दिल्ली जैसे बड़े शहर में गाड़ी रखना जितना आसान है ,गाड़ी साफ़ रखना उतना ही मुश्किल है। इस धूल भरे मौसम में जहाँ दो चार बूँदें गिरी नही कि अच्छी खासी नई कार पुरानी खटारा मोडल लगने लगती है। ऐसे में कार साफ़ करने वाला मुंडू भी गायब हो जाता है। इस मामले में बेवकूफ से दिखने वाले मुंडू बड़े बुद्धिमान निकलते हैं। जिस दिन भी हल्की सी बारिस होती है, वो छुट्टी मार जाते हैं। जरा सोचिये आप सज धज कर ऑफिस के लिए तैयार होकर निकलते हैं और गाड़ी एकदम गन्दी। ऐसे में आप क्या करेंगे? मन मसोसकर उसी हालत में गाड़ी लेकर चल देंगे और क्या। भाई कम से कम अन्दर से तो साफ़ है न। फ़िर गाड़ी बाहर से कितनी ही गन्दी क्यों न हो , कम से कम आपको तो नही दिखेगी न। दूसरों को दिखती है तो दिखे, हमें क्या।
अब मैंने तो इस समस्या का एक समाधान निकाल लिया है। चौराहे पर लाल बत्ती पर रूककर जब हम बत्ती हरी होने का इंतज़ार करते हैं, उस समय जो बाल भिखारियों का दल बेहद गन्दा और मैल भरा कपड़ा लेकर गाड़ी के शीशे साफ़ करने लगता है ,या यूँ कहिये कि गन्दा करता है ,और हम उन्हें भगाने के हर हथकंडे इस्तेमाल करते हैं लेकिन सब फ़ेल हो जाते हैं। अब मैंने उन्हें भगाना बंद कर दिया है। अब मैं उन्हें गाड़ी साफ़ करने देता हूँ और जब वो भीख मांगने आते हैं तो मैं कहता हूँ --सारी गाड़ी साफ़ करो तब दूँगा। इस पर वो बड़े जोश के साथ साफ़ करने लग जाते हैं और बत्ती हरी होने से पहले गाड़ी साफ़।
दोस्तों, आजमा कर देखिये, बड़ा कारगर तरीका है, १ से ५ रु में गाड़ी साफ़ कराने का । लेकिन इसमे एक रिस्क भी है। दिल्ली में लाल बत्ती पर भिखारियों को भीख देना कानून में जुर्म है। अब ये बात अलग है कि इस कानून के अर्न्तगत आज तक किसी को सजा नही हुई है या चालान कटा है। वैसे भी हमारे यहाँ कई कानून तो खाली पेपर पर ही होते है। इसलिए आप चाहें तो धड़ल्ले से कानून तोड़ते हुए अपनी गाड़ी साफ़ करा सकते हैं।
दिल्ली के भिखारी बहुत ही सक्षम , जागरूक एवम परिश्रमी होते हैं। अगले वर्ष दिल्ली में कॉमनवैल्थ गेम्स होने वाले हैं। अब भले ही सड़कें , स्टेडियम और खिलाड़ियों के लिए आवास तैयार नही हुए हों, पर दिल्ली के भिखारियों की तैयारी पूरी है। पता चला है कि उन्हें विदेशियों से भीख मांगने के तौर तरीकों की ट्रेनिंग देने के लिए जगह जगह अकादमी खुल गयी हैं। जहाँ उन्हें अपनी संस्कृति का ध्यान रखते हुए भीख मांगने के आधुनिक तरीकों में पूरी तरह से ट्रेन किया जाएगा, जिससे कि हमारे विदेशी महमानों को कोई असुविधा न हो और विदेशों में भारत की छवि भी निखर कर सामने आए।
सुना है , इसके लिए अकादमी में पंजीकृत बच्चों को इंग्लिश, फ्रेंच , जर्मन व् रसियन जैसी सभी विदेशी भाषाओँ का ज्ञान दिया जाएगा। मैं तो ये सोचकर ही रोमांचित हो रहा हूँ कि हमारी प्रतिष्ठा में चार चाँद लग जायेंगे जब हमारे विदेशी महमान चौराहों पर बाल भिखारियों को उन्ही की जुबान बोलते हुए पायेंगे। वैसे हम बेकार में अपने बच्चों को विदेशी भाषाएँ सिखाने के लिए हजारों, लाखों रूपये खर्च करते हैं। क्यों न इन्ही अकादिमियों को ज्वाइन कर लिया जाए और मुफ्त में अपना सी वी इम्प्रूव कर लिया जाए।
कहिये यह विचार कैसा रहेगा ?
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Absolutely true! I agree!
ReplyDeleteवैसे हम बेकार में अपने बच्चों को विदेशी भाषाएँ सिखाने के लिए हजारों, लाखों रूपये खर्च करते हैं। क्यों न इन्ही अकादिमियों को ज्वाइन कर लिया जाए और मुफ्त में अपना सी वी इम्प्रूव कर लिया जाए।
ReplyDeleteआइडिया तो अच्छा है ....!!
सीवी इम्प्रूव करने के लिए तो विचार ठीक ही है.
ReplyDeleteHam sab taiyaar hain.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Rajneesh ji,shukriya.Jindagi ki aam mushkilon ko ujagar karne ke liye to samay hona hi chahiye.Saath hi hame sochane ke liye bhi vakt nikaalna chahiye.
ReplyDeleteविदेशी और विदेशी भाषाओं के सीखने के लाभ अब इस चूहापिता से भी सुन लीजिए :-
ReplyDeleteएक चूहा पिता और चूहा पुत्र कहीं जा रहे थे तो यकायक सामने से बिल्ली टपक पड़ी। तभी कहीं से भौंकने की आवाज आई तो बिल्ली जान बचाकर भाग ली और चूहापिता पुत्र की जान भी बच गई।
चूहापिता ने अपने पुत्र को बतलाया कि विदेशी भाषा सीखने के बहुत लाभ होते हैं, जैसे आज हमारी जान बच गई है।
भिखारी भी यदि फ्रेंच, अंग्रेजी, जापानी, चीनी इत्यादि भाषाओं में भीख मांगेंगे तो निश्चय ही भरपूर लाभ उठायेंगे। इसमें कोई शक नहीं है।
क्या आपने भी इसी कारण अपने ब्लॉग का नाम अंग्रेजी में लिख रखा है।
Ji nahi. Lekin hindi me parivertit karne ka upay nahi soojh raha. Aap madad keejiye.
ReplyDeleteaalekh achha hai....
ReplyDeleteek sandesh bhi hai...aur pahunch bhi rahaa hai
---MUFLIS---
ब्लॉग के नाम को हिन्दी में रखने के लिए बधाई।
ReplyDeleteगाड़ी साफ़ करने वाली समस्या तो अपनी श्रीमती जी भी अक्सर दो-चार होती रहती हैं लेकिन अपने को इस सब की फ़िक्र ही नहीं होती क्योंकि गाड़ी तो ज़्यादातर उसी को चलानी होती है...अब वो हटें तो मेरा नंबर आए ...
ReplyDeleteबढ़िया व्यंग्य