अक्सर सुनने में आता है -- लोग क्या कहेंगे। इसी कहने के डर से लोग कुछ करने में डरते हैं। लेकिन लगता है कि यह कहने की बात पुऱाने ज़माने में होती थी। अब कुछ कहने वाले बचे ही कहाँ हैं। आधुनिकता की दौड़ में लोगों को सोचने की ही फुर्सत नहीं है , फिर कुछ कहने के लिए समय कहाँ से आएगा।
हमारे पड़ोस में एक सरदारजी रहते हैं। सरदार सरदारनी दोनों बड़े सोहणे और हंसमुख हैं। सरदारनी तो लोगों के बीच ही हंसती मुस्कराती है लेकिन अक्सर सुबह या शाम को सैर करते समय हमने पाया कि सरदारजी सैर करते करते मुस्कराते रहते हैं और होठों ही होठों में कुछ बुदबुदाते रहते हैं। हम सोचते थे कि शायद ओशो के भक्त होंगे , इसलिए वॉक के साथ साथ मेडिटेशन करते होंगे ! या फिर मन ही मन गुरबाणी का पाठ करते होंगे। फिर एक दिन पाया कि पास से गुजरते हुए अब वो इतने जोर से गाने लगे थे कि सुनायी पड़ने लगा था कि वो क्या गा रहे हैं। दरअसल वो गुरबाणी नहीं बल्कि ग़ज़ल गुनगुना रहे थे। उन्हें यूँ ग़ज़ल गाते गाते घूमते हुए देखकर उनके मनमौजी होने का अहसास होता था।
लेकिन अभी कुछ दिनों से उन्हें अपने पप्पी के साथ सुबह सुबह सोसायटी के पार्क में बेंच पर बैठकर जोर जोर से गाते हुए सुनकर बड़ा अचम्भा हुआ। पार्क से आती आवाज़ दो ब्लॉक्स के बीच गूंजती है। इसलिए और भी जोर से सुनाई देती है। उन्हें यूँ गाते देखकर एक बार तो लगा कि लोग क्या सोचेंगे , क्या कहेंगे। लेकिन सच में न तो कोई कुछ सोचता है , न कोई कुछ कहता है।
हालाँकि ऐसे व्यक्ति को लोग या तो सनकी कहते हैं , या थोड़ा खिसका हुआ। लेकिन देखा जाये तो आज किस के पास समय है कि वो किसी दूसरे के बारे में सोचे जबकि स्वयं अपने ही बारे में सोचने से फुर्सत नहीं मिलती।
शायद यह अपने मन का भ्रम ही है कि हम सोचते हैं कि लोग क्या कहेंगे ! आजकल लोग न कुछ कहते हैं , न सोचते हैं।
काफी हद तक सही है......फिर भी लोग सोचते और कहते तो हैं...जैसे आपने भी उनको नोटिस किया...सोचा और कहा भी.....हाँ अब लोग आलोचना नहीं करते.उदार हो गयी सोच.....
ReplyDeleteits my life !! वाली तर्ज़ पर चलते हैं.
फिर गाने गुनगुनाने पर किसको बुरा लग सकता है (हमारे पड़ोस के घर में खाना बनाने वाली बाई full वॉल्यूम में गाना गाती रोटियां बेलती हैं...सच्ची ,वे लोग कुछ कहते भी नहीं...हमने उसका नाम नूरजहाँ रखा है :-)
सादर
अनु
जी, सोचते तो होंगे लेकिन कहते नहीं.
Deleteसमय भी नहीं,और आम धारणा हो गई है कि दुसरे के मामले में मत पड़ो ....
ReplyDeleteलेकिन आलोचना से खुद को परे नहीं कर पाते लोग,वो भी अनुमानित सोच से … तभी ये लोग' बातों के मध्य आ जाते हैं
@ उन्हें यूँ गाते देखकर एक बार तो लगा कि लोग क्या सोचेंगे , क्या कहेंगे। लेकिन सच में न तो कोई कुछ सोचता है , न कोई कुछ कहता है। हालाँकि ऐसे व्यक्ति को लोग या तो सनकी कहते हैं
ReplyDeleteएक मिनट के लिए ही सही आप ने कुछ तो सोचा न और न केवला सोचा बल्कि इतना विचार भी किया की एक एक पोस्ट लिख दी , सम्भव है की बिना किसी दुर्भावना के किसी अन्य से कहा भी हो अब वो अपनी तरह से दो जोड़ कर किसी और से कह देगा घूम कर जब सरदारनी जी के कान में जायेगी तो उन्हें बुरा लगेगा और वो फिर सरदार जी से कहेंगी की क्यों गाते हो लोग क्या क्या कहते है तुम्हारे बारे में :)
ऐसा ही होता है , कई बार हमें लगता है कि हमने तो ज्यादा कुछ कहा ही नहीं बस एक बात भर कही थी किन्तु दस मुंह से होते जब वही बाते आगे बढती है तो कुछ का कुछ हो जाता है , लोगो की अपनी समझ उन बातो में जुड़ती जाती है ।
जी हाँ , सोचा तो बहुत . यह भी सोचा कि क्या यह सामान्य बात है या वास्तव मे कुछ गड़बड़ है क्योंकि आम तौर पर इतना बिंदास कोई नहीं होता . शायद शर्म के मारे ही लोग यूं सरे आम गाना नहीं गाते .
