आज एक ग़ज़ल बन गई:
अकेले बहुत है दुनिया में पर,वो ख़ुशगवार नहीं मिलते,
केले तो बहुत मिलते हैं पर, वो चित्तीदार नहीं मिलते।
ठंडा पानी तो बहुत मिल जाता है, बेस्वाद रेफ्रिजरेटर से,
पर सोंधा सा मटका बनाने वाले, वो कुम्हार नहीं मिलते।
दोस्त तो बहुत मिल जाएंगे, इस दुनिया की भीड़ में,
पर दोस्ती पर जान लुटाने वाले, वो यार नहीं मिलते।
सवारियां तो बहुत दौड़ती हैं, इन शहरों की सड़कों पर,
पर सम्मान के रक्षक जांबाज़, वो घुड़सवार नहीं मिलते।
विकास ने लोगों की जिंदगी में, कर दिया ऐसा परिवर्तन,
कि तमाशा देखती गूंगी भीड़ में, वो मददगार नहीं मिलते।
अपनी तो सोम से रवि सातों दिन, छुट्टी ही छुट्टी है दोस्तो,
किया करते थे बेसब्री से इंतज़ार, वो इतवार नहीं मिलते।
ज़बरदस्त ग़ज़ल हुई है ..... हर शेर कोई न कोई मुद्दा उठाये हुए है ।।बेहतरीन
ReplyDeleteजी सही कहा। आखिरी शे'र में एक रिटायर्ड आदमी का दर्द है। 😅
Deleteबहुत खूब।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना 6 जून 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
बहुत बहुत शुक्रिया जी।
Deleteबहुत बढ़िया मार्मिक अभिव्यक्ति आदरनीय डॉक्टर साहब।वो कुम्हार,इतवार, मददगार,घुड़सवार,केले चित्तिदार इत्यादि बीते दिनों की बात हुई।बहुत सुन्दर रचना लिख डाली आपने 👌👌बहुत सी बातों का स्मरण हो आया।🙏🙏
ReplyDeleteआभार रेणु जी। 😊🙏🙏
Deleteहर शेर कुछ कहता हुआ।
ReplyDeleteसराहनीय गजल ।
शुक्रिया जी।
Deleteक्या बात है... मुद्दे उठाती अनोखी प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद। 😊
Deleteसरलता से और सहजता से कह दिया आपने सब कुछ।
ReplyDeleteउम्दा सृजन।
जी शुक्रिया।
Deleteबेहतरीन गज़ल सर, सरल, सहज,सारगर्भित अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteपसंद आई, प्रयास सफल रहा। आभार।
Deleteविकास ने लोगों की जिंदगी में, कर दिया ऐसा परिवर्तन,
ReplyDeleteकि तमाशा देखती गूंगी भीड़ में, वो मददगार नहीं मिलते।
वाह!!!
लाजवाब गजल।
जी धन्यवाद।
Deleteसहजता से जीवन की बहुत सारी बातें कहती
ReplyDeleteबेहद उम्दा गज़ल
आभार। :)
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