाओ, सेहत बनाओ।

                                 



एक समय था जब हमारे देश में बीमारियां भी ग़रीब या अविकसित देशों वाली होती थीं, जैसे चेचक, हैजा, तपेदिक आदि संक्रमण जिनका संबंध निम्न स्तर के रहन सहन और अस्वच्छ वातावरण से होता है।  जबकि दूसरी ओर विकसित देशों में हृदयरोग, मधुमेह और कैंसर जैसे भयंकर रोग ज्यादा पाये जाते थे। ये रोग हमारे देश में केवल उच्च आय वर्ग में ही देखे जाते थे। लेकिन समय के साथ साथ ये रोग अब हमारे जैसे विकासशील देश में बहुतायत से देखे जाते हैं।  इसका कारण है जीवन शैली में परिवर्तन। जिस तरह भौतिक सुविधाओं का विकास हुआ है, मध्यम वर्गीय लोगों की जीवन शैली भी आरामदायक बन गई है, उसका प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। डायबिटीज, हाइपर्टेंशन, उच्च कॉलेस्ट्रॉल और मोटापे के साथ साथ मानसिक तनाव आम आदमी के जीवन का हिस्सा बन चुके हैं। जहाँ बाकी सभी रोगों का उपचार डॉक्टर ही कर पाता हैं , वहीं मानसिक तनाव को दूर करना या रखना स्वयं आपके अपने ही हाथ में होता है।  आज जिसे देखो वही तनाव में नज़र आता है। माथे पर तनी भृकुटि, अपने आप में ग़ुम, सदा गंभीर चेहरा और कभी हँसते हुए नज़र न आना आदि ऐसे लक्षण हैं  जो मानसिक तनाव को दर्शाते हैं।  आज इंसान हँसना मुस्कराना ही भूल सा गया है।  इसी का परिणाम है कि अब हमारे जैसे विकासशील देश में भी विकसित देशों की बीमारियां घर कर चुकी हैं।    

एक ओर जहाँ गांवों में अभी भी लोग सामुदायिक जीवन जीते हैं, वहीँ दूसरी ओर बड़े शहरों में लोग अक्सर एकाकी जीवन जीने पर ही मज़बूर रहते हैं। मित्रों का मिलना जुलना, फुर्सत से बैठकर गप्पें मारते हुए हँसना हँसाना, आम आदमी के जीवन में बहुत कम रह गया है। हँसने का हमारे तन और मन पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हँसने से न केवल हमारे शरीर के हर अंग की कसरत होती है, बल्की मस्तिष्क में भी कुछ लाभदायक रसायनों का श्राव होता है जो हमारे स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव डालते हैं। इसलिए नियमित रूप से हँसना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी है।   

हँसना हँसाना हमारी मानसिक परिस्थिति और सोच पर बहुत निर्भर करता है। एक हास्य कवि की दृष्टि से देखें तो हास्य महज़ एक कवि की कल्पना ही नहीं होती। यदि आप अपने आस पास घटित होने वाली घटनाओं को ध्यान से देखें और उन पर शांत और प्रसन्नचित भाव से विचार करें तो हर प्रतिकूल घटना या स्थिति से हास्य निकल सकता है। हास्य भी दो प्रकार का होता है। एक जो विशुद्ध या कोरा हास्य, जिसे सुनकर या पढ़कर हँसी तो खूब आती है लेकिन उसमें काम की कोई बात नहीं होती।  हालाँकि हँसने के लिए यह भी पर्याप्त होता है, तथापि यदि हास्य के साथ साथ कोई सामाजिक और उपयोगी संदेश भी श्रोताओं या पाठकों तक पहुँच सके, तो यह सोने पर सुहागा जैसा होता है। इसलिए हास्य कविताओं में हास्य के साथ मर्म की बात भी कह जाना एक कवि का विशेष कर्तव्य होता है।                                             

इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर प्रस्तुत है हास्य व्यंग कविताओं पर आधारित हमारी प्रथम पुस्तक। इस पुस्तक का शीर्षक है - "हँसलोपैथी हँसो हँसाओ, सेहत बनाओ"  इस पुस्तक में हास्य व्यंग की ७१ रचनाएँ हैं जो वास्तविक जीवन से जुड़ी छोटी छोटी घटनाओं को हास्य के रूप में दर्शाती हैं।  इन्हे पढ़कर निश्चित ही आपको आनंद आएगा। यह पुस्तक अमेज़ॉन पर आसानी से उपलब्ध है।      

3 comments:

  1. सार्थक लेख । पुस्तक के लिए बधाई ।।

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  2. बिलकुल सही कहें आप, शहरी लोग हँसना भूल गये, उल्टा हर बात पर उलझने को उतावले रहते हैं.

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