आँखों देखी :
लगभग ५-६ महीने बाद एयरपोर्ट जाना हुआ। जिस रास्तों से आना जाना हुआ , उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था , मानो वर्षों बाद वहां से गुजरे हों। सब कुछ जैसे नया नया सा लग रहा था। दूसरी ओर ऐसा भी लग रहा था जैसे कुछ नहीं बदला, सब वैसा का वैसा ही है। ऐसा अहसास हो रहा था कि ये दुनिया यूँ ही चलती रहती है, भले ही आप हों या ना हों।
यमुना पार कर बारापुला पर पहुंचे तो ऐसा लगा कि पुल पर नई लाइट्स लगाई गईं हैं। फिर सोचा तो पाया कि लाइट्स तो पहले भी थीं। और ध्यान से देखा तो यह निश्चित भी हो गया क्योंकि पोल पुराने ही दिख रहे थे। लेकिन यह नए पुराने का अहसास हैरान सा कर रहा था। एयरपोर्ट के पास पहुंचे तो ऐरोसिटी को लगभग उजाड़ सा वीरान सा पाया। कभी होटल्स का ये जमघट बड़ा वाइब्रेंट लगता था। लेकिन अब शायद वहां यात्री नहीं , कोविड के रोगी रहते हैं, क्वरेन्टीन पूरा करने के लिए। ऐरोसिटी के आगे एयरपोर्ट तक का रास्ता पहले से कहीं ज्यादा हरा भरा और सुन्दर नज़र आया। हालाँकि एयरपोर्ट पर अब उतनी भीड़ नज़र नहीं आई जितनी अक्सर हुआ करती थी।
वापसी पर चाणक्य पुरी स्थित कमला नेहरू पार्क जो अक्सर युवाओं और प्रेमी युगलों से भरा रहता था, बिलकुल खाली पड़ा था। बाहर से खूबसूरत तो उतना ही दिखा लेकिन सोचने पर मज़बूर हो गए कि क्या पार्क में अब लोगों की जगह वायरस विचरण करता है। नेहरू पार्क के एक छोर पर दिल्ली का सबसे पुराना और जाना पहचाना अशोक होटल बाहर से बड़ा उदासीन सा लग रहा था। पार्किंग में इक्की दुक्की गाड़ियां ही खड़ी थीं। लेकिन इसके तुरंत बाद रेसकोर्स रोड़ पर हरियाली मानो कई गुना बढ़ गई थी। प्रधान मंत्री निवास से लेकर अगली रैड लाइट तक इतनी घनी हरियाली देखकर अचंभित सा होना पड़ा।
यदि दिल्ली का इतिहास देखें तो नई दिल्ली जो स्वतंत्र भारत की राजधानी बनी, का निर्माण १९१९ में आरम्भ हुआ और १९३१ में पूर्ण हुआ। नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन, और आस पास के सरकारी भवन, संसद भवन, इंडिया गेट, और सम्पूर्ण अति विशिष्ठ आवासीय क्षेत्र जिसमे चाणक्य पुरी स्थित एम्बेसीज भी शामिल हैं, एक अति आधुनिक, हरा भरा और स्वच्छ आवासीय एवं कार्यकारी क्षेत्र बना। इस क्षेत्र में देश के सभी सांसद , ज़ज़ , आई ऐ एस अफ़सर और अन्य अति विशिष्ठ व्यक्ति रहते हैं। इसलिए कोई हैरानी नहीं कि यह क्षेत्र बहुत ही सुन्दर, स्वच्छ और हरियाली युक्त है।
आज सम्पूर्ण वी आई पी क्षेत्र बहुत ही हरा भरा नज़र आ रहा था। सावन भादों की बरसात में धुले लगभग १०० साल पुराने पेड़, जगह जगह बनाये गए गोलाकार पार्क, वी आई पी बंगलों के बाहर लगे पेड़ पौधे इंसानों की गतिविधियां कम होने के कारण जैसे अपने पूरे यौवन पर थे। सुन्दर तो पहले भी रहा लेकिन यह क्षेत्र इतना खूबसूरत जैसे पहले कभी नहीं लगा। आखिर कर इंडिया गेट पहुंचे तो इंडिया गेट के चारों ओर पुलिस के बैरिकेड देखकर अवश्य मायूसी सी हुई क्योंकि उसे पार कर इंडिया गेट के पास जाना और नव निर्मित शहीद स्मारक देख पाना अब असंभव हो गया है। इंडिया गेट के लॉन्स में भी घास की कटाई न होने के कारण यह कोरोना के कष्टदायक काल की जैसे कहानी सुना रहा था।
इंडिया गेट के सर्कल से आई टी ओ जाने वाले तिलक मार्ग पर स्थित उच्चतम न्यायालय के सामने सड़क ना जाने किस विधि से बनाई गई है कि इस एक किलोमीटर लम्बे रास्ते पर टायरों से ऐसी आवाज़ आती है जैसे कार नहीं बल्कि टैंक चल रहा हो। आई टी ओ का चौराहा शायद सबसे बड़ा चौराहा है। इसीलिए यहाँ पैदल लोगों के लिए एक स्काईवॉक बनाई गई है। हालाँकि इस डेढ़ किलोमीटर लम्बी जिग जैग वाक पर जाता हुआ नज़र कोई नहीं आता। लेकिन बड़ा मन है कि कभी बस यूँ ही इस पर चढ़कर पैदल यात्रा की जाये और आस पास का नज़ारा देखा जाये। आई टी ओ चौराहे पर एक बच्चा पन्नी में लपेट कर गुलाब के फूल बेच रहा था। मैले कुचैले बालक से जाने कौन गुलाब खरीदता होगा। सामने ही फुटपाथ पर बैठी उसकी मां एक और नन्हे मुन्ने को गोद में खिला रही थी। पास ही उसका पिता खड़ा था, पतला दुबला लेकिन डिजाइनर बालों वाला, अपने मोबाइल पर कुछ कुछ करता हुआ। बस भिखारी के हाथ में ही मोबाइल देखना बाकि रह गया था, वह तमन्ना भी अब पूरी हो गई।
कोरोना पेंडेमिक के कारण लगभग ठप्प हुई जिंदगी में जैसे सभी विकास कार्य भी ठप्प हो गए। बस जैसे तैसे जिंदगियां चली जा रही हैं। ज़ाहिर है, यदि जिन्दा रहे तो कार्य भी फिर आरम्भ होंगे और विकास कार्य भी। अभी कब तक ऐसा चलेगा, कोई नहीं जानता। लेकिन यह सच है कि कोरोना वायरस ने लोगों को घुटनों पर ला दिया है। प्रकृति के सामने मनुष्य बहुत छोटा होता है लेकिन यह लोगों को समझ में अब आने लगा है। या शायद अब भी नहीं।