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Saturday, March 16, 2019

मुक्तक --



कभी सर्जिकल स्ट्राइक को फ़र्ज़ी बता रहे हैं,
पत्थरबाजों की पिटाई पर आंसू बहा रहे हैं।
स्विस बैंकों में अरबों रखने वाले पूछ रहे हैं ,
बताओ खाते में पंद्रह लाख कब आ रहे हैं। 

जंग जीतने को जंगल के सब जीव मिल जाते हैं,
लेकिन शेर को देख सबके होंठ सिल जाते हैं ।
जिनकी फितरत है जितना चाहें उछालें कीचड़
आखिर कमल तो कीचड़ में भी खिल जाते हैं ।


जो मांग रहे हैं आतंकवादियों की मौत के सबूत,
खुद जाकर देख लें अड्डों की तबाही के सबूत ।
फिर भी ग़र शक है अपनी सैनिक कार्रवाई पे ,
जहन्नुम में तो मिल ही जायेंगे ७२ हूरों संग कपूत। 

पानी रोकोगे तो हम हिमालय तोड़ देंगे,
टमाटर रोकोगे तो एटम बम छोड़ देंगे।
हमसे तौबा तौबा करो ऐ हिन्दुस्तानियो,
वरना आतंकी हमारा ही सर फोड़ देंगे। 

6 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व नींद दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. बहुत सटीक समय पर चौका मारा है ...
    मज़ा आ गया पढ़ के ...

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