Deleteमस्त है सरदार , बधाई दीजिये उन्हें बेबाक और मस्त रहने के लिए !
ReplyDeleteभीड़ में अकेले हैं
ReplyDelete:)
Deleteऐसे लोगों की जिंदगी ही मस्ती से गुजरती है. दुनियां की फ़िक्र पालकर आज तक कोई जी पाया है भला?
ReplyDeleteरामराम.
मस्त तो हैं सरदारजी . यह तो निश्चित है .
Deleteसही कहा आपने 'लोग क्या कहेंगें' यह एक भ्रम ही है ...अपने से फुर्सत मिले तो सोचे भी कोई ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ..अपने मन में भी ऐसे विचार आते हैं .....
डॉ.साहब ,
ReplyDeleteदुनियां में सब से बड़ा रोग .
क्या कहेंगें लोग .............?
मस्त राम बन के जिन्दगी के दिन गुज़ार दे .........कुछ तो कहेंगे लोग ...क्यों ?
सही कहा अशोक जी . कहते हैं हाथी जब अपनी मस्त चाल से चलता है तो किसी की परवाह नहीं करता !
Deleteab yahi ho raha hai
ReplyDeleteलोगों का सोचना , कहना कम तो हुआ है. पर अब भी है तो सही ... बेशक मुंह पर न बोलें पर पीछे से तो बोलते ही हैं :).
ReplyDeleteदेश के विभिन्न पार्क , सार्वजानिक स्थल चीख चीख कर घोषणा करते हैं कि अब कोई कुछ नहीं सोचता !
ReplyDeleteमगर सरदारजी का मामला और है , गुनगुनाने दीजिये !
हा हा हा !
Deleteअपनी मस्ती में जो मन में है वो करना चाहिए ... किसी के कहने से फर्क भी नहीं पढ़ना चाहिए ... हां दूसरे को नुकसान न हो ये देख लेना चाहिए ...
ReplyDeleteकुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना ....!
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नई पोस्ट-: चुनाव आया...
चाहे जीतने मोर्डन क्यूँ न हो जायें हम मगर यह लोग क्या कहेंगे का डर कभी पूरी तरह मन से जा नहीं सकता। लोग भी कहे बिना रह नहीं सकते हैं। हाँ यह बात अलग है कि कोई किसी के सामने कुछ नहीं कहता, लेकिन पीछे से तो बोलते ही है।
ReplyDeleteयह भी अच्छा है कि कोई सामने कुछ नहीं कहता . लेकिन लोगों के कहने से नहीं डरना चाहिये .
Deleteसब अपने में ही व्यस्त हैं, न कोई कुछ सोचता है, न कोई कुछ कहता है।
ReplyDeleteHAM APANI MAULIKATA ME RAHEN TO KYA BURA HAI .... WAISE BHI LOGO KA KAAM HAI KAHANA
ReplyDeletelogo ke paas time nahi hain.
ReplyDeleteisiliye kai tareh ki dikkaten, pareshaaniyaan aane lagi hain.
samaaj mein badhte apraadh kaa ek kaaran ye bhi hain.
thanks.
CHANDER KUMAR SONI
WWW.CHANDERKSONI.COM
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (04-12-2013) को कर लो पुनर्विचार, पुलिस नित मुंह की खाये- चर्चा मंच 1451
पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
लेकिन सरदारजी अपनी मन की मौज को पूरा कर रहे थे, इसका आपने उल्लेख नहीं किया। गाने में लोग क्या कहेंगे? अच्छी बात में परवाह नहीं लेकिन गलत बात में चिंतन जरूर।
ReplyDeleteबिंदास जियो प्यारे। किस्मत हमारे साथ है जलने वाले जला करें। सरदार जी को सलाम।
ReplyDeleteस्किज़ोफ्रेनिक लगते हैं
ReplyDeleteNot really. but somewhat crazy !
Deleteto santa singh ne kafi prbhavit kiya aapko ......
ReplyDeleteआज संता के गाने सुनने के लिये कई बंता भी बैठे थे !:)
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