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Thursday, December 19, 2013

आधुनिक मनुष्य को जंगली जानवरों से ही कुछ सीख लेना चाहिए --


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पृथ्वी पर जीवन का आरम्भ मात्र एक कोशिका से होकर आधुनिक मानव के विकास तक की कहानी करोड़ों वर्ष लम्बी है। मानव को स्वयं बन्दरों से विकसित होने में लाखों वर्ष लग गए। आरम्भ में आदि मानव जंगलों में अकेला रहता था , कंद मूल खाता था। जंगली जानवरों की तरह उसका सारा समय भोजन की तलाश में ही गुजरता था। फिर उसने समूह में रहना सीखा और मिलकर शिकार करने लगा। धीरे धीरे उसने रहने के लिए झोंपड़ी बनाना और खेती करना सीखा।  इस तरह उसने समाज में रहना शुरू किया।  समाज बना तो समाज के कायदे कानून भी बने जिनका पालन करना भी उसने सीख लिया। यही समाज विकसित होता हुआ एक दिन आधुनिक मानव के रूप में बदल गया।  

आधुनिकता में हम सदा पश्चिम से पीछे रहे हैं। विशेषकर वैज्ञानिक आविष्कार वहाँ हुए और हम तक पहुंचने में समय लगा। वैज्ञानिक युग में रहन सहन , खान पान और पहनावा बदलता रहा और हम पश्चिम के पीछे पीछे चलते रहे।  हालाँकि इस बीच हमारी अपनी सभ्यता का भी विकास हुआ जिसे विश्व में श्रेष्ठंतम भी माना गया। लेकिन हम अपना प्रभाव दूसरों पर इतना नहीं छोड़ सके जितना दूसरे हम पर।  हम पश्चिम को कुर्ता पाजामा या धोती और महिलाओं को साड़ी पहनना नहीं सिखा पाये लेकिन उनसे पैंट शर्ट और स्कर्ट एवम बिकिनी पहनना अवश्य सीख गए। 

इसी सीखने के क्रम में आता है समलैंगिकता।  भले ही यह मनुष्य जाति में सदियों से विद्धमान है लेकिन इसका पहले खुल्लम खुल्ला आह्वान पश्चिम में ही हुआ। अब यह लहर हमारे देश में भी फैलने लगी है जिसका समर्थन व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर बुद्धिजीवी भी कर रहे हैं।  देखा जाये तो प्रकृति की एक भूल का सहारा लेकर आज मनुष्य प्रकृति को ही दूषित करने में लगा हुआ है।  कुछ गिने चुने बदकिस्मत लोगों की आड़ में खाये पीये अघाये लोगों ने एक सुव्यवस्थित समाज के सभी कानूनों को ताक पर रख कर सम्पूर्ण मानव जाति को विनाश के रास्ते पर लाकर खड़ा कर दिया है। आज मानव अधिकारों के नाम पर हम वो मांग रहे हैं जो न सिर्फ प्रकृति के विरुद्ध है बल्कि स्वयं मानव जाति के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।  एक व्यवस्थाहीन समाज का भविष्य वैसा ही हो सकता है जैसे  शरीर में कैंसर  की कोशिकाएं फैलने से होता है।  

समलैंगिक समूह में विशेषतया चार किस्म के लोग शामिल होते हैं जिन्हे एल जी बी टी कहा जाता है यानि लेस्बियन , गे , बाई सेक्सुअल और ट्रांसजेंडर। इनमे से केवल ट्रांसजेंडर लोग ही ऐसे होते हैं जिनके साथ प्रकृति ने अन्याय किया होता है।  क्योंकि इन लोगों में बायोलॉजिकल सेक्स और जेनेटिक सेक्स अलग अलग होते हैं।  अर्थात ये बाहर से देखने में लड़का या लड़की होते हैं लेकिन जेनेटिकली इसका उल्टा होता है।  यदि बायोलॉजिकल सेक्स मेल है और जेनेटिक सेक्स फीमेल तो पैदा होने वाला बच्चा लड़का दिखेगा लेकिन बड़ा होते होते उसकी आदतें और हरकतें लड़कियों जैसी होंगी।  इसे कहते हैं लड़के के शरीर में लड़की।  ज़ाहिर है , व्यस्क होने पर यह लड़का दूसरे लड़कों की ओर ही आकृषित होगा न कि लड़कियों की ओर। यह सही मायने में समलैंगिकता है। हालाँकि कुछ परिस्थितियों में पूर्ण मेडिकल चेकअप के बाद सर्जरी द्वारा लिंग परिवर्तन भी किया जा सकता है।   

