top hindi blogs

Wednesday, February 16, 2011

जब बड़ा आदमी बन जाऊँगा तो कैसा लगेगा ----

पिता सरकारी दफ्तर में चपरासी था अभावों में जीना सीख लिया था उसने । जब सब बच्चे गली में क्रिकेट खेल रहे होते तो वह खिड़की से झांक कर दूसरों को खेलते देख कर ही संतुष्ट हो जाता ।

लेकिन ऊपर वाले ने उसे विलक्षण बुद्धि दी थी इसलिए मन में उत्साह और लग्न थी कुछ कर दिखाने की

उस दिन भी तो वह खिड़की से ही झांक रहा था कि तभी पडोसी की नज़र उस पर पड़ गई ।
थमा दिया हाथ में एक गिलास और पांच पैसे का सिक्का
घर में मेहमान आया था । चाय बनानी थी , दूध चाहिए था ।
पांच पैसे में पचास ग्राम सप्रेटा दूध आता था
दो कप चाय आसानी से बन जाती ।

डेरी की लाइन में एक हाथ में कांच का गिलास और दूसरे में सिक्का पकडे, वह इंतजार कर रहा था अपनी बारी का

मन में विश्वास था कि एक दिन वह बड़ा आदमी ज़रूर बनेगा

और सोचता जा रहा था कि जब वो बड़ा आदमी बन जाएगा और ये दिन याद आयेंगे तो कैसा लगेगा

चपरासी ने आवाज़ दी तो ध्यान भंग हुआ --सा` चाय ठंडी हो गई । दूसरी ला दूँ क्या ?
बाहर जिले के लोग आपसे मिलने के लिए इंतजार कर रहे हैं ।

जिलाधीश के पास पचास गाँव की पंचायत के लोग फ़रियाद लेकर आए थे, गावों में पीने के पानी की व्यवस्था के लिए

नोट : यदि मन में विश्वास हो तो कुछ भी असंभव नहीं



44 comments:

  1. अतीत के साथ वर्तमान का शानदार समन्वय.

    ReplyDelete
  2. आदरणीय डॉ टी एस दराल जी
    नमस्कार !
    यदि मन में विश्वास हो तो कुछ भी असंभव नहीं ।
    बिलकुल सही कहा आपने डॉ साहब विश्वास होना बहुत जरूरी है

    ReplyDelete
  3. आत्म विश्वास क्या नहीं करा सकता ? नव युवाओं के लिए बेहद प्रेरक प्रसंग !
    यह युवक वाकई खुशकिस्मत है जिसने भारी बुरे दिन और स्वर्णिम समय का आनंद लिया !
    आपकी शैली में आनंद आ गया दराल साहब ! शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  4. बेहद प्रेरक प्रसंग !
    आभार !

    ReplyDelete
  5. ...ऊपर वाले ने उसे विलक्षण बुद्धि दी थी । इसलिए मन में उत्साह और लग्न थी..." शायद ऊंची ईमारत की गहरी अनजानी और अनदेखी नीवं थी...ऐसे ही मुंबई में एक बिहारी महिला, जिनके पति अच्छी पोस्ट में थे और अब बेटा- बेटी भी, से सुना (सही या झूट?) ki कैसे लालू आउट हाउस की खिड़की से उनके बच्चों को हसरत भरी आँखों से फुटबाल खेलते देखा करता था!

    ReplyDelete
  6. बहुत प्रेरक कहानी लिखी है आपने

    ReplyDelete
  7. बहुत ही प्रेरक पोस्ट डाक्टर साहब ।

    ReplyDelete
  8. प्रेरक प्रसंग डा० साहब, इसे कहते है पोजेटिव सोच !

    ReplyDelete
  9. धुन का पक्का निकला वो डॉ सा.! उसने सोचा था की एक दिन वो बड़ा आदमी बनेगा! और वो बन गया--इंसान में सकारात्मक सोच का होना जरूरी हे - लाजबाब पोस्ट! धन्यवाद |

    ReplyDelete
  10. बहुत प्रेरक प्रसंग है। आत्मविश्वास और हौसले साथ साथ चलें तो क्या नही हो सकता। धन्यवाद।

    ReplyDelete
  11. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (17-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

    ReplyDelete
  12. आत्म-विशवास और कर्मठता ही सफलता की कुजी है-यही सन्देश इससे मिलता है.

    ReplyDelete
  13. बहुत बहुत धन्यवाद इस सार्थक पोस्ट के लिए !

    ReplyDelete
  14. हममें से अधिकांश को चाहे ऐसे दिन न देखने पड़े हों,पर विपरीत परिस्थितियों से तो गुज़रना पड़ा ही है। अच्छा लगता है,अपने सपनों को साकार होते देखना। उससे भी अधिक संतोष देता है-प्रतिकूल परिस्थितियों से गुजर रहे लोगों की मदद के लिए हाथ बढ़ाना।

    ReplyDelete
  15. प्रेरक कथा ..पढकर अलग ही जोश का सा अहसास होता है.

