एक डॉक्टर का करवा चौथ :
कल चौथ का चाँद था और पार्क में,
खूबसूरती का हुजूम था लगा हुआ ।
खूबसूरती का हुजूम था लगा हुआ ।
कंगन , चूड़ा , पायल , झुमके , हार ,
नई साड़ियों का रंग था बिखरा हुआ।
नई साड़ियों का रंग था बिखरा हुआ।
जिंदगी में ३६४ दिन थे सास के पर ,
कल बहुओं का रूप था निखरा हुआ।
कल बहुओं का रूप था निखरा हुआ।
वो तो करती रही प्रसूति सेवा दिन भर ,
जहाँ नन्हे जीवन से रिश्ता गहरा हुआ।
उसने भी देखा और दिखाया व्रताओं को ,
चाँद जब आसमाँ में छत पर उभरा हुआ।
कल फिर हमने उनकी ओर देखा सीधा ,
बिन छलनी के प्यार फिर सुनहरा हुआ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (01-11-2015) को "ज़िन्दगी दुश्वार लेकिन प्यार कर" (चर्चा अंक-2147) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार।
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, डे लाईट सेविंग - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआभार।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना।
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