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Tuesday, April 3, 2018

हमारे रंग देख कर तो गिरगिट क्या नेता भी जलते हैं --




एक हास्य कवि ने चुनाव में नामांकरण पत्र भर दिया,
एक पत्रकार ने मंच पर ही कवि जी को धर लिया।

बोला, ज़नाब आप तो कवि हैं, फिर आप जनता को क्या दे पाएंगे !
कवि बोला, हम हंसा हंसा कर देश को एक स्वस्थ भारत बनाएंगे।

पत्रकार ने पूछा, अच्छा एक बात बतलायेंगे ,
क्या आप विरोधी पक्ष के लोगों को भी हंसाएंगे !

कवि बोला भैया, कवियों का कोई पक्ष विपक्ष होता है।
हमारा तो बस जनता को हंसाने का ही लक्ष होता है।

श्रोताओं का मन भांप कर बनाते हैं सुनाने का मन ,
और कितना सुनाना है, ये तय करता है लिफाफे का वज़न।

भक्तों की भीड़ देखी तो मोदी का गुणगान कर दिया ,
विरोधियों के जलसे में जुमलों का व्याख्यान कर दिया।

बसपा ने बुलाया तो मायावती को बहन बना लिया ,
किया ग़र मुशायरा तो ग़ालिब को चचा बता दिया।

हम कवि भी हवा का रुख देखकर ही रंग बदलते हैं ,
हमारे रंग देख कर तो गिरगिट क्या नेता भी जलते हैं।

बस एक बार चुनाव जीत जाऊं तो मंत्री भी बन जाऊँगा ,
फिर सभी हास्य कवियों को उनके अधिकार दिलवाऊंगा। 

अरे मंच पर सारी तालियां तो ओज के कवि बटोर ले जाते हैं ,
एक ही पंक्ति को दस बार दोहराकर शायर वाह वाह करवाते हैं।  

हास्य कवि सम्मलेन में भी पाकिस्तान की धज्जियाँ उड़ाते हैं ,
और हास्य कवियों को बस ऐसा वैसा चुटकलेबाज बतलाते हैं। 

कभी किसी को चुटकले पर आशीर्वाद मांगते देखा है,
या हास्य कवि को ठहाकों की फरियाद करते देखा है

माना कि हास्य कवि नहीं कोई साहित्यकार होते हैं ,
लेकिन वे भी देश और समाज सेवा के ठेकेदार होते हैं। 

क्योंकि जब लोग हँसते हैं तो अपना तनाव हटाते हैं ,
जो लोग हंसाते हैं , वे दूसरों के तनाव भगाते हैं। 
हँसाना भी एक परोपकारी काम है दुनिया में। 
इसलिए हम तो सदा हंसी की ही दवा पिलाते हैं। 



1 comment:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन पंडित माखनलाल चतुर्वेदी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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