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Monday, December 30, 2013

नांगलोई में काव्य गोष्ठी और एडवेंचर मेट्रो ट्रेल -- एक सफ़र की दास्ताँ !


तीन  साल से घटनाक्रम कुछ यूँ चलते रहे कि सभी साहित्यिक गतिविधियां लगभग बन्द सी हो गई थीं। इसलिए  जब राजीव तनेजा का काव्य गोष्ठी के लिये निमंत्रण आया तो हमने जाने का निर्णय ले लिया। लेकिन समस्या थी कि जाया कैसे जाये। दिल्ली के पूर्वी छोर से पश्चिमी छोर का रास्ता बहुत लम्बा था। लेकिन हमने जन्म लिया था दिल्ली के पश्चिमी बॉर्डर पर स्थित एक गाँव मे और अब काम करते हैं पूर्वी बॉर्डर पर। पश्चिम से पूर्व का यह सफ़र बहुत लम्बा और कठिन था। लेकिन अब पूर्व से पश्चिम का यह सफ़र भी कम कठिन नहीं लग रहा था क्योंकि इतनी दूर ड्राईव करना कोई समझदारी का काम नहीं था। हालांकि मेट्रो ठीक गोष्ठी स्थल तक जाती है लेकिन हम तो मेट्रो मे बस एक ही रूट मे बैठे थे। और यहाँ तो एक या दो बार मेट्रो बदलना आवश्यक था। मेट्रो से सफ़र का ख्याल आते ही हमे चचा ग़ालिब का एक शे'र याद आ गया जिसे हमने कुछ यूं लिखा : 

अफ़सरी ने 'तारीफ' निकम्मा कर दिया , 
वरना आदमी तो हम भी थे 'आम' से !  

खैर , हम तैयार हुए लेकिन तभी ख्याल आया कि ऐसे मे बच्चे अक्सर हमे कहते हैं कि ये क्या बुड्ढों वाले कपड़े पहन लिये हैं। इसलिये कोट और टाई निकाल कर लाल स्वेटर पहना , पावं मे स्पोर्ट शूज़ पहन लिये और सोचा अब देखते हैं कौन हमे बुड्ढा कहता है। फिर हमने श्रीमती जी से हमे मेट्रो स्टेशन तक छोड़ने का आग्रह किया लेकिन जल्दबाज़ी मे मोबाइल गाड़ी मे ही भूल गए। मोबाइल आने के बाद पहली बार ऐसा हुआ कि हम बिना मोबाइल के दूर के सफ़र पर निकल पड़े। हमने भी इसे एक एडवेंचर के रूप मे स्वीकार किया और निकल पड़े नांगलोई की ओर।   

हालाँकि इतवार का दिन था लेकिन मेट्रो खचाखच भरी हुई थी।  हमने किसी तरह से गेट के पास जगह बनाई और एक हेंडल पकड़ कर खड़े हो गए।  फिर सोचा गेट के पास तो सीट मिलने से रही। इसलिए थोडा बीच में खड़े हो गए।  तभी सामने वाली सीट पर बैठा एक युवक खड़ा हो गया और हम लपक कर बैठ गए।  फिर सोचा कि वह युवक खड़ा क्यों हो गया क्योंकि अभी तो स्टेशन भी नहीं आया था।  तभी हमारा ध्यान ऊपर की ओर गया तो पता चला वहाँ लिखा था -- केवल बुजुर्गों के लिए। इस आत्मबोध से हम हतप्रद रह गए।  

नांगलोई पहुंचकर स्टेशन के सामने ही था खम्बा नंबर ४२० जिसके ठीक सामने तनेजा जी का ऑफिस था जिसके प्रथम तल पर आयोजन था इस संगोष्ठी का।       



खुली छत को ओपन एयर रेस्ट्रां बनाया गया था।




अंदर कार्यक्रम का आरम्भ किया राजीव तनेजा जी ने।




सभापति और विशिष्ठ अतिथि आ चुके थे लेकिन मुख्य अतिथि यानि हमारी कुर्सी अभी खाली थी। कार्यक्रम का सञ्चालन वंदना गुप्ता जी कर रही थी।    



इस संगोष्ठी की एक विशेष बात यह रही कि इसमें पचास से ज्यादा लोगों ने भाग लिया।  ये सभी दिल्ली के चारों कोनो से आए थे और कुछ तो दिल्ली से बाहर से भी आए थे।  




दूसरी विशेषता यह थी कि लगभग आधे से ज्यादा उपस्थिति महिलाओं की थी जो वास्तव में प्रसंशनीय था।




मुन्ना भाई अविनाश वाचस्पति ने अपनी व्यंग प्रस्तुति से लोगों को गुदगुदाया।



युवा कवि और ब्लॉगर सुलभ जयसवाल। लेकिन यह मत समझिये कि ये माइक हाथ में लेकर कोई डांस कर रहे हैं ! फिर क्या कर रहे हैं ?