ट्रांसजेंडर के अलावा बाकि तीनों में तथाकथित सेक्सुअल ओरियंटेशन की प्रॉब्लम होती है। हालाँकि इसके विभिन्न कारण माने जाते हैं लेकिन कोई निश्चित कारण अभी पता नहीं चला है। सम्भवत : समलैंगिता अक्सर परिस्थितिवश ज्यादा विकसित होती है।  अक्सर इसका आरम्भ किशोर अवस्था में होता है जिस समय सेक्सुअल एनेर्जी अनियंत्रित होती है। यौन ऊर्जा का कोई उचित निकास न होने से समलैंगिकता परिस्थतिवश एक सुविधाजनक माध्यम बन जाता है।  इसीलिए इसके उदाहरण अक्सर हॉस्टल्स , कैम्पों , जेलों और आर्मी कैम्प्स आदि में बहुतायत से देखे जा सकते हैं।  लेकिन यह क्षणिक और परिस्थितिवश होता है जो परिस्थिति बदलने के साथ ही समाप्त भी हो जाता है।  

लेकिन कुछ ऐसे व्यवसाय भी हैं जहाँ समलैंगिकता एक फैशन सा बन गया है जैसे फैशन समाज , मॉडलिंग , फ़िल्म वर्ल्ड आदि।  बेशक इतिहास में इसके प्रमाण मिलना इसी बात को दर्शाता है कि यह मानव जीवन में सदा व्याप्त रहा है।  लेकिन मानव जाति में समय के साथ साथ बुराइयां कम और अच्छाइयां बढ़ने को ही विकास कहते हैं।  अब यदि पूर्ण विकसित होकर भी हम आदि मानव की तरह व्यवहार करने लगेंगे तो यह विनाश की ओर पहला कदम होगा।  

एल जी बी समलैंगिकता प्रकृति के विरुद्ध कदम है। इसे अपराध की श्रेणी में लाये जाने पर मतभेद हो सकता है।  लेकिन समलैंगिकता मनुष्य की कुटिल बुद्धि का एक बहुत छोटा सा ही रूप है। मनुष्य यौन सम्बन्धों के मामले में इससे कहीं ज्यादा कुटिल और निर्दयी हो सकता है। इसी को विकृति कहते हैं।  यौन विकृति के कुछ उदाहरण हैं -- पीडोफिलिया यानि बच्चों के साथ यौनाचार , बेस्टिअलिटी यानि पशुओं के साथ यौनाचार , ऍक्सहिबिसनिस्म यानि सरे आम नंगा होकर घूमना , ट्रांसवेस्टिस्म यानि महिलाओं के कपडे पहनकर आनंदित होना , सैडिज्म यानि महिला को दर्द देकर यौनाचार करना आदि ऐसे मानसिक विकार हैं जो मूलत : मनोरोग की श्रेणी में आते हैं। ये विकार निश्चित ही अपराध हैं।  हालाँकि ऐसे लोगों को उपचार की भी आवश्यकता होती है।                 
अंत में यही कहा जा सकता है कि समाज के कायदे कानून समाज की भलाई के लिए बनाये जाते हैं।  इनका पालन करने से ही समाज में व्यवस्था बनी रहती है।  जंगली जानवरों में भी समूह के नियम देखे जाते हैं जिन्हे तोड़ने पर सजा भी मिलती है।  क्या हम जंगली जानवरों से भी बदतर होते जा रहे हैं ! 

       

24 comments:

  1. समाज की व्यवस्था में बँधे रहने से कई प्रवृत्तियों पर संयम हो जाता है, स्वतः ही।

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    1. पाण्डेय जी जब आपकी सामाजिक व्यवस्था ही खतरे में आ रही हो तो खुलकर अपनी बात कहनी चाहिए और जिस बात को आप सही समझते हों उसके पक्ष में दृढ़ता से खड़े होने का साहस करना चाहिए।

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    2. द्रढता से पक्ष लेना अक्सर बड़ा मुश्किल होता है !

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  2. सच को सामने लाता बेहतरीन आलेख।

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  3. वैसे आजकल हवा समलैंगिकों के पक्ष में बह रही है। एम जे अकबर सरीखे सेकुलर भी आजकल भगवन अय्यप्पा को याद कर रहे हैं।

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  4. कुछ लोग समलैंगिकों के पक्ष में यह कहते हैं कि यौन रुझान (sexual orientation) को छोड़कर बाकी सभी चीजों में ये सामान्य व्यव्हार ही करते हैं इसलिए समलेंगिकता मनोविकार नहीं है। तो भैया क्या pedophilia, bestiality या sadism जैसे यौन मनोविकार रखने वाले लोंगों के सिर पर सींग उगे होते हैं. मैं मनाता हूँ कि प्राणियों में कामुकता और यौन अंगों का विकास उनकी प्रजाति को आगे बढ़ने के लिए ही हुआ है। प्रकृति जिन प्रजातियों में लैंगिक जनन के जरिये संतति आगे बढाती है उनमे स्त्री और पुरुष के मिलन से ही ऐसा होता है। अतः प्राकृतिक रूप से स्त्री का पुरुष से सम्बन्ध ही सही है और समलैंगिक सम्बन्ध अप्राकृतिक ही माने जाने चाहिए क्योंकि ये प्रजाति को आगे नहीं बढ़ा सकते ।

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    1. बिल्कुल सही कहा . प्रकृति के साथ छेड़ छाड़ अन्तत: महंगी ही पड़ेगी .