    ReplyDelete
  16. जब आत्मविशवास हो ओर अपने ऊपर भरोसा हो तो हम सब कुछ कर सकते हे, बहुत सुंदर लगी आप की यह लघू कथा, धन्यवाद

    ReplyDelete
  17. बिल्कुल, खुद पर विश्वास और सही दिशा में की गई मेहनत व्यक्ति को उसकी मंजिल तक पहुंचा ही देता है |

    ReplyDelete
  18. मन मे हो विश्वास, हम होंगे कामयाब, एक दिन....।
    कुछ ऐसी ही सुखद अनुभूति प्रदान करती प्रेरक लघुकथा।

    ReplyDelete
  19. अत्यंत प्रेरक, शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  20. यह सत्यकथा जैसी है। ऐसा हमारे देखने भी आया कि एक क्लर्क का बेटा आई ए एस बन गया और हमारी संस्था में हमारी मतहती करने वाले कमीशन रैंक लेकर हमारे अधिकारी बन गए।

    ReplyDelete
  21. सोच और संकल्‍प का जादू.

    ReplyDelete
  22. सही सोच ,मेहनत और किस्मत का समन्वय = सफलता

    ReplyDelete
  23. मन में हो विश्वास तो होंगे कामयाब ..एक दिन !

    ReplyDelete
  24. बहुत ही प्रेरक प्रसंग.
    ढेरों सलाम.
    मेरे ब्लॉग पर आप का आना मेरा सौभाग्य है.
    हीरजी तो ज़र्रे को आफताब बना देतीं हैं

    ReplyDelete
  25. सही है मन में हो विश्वास तो पूरा हो विश्वास .... आभार

    ReplyDelete
  26. सकारात्मक सोच लिए...बहुत ही प्रेरक कहानी

    ReplyDelete
  27. हमारे देश में बहुत से ऐसे बच्चे हैं जिनमे टेलेंट छुपी है । लेकिन उचित अवसर न मिल पाने के कारण गुमनामी के अंधेरों में खो जाते हैं । यदि उन्हें भी अवसर मिले तो वे भी आगे बढ़ सकते हैं ।
    लेकिन ऐसा कोई किस्मत वाला ही होता है ।

    ReplyDelete
  28. प्रेरक प्रसंग. मन में विशवास हो तो कुछ भी सम्भव है.

    ReplyDelete
  29. जमशेद जी टाटा को भी अंग्रेज़ों ने कभी होटल में जाने से रोका था...

    उन्होंने एक कसम खाई...

    नतीजे में मुंबई का ताज होटल बना...जहां अंग्रेज़ आज आकर ठहरना अपनी शान समझते हैं...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  30. अच्छी बात बताई....
    ______________________________
    'पाखी की दुनिया' : इण्डिया के पहले 'सी-प्लेन' से पाखी की यात्रा !

    ReplyDelete
  31. डॉ साहब .. आपने बहुत अच्छी कहानी सुनाई... अभी अभी मैंने आपकी दो कहानिया पढ़ी.. बहुत ही सटीक... और नोट तो उम्दा ... तरीका जुदा.. सादर

    ReplyDelete
  32. @ खुशदीप जी
    अंग्रेज का वश चलता तो यहाँ से जाते ही नहीं! वो आये भी इस लिए थे कि भारत में वैदिक काल का अंत बहुत पहले हो चुका था (जब यूरोप में जंगली बसते थे) और 'हिन्दू' शक्तिहीन हो गए थे (काल के प्रभाव से, अंधेर युग अथवा घोर कलियुग में प्रवेश कर जब विष का चहुँ ओर व्याप्त होना निश्चय है,,,और आज तो धरा पर गंगा भी मैली हो गयी प्रतीत होती है, और आम आदमी का मन भी?)...किन्तु 'सोने की चिड़िया', जिसने सदियों से 'विदेशियों' को अपनी ओर खींचा है और अपना भी लिया, अभी भी सोना उगलने की क्षमता रखती है, इसका विश्वास और इंतजार है सभी को... क्या काल-चक्र सतयुग को लौटा के लाएगा? या फिर अब ब्रह्मा की रात के आरंभ होने की सम्भावना है, जैसे अनुमान लगाये जा रहे हैं?...

    ReplyDelete
  33. डाक्टर साहेब । हाजिर हूं स्पष्टीकरण के साथ ।
    लेख अच्छा लगा एक लडका जो भृत्य का था और पडौसियों के काम किया करता था आज जिले का कलेक्टर बना बैठा है पिछली बातों को कम से कम याद तो कर रहा है।स्वभावतः लोगों का भला ही करेगा।आपका प्रेरक प्रसंग संदेश देता है कि अपनी गरीबी के वक्त को कभी भूलना नहीं चाहिये

    ReplyDelete
  34. यदि मन में विश्वास हो तो कुछ भी असंभव नहीं

    बिलकुल नहीं है ... सच कहा मन में पक्का विश्वाल होना चाहिए ....

    ReplyDelete
  35. क्या बात है दराल जी ....!!
    यूँ लग रहा है सारी पोस्टें मेरे लिए ही लिखी जा रही हैं .....


    ):):

    ReplyDelete
  36. जी अभी एक और है ।
    लेकिन उसके बाद ट्रेक बदल देंगे ।
    वैसे अभी क्षणिकाएं भी तो लिखनी हैं ।

    ReplyDelete
  37. इस लघु कथा को पसंद करने के लिए आप सब का आभार ।

    ReplyDelete