वंदना जी ने भी अपने चिर परिचित अंदाज़ में अपनी एक रचना पढ़कर सुनाई जिसे सभी ने बड़ी गम्भीरता से सुना ।





अंत में हमें भी कहा गया कि कुछ हम भी सुनाएँ।  हमने क्या सुनाया , यह तो सुनने वालों ने सुन ही लिया , अब क्या बताएं।  लेकिन सुना है कि सबको आनंद आया।

अंत में चायपान और पकोड़ा पार्टी के बाद हमने प्रस्थान किया फिर एक बार मेट्रो में खड़े होकर।  इस बार भीड़ पहले से भी ज्यादा थी , हालाँकि थोड़ी देर बाद बिना बुजुर्गी का अहसास दिलाये सीट भी मिल गई। अब हम बैठे बैठे देखते रहे कि कैसे मेट्रो में सफ़र करने वाले लगभग ९० % लोगों की आयु ४० वर्ष से कम थी और ५० के ऊपर तो शायद ५ % लोग भी नहीं थे।  ज़ाहिर था , युवाओं का ज़माना है और युवा इसका भरपूर इस्तेमाल भी कर रहे थे।  सामने वाली सीट पर एक सुन्दर सी मासूम सी १८ -२० साल की लड़की बैठी थी और उसका बॉय फ्रेंड उसके सामने खड़ा था।  दोनों इसी दशा में भी जिस तरह खुसर पुसर और भौतिकीय घटनाओं का प्रदर्शन कर रहे थे , उसे देखकर साथ बैठे एक महाशय ने अपनी आँखें बंद कर ली थी।  लेकिन और किसी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।  खुल्लम खुल्ला ऐसा पी डी ऐ देखकर हमें अपने जल्दी जवान होने पर गुस्सा सा आने लगा था।

उधर एक दूसरी सीट पर एक और १८ -२० वर्षीया मुस्लिम युवति , गोरी चिट्टी , सुन्दर सी लेकिन चेहरे पर मासूमियत लिए अपने एक साल के बच्चे के साथ बतियाती जा रही थी और अपनी स्नेहमयी ममता लुटाती जा रही थी।  आजकल बच्चे भी पैदा होते ही चंट हो जाते हैं।  ज़ाहिर है , विकास का अहसास उन्हें भी हो ही जाता है।  भले ही मेट्रो में हमें सभी आम आदमी ही नज़र आए लेकिन विकास का प्रभाव सभी पर साफ नज़र आ रहा था।  हालाँकि यह विकास सिर्फ शहरों में ही दिखाई देता है।  अभी भी देश का एक बहुत बड़ा हिस्सा बाकि बचा है जहाँ पीने का पानी लाने के लिए भी महिलाओं को मीलों सफ़र तय करना पड़ता है।


नोट : इस संगोष्ठी में सभी कवियों और कवयत्रियों ने बहुत सुन्दर रचनाएं सुनाई।  एक सफल आयोजन के लिए राजीव तनेजा जी को बहुत बहुत बधाई। अंजू चौधरी , सुनीता शानू जी , रतन सिंह शेखावत , पी के शर्मा जी समेत अनेक ब्लॉगर्स और फेसबुक मित्रों से मिलना सुखद रहा।   





20 comments:

  1. सच में एक सफल आयोजन था .....

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  2. एडवेंचर यात्रा मुबारक हो .........

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  3. ह्म्म यही एडवेंचर यात्रा थी :) 15 फ़रवरी के बाद कोई कार्यक्रम हो तो हम उपलब्ध हो सकते हैं :)

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  4. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन सफ़ेद भेड़ - काली भेड़ - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  5. बधाई मेट्रो सफ़र के लिए ! नए साल की बधाई बोनस में :)

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    1. आप तो रोज ही करते होंगे ! :)

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  6. यह रिपोर्ट अच्छे आयोजन की सूचना देती है और चित्र भी सफलता का सन्देश दे रहे हैं.

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  7. सार्थक प्रस्तुति .आपको नव वर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएं .

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  8. सुन्दर प्रस्तुति !
    नया वर्ष २०१४ मंगलमय हो |सुख ,शांति ,स्वास्थ्यकर हो |कल्याणकारी हो |
    नई पोस्ट नया वर्ष !
    नई पोस्ट मिशन मून

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  9. बधाई आपको , नया वर्ष मंगलमय हो भाई जी !!

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  10. बधाई, नया वर्ष मंगलमय हो

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  11. अच्छी लगी आपकी रिपोर्ट ... काव्य गोष्ठी की कुछ रचनाएं भी पढवा देते लगे हाथ ...
    नव वर्ष आपको और परिवार में सभी को मंगल मय हो ...

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    1. याह काम तो तनेजा ही कर सकते हैं .

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  12. मनोरम सफ़र रहा और निश्चित ही उम्र की रफ़्तार भी कम हुयी होगी -मंगलमय नववर्ष!

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    1. उम्र से ज्यादा आम आदमी के बीच मे सफर करने का अनुभव दिलचस्प रहा !

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  13. रोचक चित्रमय सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  14. मेट्रो के सफ़र का लुत्फ़ खूब लिया आपने , शायद छह माह के भीतर जयपुर में भी सुलभ हो जाये ! बुजुर्गों की खाली सीट भी कई बार मुंह चिढ़ाती है :)
    नव वर्ष की बहुत शुभकामनायें !

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  15. बहुत ही बढ़िया रहा मेट्रो का सफ़र --और साथ ही काब्य गोष्ठी भी---

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