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  5. समलैंगिकों के पक्ष में भारतीय धर्म ग्रंथों से ढूंढ ढूंढ़कर उदहारण लाने वाले सभी जन कृपया इस लिंक को अवश्य पढ़े
    http://www.junputh.com/2013/12/blog-post_17.html

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  6. ab to yahi kahna hoga .nice article .

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (20-12-13) को "पहाड़ों का मौसम" (चर्चा मंच:अंक-1467) पर भी होगी!
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  8. अरबों इंसान और जानवर हैं , अपनी अपनी समझ और शौक भी विकसित हुए हैं !

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  9. हम असभ्‍य होते जा रहे हैं और विकृति की ओर बढ़ रहे हैं। ज्ञानपरक आलेख।

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  10. अच्छा आलेख है --परन्तु ..
    "आधुनिकता में हम सदा पश्चिम से पीछे रहे हैं। विशेषकर वैज्ञानिक आविष्कार वहाँ हुए और हम तक पहुंचने में समय लगा।".....इस तथ्य से सहमत नहीं हुआ जा सकता ...शायद आपको अपने पुरा भारतीय -विज्ञान का ज्ञान नहीं है.....सब कुछ पहले यहाँ आविष्कृत हुआ तत्पश्चात पश्चिम ने सीखा, उस ज्ञान-विज्ञान को अपने भौतिक-सुख-उपयोग में कैसे लायें इसे पश्चिम सदैव ही अधिक अपनाता रहा है....क्योंकि भारत ..भोगी संस्कृति का हामी कभी नहीं रहा ...इसी को कुछ नासमझ लोग वैज्ञानिक उन्नति कहते हैं एवं नक़ल करने का प्रयत्न करते हैं........

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    1. डॉक्टर गुप्ता जी , यहाँ हम १८ वीं शताबदी से आगे के आविष्कारों की बात कर रहे हैं . बेशक पुष्पक विमान के बारे मे हमने भी सुना है . हालांकि कोई प्रमाण मिलना असंभव ही है .

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  11. पढने और समझने लायक ज्ञानवर्धक लेख .....
    शुभकामनायें!

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  12. आपने सच कहा सामाजिक नियमो का पालन एक बेहतर समाज को जन्म देगा

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  13. तमाम सामाजिक आनुवंशिक कारणों को खंगालता बढ़िया आलेख। यह विकृति को ग्लैमराइज़ करने का दौर है इस को ही कलिकाल कहा जाता। वोट भुख्खड़ नकारा सरकार ने पुनर्विचार याचिका ठोक दी है।

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  14. मानवीय अधिकारों को तो चैलेन्ज नहीं कर रहे हैं आप ?शिल्पा मेहता आती होंगीं!

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  15. प्रकृति की सन्तान मानव की ही बात कर रहे हैं हम ! अधिकार तो उसने स्वयं बना लिये हैं !

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  16. सीमा में रहना .. समाज की परिधि में रहना जरूरी है एक सभ्य और अच्छे समाज के लिए ... और उसकी मान्यताओं को मानना भी जरूरी है सुचारू जीवन के लिए ...
    आपका लेख आँखें खोलने वाला है ... विस्तार से समझाया है आपने इस शब्द ओर इससे जुडी बातों का मतलब ...

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  17. @सम्भवत : समलैंगिता अक्सर परिस्थितिवश ज्यादा विकसित होती है।
    मुझे भी ऐसा ही लगता है..
    हालाँकि फिर भी इसे अपराध कहने के पक्ष में नहीं हूँ मैं.
    बहुत कन्फ्यूजिंग है यह सब,

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  18. समलैंगिकता एक मानसिक प्रवृति है , जिसे तन और मन दोनों ही स्तर पर इलाज़ की आवश्यकता है। यह अपराध नहीं है , मगर शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ समाज के लिए इसको प्रोत्साहित किये जाने से बचना चाहिये।

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  19. Yahan par har koi apne liye adhikaar khud hi chun leta hai, bas yehi ek samasya hai.
    Please visit my site and share your views... Thanks

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  20. ये बिल्कुल विस्तार से लिखा गया आलेख है। ये बीमारी किस हद तक है और किस हद के बाद ये विकृति बन जाती है यह स्पष्ट करता आलेख है। मगर समस्या हमारे यहां यही है कि कुछ लोगो की आड़ में ज्यादातर लोग अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं..यानि मनमानी करना चाहते हैं। समाज को नियमों में बांधना हर हाल में जरुरी है। हो सकता है समाज में तेजी से जीवनशैली के कारण मानसिक विकृति अब एक आम समस्या बन गई हो औऱ उसके इलाज की जरुरत हो। पर इसकी आड़ में सबको सबकुछ करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। मगर समाज किस तरह का दोगलापन रवैया अपनाता है..औऱ LGBT के पक्ष में खड़े ज्यादातर लोगो की हकीकत क्या है ये मैं अपनी पिछली पोस्ट में स्पष्ट कर चुका हूं।

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