ये कैसी भेड चाल है, ये कैसा भ्रम जाल?
क्यों अपनी चाल को भूल कर , हंस चला कव्वे की चाल।
अपना देश, धर्म और संस्कृति को क्यों छोड़े जाते हो,
वैलेंटाइन तो याद है, पर खून के रिश्तों को तोड़े जाते हो!
क्यों भूल गए न ,
भूल गए न उस जननी को,
सर्व कष्ट हरनी को,
जो हर नाजों नखरे उठाती है,
राजा कह कर बुलाती है ,
फ़िर बेटा चाहे जैसा हो।
दो प्यार के बोल और दो पल अपनों का साथ ,
गर उसे भी मिले तो कैसा हो!
क्यों भूल गए न ,
भूल गए न उसको जो जन्म दाता है ,
ख़ुद एक कोट में जीवन काटे ,
पर हर वर्ष रीबोक के नए शूज दिलाता है।
ख़ुद झेले ब्लू लाइन के झटके ,
पर आपको नैनो के सपने दिखाता है।
फ़िर अपनी नई वैलेंटाइन की अकड़ में ,
क्यों भूल गए उसको ,
जीवन के पतझड़ में?
और भूल गए न ,
भूल गए न ,
कलाई पर बहन की राखी का नर्म अहसास ,
भूल गए भाई भाई के खून के रिश्ते की मिठास,
और भूल गए वो धरती माँ, वो सूर्या, वो आकाश।
और मैला कर दिया न गंगा मैय्या को,
मैली हुई गंगा मैय्या और मैले पवन के झोंके,
फ़िर भी आप खुश हैं ,
अपनी नई वैलेंटाइन के साथ होके!
अरे वैलेंटाइन तो हैं ये पाँच तत्व ,
जो हैं जीवन के मूल आधार ,
पर वो वैलेंटाइन डे कब आएगा ,
जब मानव को होगा इन सबसे प्यार?
वो वैलेंटाइन डे कब आएगा---?
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सीख देती रचना
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