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Thursday, August 24, 2017

पर्दा प्रथा, महिलाओं पर एक अत्याचार ---


आदि मानव से लेकर आधुनिक समय तक मनुष्य समाज सदा पुरुष प्रधान ही रहा है।  विश्व भर में महिलाएं समान अधिकार और शोषण के मामले में सदैव पीड़ित रही हैं।  लेकिन जहाँ विकसित देशों में स्थिति में काफी सुधार आया है , वहीँ हमारे देश में अभी भी महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा उपेक्षित ही रही हैं। इसका एक ज्वलंत उदाहरण है पर्दा प्रथा। जहाँ मुस्लिम समाज में महिलाओं को नकाब में रहना पड़ता है , वहीँ देश के एक बड़े भाग में हिन्दु महिलाओं को पर्दे में रहना पड़ता है। मूलतया यह उत्तर भारत में देखने को मिलता है , विशेषकर राजस्थान , हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में।

इनमे सबसे ज्यादा ख़राब स्थिति हरियाणा की लगती है। वहां आज भी गांवों में रहने वाली महिलाएं बिना घूंघट किये घर से बाहर नहीं निकल पाती।  घर में भी बड़े बूढ़ों के सामने उन्हें घूंघट करना पड़ता है। घर के सारे कामों से लेकर खेत खलियान और पशुओं की देखभाल तक महिलाओं को ही करनी पड़ती है। उस पर मूंह खोलकर सांस भी न ले पाना , एक तरह से महिलाओं पर एक तरह का अत्यचार ही है।

उत्तर भारत में पर्दा करने की प्रथा मूल रूप से मुग़लों के राज में आरम्भ हुई थी जो अंग्रेज़ों के ज़माने तक चलती रही।  इसका कारण था मुग़ल राजाओं और सैनिकों से महिलाओं की सुरक्षा। बताया जाता है कि जब भी कोई मुग़ल राजा किसी क्षेत्र से गुजरता था , तो वो रास्ते में आने वाले गांवों के खेतों में काम करती हुई महिलाओं और लड़कियों में से सुन्दर दिखने वाली महिलाओं को जबरन उठा ले जाते थे। सेना के आगे निरीह गांव वाले लाचार और असहाय महसूस करते और कुछ भी नहीं कर पाते थे। इस अत्याचार से बचने के लिए महिलाओं को पर्दा करने की रिवाज़ पैदा हुई।

लेकिन अब जब देश को स्वतंत्र हुए ७० वर्ष हो चुके हैं , तब भी पर्दा प्रथा का कायम रहना कहीं न कहीं विकास की कमी को ही दर्शाता है। हालाँकि आज का शिक्षित युवा वर्ग इस प्रथा से उबर कर बाहर आ रहा है , लेकिन पुरानी पीढ़ी की औरतें और अशिक्षित , गरीब परिवारों की ग्रामीण महिलाएं अभी भी इस कुप्रथा की शिकार हैं।  ज़ाहिर है , इस से बाहर निकलने के लिए शिक्षा और जागरूकता की अत्यंत आवश्यकता है।  समाज की सोच और रवैये को बदलना होगा , तभी देश में महिलाएं सुख चैन की साँस ले पाएंगी और पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर देश के विकास में योगदान दे पाएंगी।               

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (25-08-2017) को "पुनः नया अध्याय" (चर्चा अंक 2707) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ऋषिकेश मुखर्जी और मुकेश - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  3. महिला संगठनों को इस अमानवीय प्रथा के खिलाफ आगे आना होगा

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