पहले हमने सोचा कि ये फिल्म पहले ही बहुत कमा चुकी है, इसलिए क्या फर्क पड़ता है ! फिर ना ना करते देख ही ली। हालाँकि देखकर अच्छा भी लगा और कुछ बुरा भी। फिल्म के पहले भाग में संजय दत्त की जिंदगी की डार्क साइड दिखाई गई है जिसे देखकर बहुत दुःख होता है कि किस तरह अच्छे घरों और बड़े मां बाप के बेटे बिगड़ जाते हैं। हालाँकि इसमें अक्सर उनका कोई कसूर नहीं होता। लेकिन दूसरे भाग में बेटे का पिता के प्रति प्यार और मान सम्मान देखकर अच्छा लगा ( यदि कहानी में सत्य पर ध्यान दिया गया है तो निश्चित ही यह सराहनीय है।) जेल के दृश्य वास्तव में विचलित करते हैं। संजय दत्त को विदेश में फटेहाल भीख मांगते देखकर बहुत अफ़सोस हुआ।
लेकिन फिल्म में रणबीर कपूर का अभिनय और मेकअप दोनों ही गज़ब के हैं। दोनों का कद लगभग एक जैसा होने और चेहरे में समानता होने से और आवाज़ को भी मिला देने से बहुत बढ़िया इफेक्ट आया है। साथ ही फिल्म में दोस्त की भूमिका में विक्की कौशल का सहनायक के रूप में रोल भी बहुत जमा और हास्य का पुट आया जिसने फिल्म को बोझिल होने से बचा लिया। फिल्म में दसियों जाने माने कलाकार हैं जिनमे सभी का रोल बढ़िया रहा।
कुल मिलाकर यही महसूस हुआ कि सुनील दत्त जैसी जेंटलमेन व्यक्ति के लिए कितना मुश्किल हुआ होगा परिस्थितियों से जूझना, जब एक ओर पत्नी कैंसर से लड़ रही थी, और दूसरी ओर इकलौता बेटा बर्बादी की राह पर जा रहा था। किसी भी बाप के लिए इससे ज्यादा कष्टदायक और कुछ नहीं हो सकता। निश्चित ही औलाद का ग़म ऐसा ही होता है।
लेकिन फिल्म में रणबीर कपूर का अभिनय और मेकअप दोनों ही गज़ब के हैं। दोनों का कद लगभग एक जैसा होने और चेहरे में समानता होने से और आवाज़ को भी मिला देने से बहुत बढ़िया इफेक्ट आया है। साथ ही फिल्म में दोस्त की भूमिका में विक्की कौशल का सहनायक के रूप में रोल भी बहुत जमा और हास्य का पुट आया जिसने फिल्म को बोझिल होने से बचा लिया। फिल्म में दसियों जाने माने कलाकार हैं जिनमे सभी का रोल बढ़िया रहा।
कुल मिलाकर यही महसूस हुआ कि सुनील दत्त जैसी जेंटलमेन व्यक्ति के लिए कितना मुश्किल हुआ होगा परिस्थितियों से जूझना, जब एक ओर पत्नी कैंसर से लड़ रही थी, और दूसरी ओर इकलौता बेटा बर्बादी की राह पर जा रहा था। किसी भी बाप के लिए इससे ज्यादा कष्टदायक और कुछ नहीं हो सकता। निश्चित ही औलाद का ग़म ऐसा ही होता है।
लगता है फिल्म देखनी पड़ेगी :)
ReplyDelete